रायपुर : छत्तीसगढ़ के प्रीमियम धान की कई प्रजातियां पाई जाती है। यह धान अपनी खुशबू और स्वाद के लिए पूरे देश भर में विख्यात हैं, और इन चावलों को देशभर के लोग बहुत अधिक पसंद भी करते है। जल्द ही इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित धान की एक किस्म ‘छत्तीसगढ़ देवभोग’ उत्तर प्रदेश के अयोध्या के आसपास के इलाकों में लहलहाएगी। एक निजी बीज कंपनी ने छत्तीसगढ़ देवभोग चावल के बीजों के लिए इंदिरा गांधी विश्वविद्यालय के साथ अनुबंध किया है। इस अनुबंध में कंपनी ने कृषि विश्वविद्यालय से 120 क्विंटल बीज की मांग की है। जिसके उपयोग से अयोध्या के आसपास के क्षेत्रों में करीब 1200 एकड़ खेत में इसका उत्पादन किया जाएगा।

IGKV ने किया है विकसित

छत्तीसगढ़ में चावल के 23,000 से भी अधिक किसमें पाई जाती है। लेकिन समय के साथ ज्यादातर किस में विलुप्त होती जा रही हैं। इसी के कारण अधिकतर किसानों को संरक्षित कर रखा गया है। छत्तीसगढ़ की पहचान यहां के चावल से होती है। छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा भी कहा जाता है। छत्तीसगढ़ के ज्यादातर चावल मध्यम और मोटे आकार के प्रीमियम चावल होते हैं। छत्तीसगढ़ के चावल की मार्केट में डिमांड काफी अधिक होती है। लेकिन इसकी उपज काफी कम है, जिस कारण इसका प्रोडक्शन आज कम हो गया। इस बात को ध्यान में रखते हुए कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के द्वारा ऐसे चावलों के प्रकारों का आविष्कार किया जा रहा है जो प्रीमियम रेंज की हो लेकिन उसका उत्पादन भी अधिक हो सके। जिससे यहां के किसानों को भी लाभ हो और चावल का निर्यात भी आसानी से किया जा सके। इसी कड़ी में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा स्वर्णा और जीरा शंकर चावल को मिलाकर छत्तीसगढ़ देवभोग चावल बनाया गया है।

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