खैरागढ़: खैरागढ़ उपचुनाव के नतीजे आ गए है और इसी के साथ कांग्रेस प्रत्याशी यशोदा वर्मा को खैरागढ़ की जनता ने बीस हज़ार से अधिक मतों से अपना विधायक चुना। खैरागढ़ उपचुनाव की घोषणाओं के बाद जब प्रत्याशियों के चेहरे सामने आये तो कांग्रेस ने खैरागढ़ की ब्लॉक उपाध्यक्ष यशोदा वर्मा को अपना प्रत्याशी चुना। खैरागढ़ के पूर्व विधायक देवव्रत सिंह को कड़ी टक्कर देने वाले भाजपा प्रत्याशी कोमल जंघेल की तुलना में यशोदा वर्मा का पलड़ा हल्का माना जा रहा था फिर सीएम भूपेश बघेल के खैरागढ़ को जिला बनाने के मास्टरस्ट्रोक ने पूरा खेल ही पलट दिया। तो चलिए जानते हैं खैरागढ़ के महासंग्राम में सबको मात देकर विधायक बनी यशोदा वर्मा के जीवन से जुडी कुछ महत्वपूर्ण बातें…

गाँव के सरपंच के तौर पर शुरू किया राजनितिक सफर

खैरागढ़ की नवनिर्वाचित विधायक यशोदा वर्मा ने अपना राजनितिक सफर अपने गाँव के सरपंच के रूप में शुरू किया था। सरपंच बनने के बाद उन्हें जनपद पंचायत का सदस्य बनाया गया और इसके बाद वो राजनांदगाव जिला पंचायत की भी सदस्य चुनी गयी। पार्टी में उनके कार्य को देखते हुए उन्हें खैरागढ़ कांग्रेस ब्लॉक उपाध्यक्ष भी बनाया गया।

कांग्रेस के 24 दावेदारों को पछाड़कर पाया था टिकट

जब खैरागढ़ के लिए कांग्रेस की चुनाव समिति प्रत्याशियों के नाम पर विचार कर रही थी, तब बैठक में 24 दावेदारों के नाम सामने आए थे। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की उपस्थिति में इन सभी नामों पर चर्चा हुई थी। बाद में कांग्रेस की चुनाव समिति ने 7 नामों को शार्ट लिस्ट किया था, जिसमे पूर्व विधायक गिरवर जंघेल, दशमत जंघेल, ममता पाल और पदम कोठारी जैसे बड़े नाम भी शामिल थे। छत्तीसगढ़ कांग्रेस की तरफ से इन सभी नामों को कांग्रेस केंद्रीय चुनाव समिति दिल्ली, भेजा गया था जिसके बाद कांग्रेस की केंद्रीय चुनाव समिति के प्रभारी मुकुल वासनिक ने यशोदा वर्मा का नाम फ़ाइनल किया था।

पार्टियों के बड़े बड़े नेताओ ने बनाया था साख का मुद्दा

खैरागढ़ उपचुनाव ना केवल वहां से नामांकन दाखिल करने वाले प्रत्याशियों ने लड़ा, बल्कि छत्तीसगढ़ के मौजूदा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह भी लड़ा यानी इस चुनाव में दोनों नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई थी। इसकी वजह भी बेहद ही साफ थी । छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद हुए चित्रकोट, मरवाही और दंतेवाड़ा उपचुनाव में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी । मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कि अगुवाई में कांग्रेस किसी भी सूरत में अपनी जीत का सिलसिला जारी रखना चाहती थी । यही वजह रही कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने खुद चुनावी कमान संभलकर रखी हुई थी और खैरागढ़ को जिला बनाने का वादा जनता से किया था, जो काम कर गया।

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