जानें कब और कहां दिखेगा हजारों सालों में लगने वाला सबसे लंबा आंशिक चंद्र ग्रहण, इस वक़्त रखें इन बातों का खास ध्यान
जानें कब और कहां दिखेगा हजारों सालों में लगने वाला सबसे लंबा आंशिक चंद्र ग्रहण, इस वक़्त रखें इन बातों का खास ध्यान

नई दिल्ली। इस साल का आखिरी चंद्र ग्रहण शुक्रवार के दिन लगने जा रहा है। चंद्र ग्रहण अपने साथ एक बेहद खास संयोग लाया है। ये ग्रहण आंशिक चंद्र ग्रहण होगा। आंशिक चंद्र ग्रहण का मतलब है कि चंद्रमा के कुछ ही भाग पर पृथ्वी की छाया पड़ेगी। इस चंद्र ग्रहण को 1000 सालों में लगने वाला सबसे लंबा आंशिक चंद्र ग्रहण माना जा रहा है। ये आंशिक चंद्र ग्रहण है जिसकी वजह से सूतक मान्य नहीं होगा।

और ये भारत के बहुत कम हिस्सों से ही दिखाई देगा वाराणसी भारतीय हिंदू पंचांग के अनुसार, एवं एमपी बिड़ला तारामंडल के अनुसंधान और अकादमिक निदेशक देबीप्रसाद दुआरी के अनुसार, वर्ष का अंतिम और सबसे लंबी अवधि का चंद्र ग्रहण कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा शुक्रवार दिनांक 19 नवंबर 2021 को दोपहर 12:48 से प्रारंभ होगा और सायंकाल 4:17 पर समाप्त होगा चंद्र ग्रहण की मुख्य अवधि 3 घंटे 28 मिनट और 24 सेकंड होगी। आइए आपको बताते हैं इस दौरान चंद्रमा का करीब 97 प्रतिशत हिस्सा पृथ्वी की छाया से ढक जाएगा।

चंद्र ग्रहण 19 नवंबर को शुक्र के स्वामित्व वाली वृषभ राशि में लगने जा रहा है। ज्योतिष के अनुसार इसके प्रभाव की बात करें, तो ये ये तीन राशियों के लिए बेहद शुभ परिणाम लेकर आने वाला है।

इन राशियों के लिए रहेगा शुभतुला-

तुला राशि के जातकों के लिए इस चंद्र ग्रहण का असर शुभ रहेगा। इस राशि के जातकों को करियर में बड़ी सफलता हासिल हो सकती है। साथ ही जितनी मेहनत कर रहे हैं, उसका पूरा फल मिलेगा। धनलाभ के संकेत हैं, इसके साथ ही वाद-विवाद से बचने की सलाह दी गई है।

कुंभ- कुंभ राशि के जातकों के लिए ये चंद्र ग्रहण आर्थिक लाभ पहुंचा सकता है। कार्यक्षेत्र में नई जिम्मदारियां मिल सकती हैं, साथ ही इस राशि के जातकों को भी तुला राशि के जातकों की तरह मेहनत का पूरा फल मिलेगा।

मीन- इस चंद्र ग्रहण से मीन राशि के जातकों को करियर में सफलता मिलने के संकेत हैं। इस दौरान आपको प्रमोशन और कार्यक्षेत्र में नई जिम्मेदारी मिल सकती है। धन लाभ होगा, साथ ही पुराने कर्जों से ​मुक्ति मिल सकती है।

इन स्थानों पर दिखेगा चंद्र ग्रहण

इस चंद्र ग्रहण को पूर्वी अफ्रीका, पश्चिमी यूरोप, उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अटलांटिक महासागर और प्रशांत महासागर जैसे कुछ चुनिंदा हिस्सों से देखा जा सकेगा। भारत में ये ग्रहण पूर्वोत्तर राज्यों में अरुणाचल प्रदेश और असम के कुछ हिस्सों में देखा जा सकेगा।

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ग्रहण का वैज्ञानिक महत्व

वैज्ञानिक रूप से कोई भी ग्रहण एक खगोलीय घटना है। दरअसल पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है और चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है। परिक्रमा करते समय एक समय ऐसा आता है जब पृथ्वी, सूर्य व चंद्रमा तीनों एक सीध में होते हैं। जब पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य के बीच में होती है तो चंद्रमा पर सूर्य की रोशनी नहीं आ पाती और इसे चंद्र ग्रहण कहा जाता है। लेकिन जब चंद्रमा, सूर्य और पृथ्वी के बीच में आता है तो पृथ्वी पर सूर्य की रोशनी नहीं आ पाती, इसे सूर्य ग्रहण कहा जाता है। हालांकि धार्मिक रूप से ग्रहण को एक अशुभ घटना के तौर पर देखा जाता है।

तीन तरह का होता है चंद्र ग्रहण

आंशिक चंद्रग्रहण

आंशिक ग्रहण वो होता है जब सूरज और चांद के बीच पृथ्वी पूरी तरह न आकर केवल इसकी छाया ही चंद्रमा पर पड़ती है। आंशिक चंद्र ग्रहण के दौरान सूतक मान्य नहीं होता।

पूर्ण चंद्रग्रहण

इस ग्रहण में पूरी तरह से चांद और सूरज के बीच पृथ्वी आ जाती है और पृथ्वी चांद को पूरी तरह से ढक लेती है। इसे पूर्ण चंद्र ग्रहण कहा जाता है। ज्योतिष के अनुसार पूर्ण चंद्र ग्रहण सबसे प्रभावशाली माना जाता है। पूर्ण चंद्र ग्रहण में सूतक काल माना जाता है। इसमें ग्रहण लगने के समय से ठीक 9 घंटे पहले सूतक लग जाता है।

उपच्छाया चंद्रग्रहण

ग्रहण का एक प्रकार उपच्छाया भी होता है। उपच्छाया चंद्र ग्रहण की बात करें तो इसमें चंद्रमा के आकार पर किसी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ता है। इसमें चांद की रोशनी में हल्का सा धुंधलापन आ जाता है।

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