आज होगी पेगासस जासूसी विवाद पर सुनवाई, जांच पैनल की रिपोर्ट पर विचार कर सकता है SC
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नेशनल डेस्क। सुप्रीम कोर्ट की डिवीजन बेंच के फैसले ने एक अहम फैसला लिया है। कोर्ट के इस फैसले से उन लोगों को खासी राहत मिलेगी, जो दिल्ली आने-जाने या खर्च से बचने के लिए अपील नहीं करते थे।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट की डिवीजन बेंच के फैसले के तहत राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग यानी एनसीडीआरसी के फैसलों के खिलाफ अब संबंधित राज्यों के हाईकोर्ट में भी अपील प्रस्तुत की जा सकेगी।

कोर्ट की डिवीजन बेंच ने आदेश में कहा है कि आयोग के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। इससे उन लोगों को खासी राहत मिलेगी, जो दिल्ली आने-जाने या खर्च से बचने के लिए अपील नहीं करते थे। उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 लागू किया गया था, इसके तहत त्रिस्तरीय आयोग की व्यवस्था की गई थी।

इसमें जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर आयोग का प्रावधान है। हालांकि इसकी जगह अब राष्ट्रीय उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 ने ले ली है। पुराने अधिनियम को संशोधनों के साथ 20 जुलाई 2020 से लागू किया गया है। अब तक जिला स्तर पर मामले पर दिए गए फैसले से असंतुष्ट रहने पर राज्य स्तरीय आयोग में अपील का प्रावधान है।

राज्य उपभोक्ता संरक्षण आयोग के फैसलों के खिलाफ अपील के लिए एनसीडीआरसी यानी राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग की स्थापना की गई है, जिसका मुख्यालय दिल्ली में है। राज्य स्तरीय अन्य आयोग, ट्रिब्यूनल के फैसलों के खिलाफ संबंधित राज्य के हाईकोर्ट में अपील की जा सकती है, लेकिन अब तक एनसीडीआरसी यानी राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के फैसलों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में ही अपील का प्रावधान था, इस वजह से सैकड़ों मामलों पर अपील नहीं हो पाती थी। आयोग के फैसलों के खिलाफ अपील के लिए दिल्ली जाने और इस पर होने वाले खर्च से बचने के लिए लोग अपील करने से बचते थे।

परेशानी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पेश की गई थी विशेष अनुमति याचिका

दरअसल, इस परेशानी को लेकर एक मामला सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत किया गया था। इस पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्न की बेंच ने महत्वपूर्ण फैसला दिया है। इसमें कहा है कि एनसीडीआरसी यानी राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग संविधान के अनुच्छेद 227 के अंतर्गत एक ट्रिब्यूनल है, लिहाजा इस अनुच्छेद के तहत आयोग के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।

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