0 राज्यपाल से एक बार फिर ग्रामीणों ने लगाई गुहार

0 पीएचई, स्वास्थ्य मंत्री से लेकर स्थानीय विधायक का वादा अधूरा

रायपुर। विशेष संवादाता। टीआरपी
राज्य निर्माण से लेकर अब तक सूपेबेड़ा इलाके के हज़ारों ग्रामीण ज़हरीला पानी पीने को मजबूर हैं। साफ पानी की आस में राजधानी से महज़ 230 किमी. दूर इस इलाके के 1300 से ज्यादा ग्रामीणों की ओर से महेंद्र मानिकपुरी नामक युवा ने दूसरी दफा राज्यपाल सुश्री अनुसुइया उइके को पत्र लिखा है। ग्रामीणों का स्थानीय विधायक, पीएचई मंत्री और स्वास्थ्य मंत्री से भरोसा उठ गया है।

राज्यपाल द्वारा भी 3 साल पहले सूपेबेडा में ज़हरीले पानी की वजह से हुई मौतों के बाद यहां का दौरा किया गया था। तब विभागीय मंत्रियों ने तेल नदी से साफ पानी और 12 करोड़ रुपया खर्च कर फ़िल्टर प्लांट लगा कर घर-घर नल जल का वादा किया था। लेकिन 3 साल बीत गए और 107 मौत होने का दावा कर रहे ग्रामीण महेंद्र मानिकपुरी कहते है कि फिर 35 ग्रामीण बीमार हैं और अब तक शुद्ध पेयजल की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। उन्होंने कहा इसलिए ग्रामीणों को मौत से बचाने के लिए राज्यपाल को पत्र लिखकर उनके वादे और साफ पानी के लिए विनती की गई है। ग्रामीणों का कहना है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय अजित जोगी के वक्त से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह और मुख्यमंत्री बनने से पहले सीएम भूपेश बघेल ने भी राहत का वादा किया था, पर हालत अब भी वही है।

राज्यपाल के जवाब का सिर्फ 1 हफ्ते करेंगे इंतज़ार

THE RURAL PRESS से फोन पर चर्चा करते हुए पीड़ित ग्रामीण महेंद्र दीवान ने चेतावनी भरे अंदाज़ में कहा कि अब बहुत हो गया, हम ग्रामीणों ने तय कर लिया है कि राजयपाल को आखिरी बार साफ पानी के लिए पत्र लिख कर दिए हैं। राजनेताओं से उनका विश्वास उठ गया है। बताते हैं कि स्थानीय विधायक भी वादा करने में असमर्थता जताते हुए कहते हैं कि वो विपक्षी दल के हैं, इसलिए उनकी सुनवाई नहीं हो रही, इसलिए राज्यपाल को दिए खत के जवाब का उन्हें इंतज़ार है, और यह इंतज़ार भी सिर्फ एक हफ्ते तक ही करेंगे। अगर राहत या फिर कोई ठोस पहल नहीं की गई तो सूपेबड़ा के पीड़ित ग्रामीण राजधानी आकर प्रदर्शन करेंगे।

ये वादा और पानी ऐसा है ज़हरीला

तत्कालीन कलेक्टर नीलेश क्षीरसागर ने आश्वासन देते हुए कहा था कि छह महीने के भीतर सुपेबेड़ा में तेल नदी से साफ पानी उपलब्ध होने लगेगा। ‘तेल नदी से गांव तक पानी पहुंचाने के लिए केवल 12 करोड़ रुपये के बजट की जरूरत है। पूर्व में मुख्यमंत्री के यहां प्रदर्शन के दौरान गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू ने कहा था कि नल-जल संबंधी केंद्र सरकार की योजना के कारण हमने गांव में तेल नदी का पानी पहुंचाने की वर्तमान योजना को रोक दिया है। ग्रामीणों ने कहा तीन महीने में साफ पानी पिलाएंगे, यह बोला था। हम नहीं जानते कि केंद्र सरकार कौन है? हम तो राज्य सरकार और भूपेश बघेल को जानते हैं। राज्य का 1 लाख करोड़ से ज्यादा का बजट है, उसमें से क्या हमारी जान बचाने के लिए 12 करोड़ रुपये नहीं निकाले जा सकते? इतना पैसा तो मुख्यमंत्री राहत कोष में ही पड़ा होगा।

इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने भी अपनी रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि की कि सूपेबेड़ा के पानी में फ्लोराइड घुला हुआ है। वहीं इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा की गई मिट्टी की जांच में कैडमियम, क्रोमियम और आर्सेनिक जैसे भारी व हानिकारक तत्व पाए गए. ये सभी किडनी को नुकसान पहुंचाते हैं, जिसके चलते अब तक कई लोग मौत के मुंह में समाते जा रहे हैं।

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