Women'S Day Special : एक ऐसा गाँव जहां बेटियों से है घर की पहचान, बदल रही पुरुष प्रधान सोच
Women'S Day Special : एक ऐसा गाँव जहां बेटियों से है घर की पहचान, बदल रही पुरुष प्रधान सोच

रायपुर। अबतक आपने जितने भी घरों में नेमप्लेट देखे होगें उनमें घर के मुखिया (पुरुष) का नाम ही देखा होगा। विमेंस डे (Women’S Day Special) के खास अवसर पर हम आपको एक ऐसे गाँव के बारे में बता रहे हैं। जहां बने हर घर बेटियों के सम्मान की कहानी बयां कर रहे हैं। यह अनोखी परंपरा कहीं और नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ प्रदेश के बालोद जिले में चलाई जा रही है। जहां लोगों के घरों की पहचान घर के मुखिया (पुरुष) के नाम से नहीं बल्कि घर की बेटी के नाम से होती है।

दरअसल, प्रदेश के बालोद जिले के गांवों के स्थानीय लोगों प्रशासन की अनोखी मुहीम के तहत अपने घरों के बाहर नेमप्लेट पर अपनी बेटियों के नाम लिखवाते है। ऐसा इस उद्देश्य से किया जाता है ताकि लड़कियों की शिक्षा एवं समाज में उनकी पहचान को सशक्त बनाया जा सके। बता दें बालोद माओवाद से न के बराबर प्रभावित है। लगभग 2 महीने पहले इस मुहीम की शुरुआत की गई थी। इस पहल के तहत गांवों के घरों के बाहर परिवार की छात्राओं की नेमप्लेट लगाई गई हैं।

साक्षरता बढ़ाने के लिए शुरू की गई यह मुहिम

बालोद के कलेक्टर राजेश राणा ने इस मुहीम के विषय में बताया कि “लोगों को बच्चियों शिक्षा के महत्व के बारे में जागरूक करने के लिए और लड़कियों में साक्षरता बढ़ाने के लिए यह मुहिम शुरू की गई है।’ इसके साथ ही उन्होंने कहा- बालोद के विभिन्न गांवों में विभिन्न आयु वर्ग की करीब 2,700 लड़कियों के नाम की पट्टियां उनके घरों के बाहर लगाई गई हैं। मिली जानकारी के अनुसार स्थानीय जन प्रतिनिधियों, सरपंच एवं अधिकारियों के साथ विचार विमर्श के बाद प्रधानमंत्री की ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ मुहिम की सोच को साकार करने के मकसद से इस पहल की शुरुआत की गई थी।

लड़कियों में बढ़ रहा आत्म-सम्मान

बालोद कलेक्टर के इस मुहीम से वहां की लड़कियों में आत्म-सम्मान बढ़ रहा है। इस पहल की शुरुआत के कुछ समय बाद ही 12 ग्राम पंचायतों के इसके सफल परिणाम देखने को मिल रहे है। स्थानीय लोगों इसका बेहद सकारात्मक प्रभाव देखने को मिला है। बालोद की 11वीं कक्षा की एक छात्रा ने बताया कि “यह हमारे लिए सपना साकार होने जैसा है। इस मुहिम के कारण लड़कियों के प्रति गांवों के लोगों की सोच बदल रही है।” इसके साथ ही एक अन्य छात्रा ने बताया कि “इस प्रकार की मुहिम केवल एक जिले तक सीमित नहीं रहनी चाहिए, बल्कि यह राज्य के हर कोने में शुरू की जानी चाहिए ताकि लोगों को यह अहसास दिलाया जा सके कि लड़कियां किसी भी तरह लड़कों से कम नहीं हैं।”

पुरुष प्रधान सोच में आ रहा बदलाव

बता दें घरों के बाहर लगे नेमप्लेट का रंग हरा होता है। नेमप्लेट के हरे रंग का उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा देना है। बता दें इस मुहिम से माता-पिता अपनी बेटियों को स्कूल भेजने के लिए ही बस प्रेरित नहीं कर रही, बल्कि धीरे-धीरे उनकी पुरूष प्रधान सोच भी बदल रही है। इसके साथ ही पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने के लिए नेमप्लेट को हरे रंग से रंगा गया है और इस पर सफेद पेंट से घर की बेटियों के नाम लिखे जाते हैं।

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