कोयला खदान से प्रभावित गावों में अधिग्रहण के बावजूद अब भी जारी है मकानों का निर्माण कार्य, तगड़ा मुआवजा पाने के फेर में हो रही है हेराफेरी
कोयला खदान से प्रभावित गावों में अधिग्रहण के बावजूद अब भी जारी है मकानों का निर्माण कार्य, तगड़ा मुआवजा पाने के फेर में हो रही है हेराफेरी

कोरबा। जिले के अनेक इलाके ऐसे हैं जहां की जमीनों को सरकार ने कोयले की खदान खुलवाने के लिए अधिग्रहण की घोषणा बरसों पहले कर दी है, बावजूद इसके ऐसे गांवो में धड़ल्ले से निर्माण कार्य जारी है। ऐसे निर्माण कार्यों पर न तो SECL प्रबंधन रोक लगा पा रहा है और ना ही राजस्व अमला। ग्रामीण बताते हैं कि अधिकांश लोग ज्यादा मुआवजा पाने के फेर में तो वहीं कुछ लोग खुद को उस गांव का निवासी साबित करके नौकरी हासिल करने के लिए ऐसा करते हैं।

हम बात कर रहे हैं कोरबा जिले में SECL की कुसमुंडा कोयला खदान की, जिसके आसपास स्थित गांवों की जमीनों के अधिग्रहण की अधिसूचना राज्य शासन ने लगभग 12 साल पहले सन 2010 में जारी कर दी है। इनमे खैरभवना, पड़निया, सोनपुरी, रिसदी, खोडरी, चुरैल, अमगांव सहित अनेक गांव शामिल हैं। हालांकि अधिग्रहण का समय काफी लम्बा गुजर गया है, इसलिए भी कई ग्रामीणों ने अपनी जरुरत के हिसाब से अपना मकान खड़ा कर लिया है, मगर अधिकांश लोग ऐसे हैं, जिन्होंने मुआवजा और नौकरी हासिल करने के लिए इस तरह का निर्माण कार्य किया है।

खेत के बीच में बना डाला मकान..!

कुसमुंडा खदान के इर्द-गिर्द के गांवो में कई सूने मकान खेतों के बीच नजर आ जायेंगे। इनमे से अनेक मकान तो ऐसे हैं जिनके मालिक का नाम भी ग्रामीणों को मालूम नहीं है। जानकार बताते हैं कि चूंकि SECL द्वारा गाँव के मूल निवासियों को जमीन के बदले में नौकरी और मुआवजा दोनों दिया जाता है, इसलिए कई बाहरी लोंगो ने खुद को भूविस्थापितों का आश्रित बताकर, तो कई ने खुद को गाँव का मूल निवासी बताकर नौकरी हासिल कर ली। मूल निवासी साबित करने के लिए गांव में खुद की जमीन के अलावा अपना मकान और वहां पर दो दशक से अधिक समय तक निवास होना चाहिए। ऐसे कई बाहरी लोग हैं जिन्होंने खुद को खदान प्रभावित गाँव का मूल निवासी साबित करने के लिए वहां किसी से जमीन खरीदी, उस पर मकान बनवाया, अपना राशन कार्ड बनवाया और सरपंच से मिलीभगत से गांव की वोटर लिस्ट में भी अपना नाम जुड़वा लिया।

गौरतलब है कि हाल ही में रायगढ़ जिले के तमनार ब्लॉक में महाजेनको के कोयला खदान के लिए अधिग्रहित गांवो में रातों-रात बड़े-बड़े मकान खड़े कर लिए जाने संबंधी मामला उजागर हुआ था। ऐसा ही कुछ कोरबा जिले के खदान प्रभावित इलाकों में लम्बे समय से होता आ रहा है, मगर इस पर न तो SECL प्रबंधन ध्यान दे रहा है और न ही राजस्व विभाग। हालांकि इस संबंध में पूछे जाने पर कोरबा जिले के कटघोरा अनुविभाग के SDM नंदजी पांडेय कहते हैं कि चूंकि SECL ने खदानों के लिए जमीनें COAL BEARING ACT के तहत अधिग्रहित की है, इसलिए वहां भविष्य में होने वाले भूमि परिवर्तन के नियम कायदे भी वही पालन कराएगा।

नौकरी-मुआवजे के लिए चल रहा है आंदोलन

SECL प्रबंधन लम्बे समय से चल रहे भूविस्थापितों के अलग-अलग चल रहे आंदोलनों से काफी परेशान है। इसकी प्रमुख वजह नौकरी और मुआवजे की मांग है। इन आंदोलनों में ज्यादातर वे लोग होते हैं, जिन्होंने बाहरी होते हुए भी खुद को प्रभावित गांव का मूल निवासी साबित कर लिया है और आज वे नौकरी और मुआवजे के लिए दावेदारी कर रहे हैं। ऐसे लोगों की संख्या काफी ज्यादा है और इनके द्वारा ही भूविस्थापितों के आंदोलनों को हवा दिया जाता है।

जांच में सच हो जायेगा उजागर

सच तो यह है कि भूविस्थापित की जमीन पर अगर मकान बना है तो उसका भारी-भरकम मुआवजा बनता है, और उसके लिए ही इस तरह के निर्माण कार्य किये जाते हैं। दरअसल इस कार्य में गांव के जनप्रतिनिधियों, पटवारी और SECL के राजस्व अमले की भी मिलीभगत होती है। यही वजह है कि जब सर्वे का कार्य किया जाता है तो अधिग्रहण के बाद मकानों का निर्माण करने वाले भी मुआवजे के हक़दार हो जाते हैं। जांच के दौरान ऐसे दर्जनों मामले उजागर हो सकते हैं, बशर्ते निष्पक्ष तरीके से दल बनाकर सर्वे का कार्य किया जाये।

“एससीएल अधिग्रहीत भूमि पर अतिक्रमण ग़ैरक़ानूनी है। इस संबंध में अगर कोई प्रकरण एसईसीएल प्रबंधन के संज्ञान में लाया जाता है, तो निश्चित रूप से, नियमानुकूल तरीक़े से करवाई की जाएगी। “
डॉ. सनीश चन्द्र
जनसम्पर्क अधिकारी
एसईसीएल

Hindi News के लिए जुड़ें हमारे साथ हमारे
फेसबुक, ट्विटरयूट्यूब, इंस्टाग्राम, लिंक्डइन, टेलीग्रामकू और वॉट्सएप, पर

Trusted by https://ethereumcode.net