जन्तु विज्ञान विभाग कलिंगा विश्वविद्यालय ने जलवायु परिवर्तन, सतत विकास और स्मार्ट कृषि (ICSSA-2023) पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया। सम्मेलन पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय भारत सरकार, नाबार्ड छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण बोर्ड, रायपुर द्वारा प्रायोजित किया गया था। और सम्मेलन को औद्योगिक प्रायोजक के तौर अनंत फिश एंड फीड, रायपुर भी शामिल हुए ।

उद्घाटन समारोह में सम्मानित गणमान्य व्यक्तियों श्री प्रेम कुमार (आई.एफ.एस., सचिव, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग, सीजी), डॉ. सुरेंद्र बाबू (महाप्रबंधक, नाबार्ड), डॉ. पी.के. घोष (निदेशक, आईसीएआर- राष्ट्रीय संस्थान) जैविक तनाव प्रबंधन विभाग), श्री दिलराज प्रभाकर (आईएफएस), डॉ. आर. श्रीधर (कुलपति., कलिंगा विश्वविद्यालय), डॉ. संदीप गांधी (कुलसचिव, कलिंगा विश्वविद्यालय) और प्रो. कृष्ण कुमार (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय उपस्थित थे।)डॉ एस बाबू जनरल मैनेजर नाबार्ड ने विभिन्न कृषि गतिविधियों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के बारे में बात की। उन्होंने इस बारे में बात करते हुए बताया कि कृषि कार्यो की वजह से १४ प्रतिशत ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होता है जिसमें धान के खेतों से लगभग २५ प्रतिशत कार्बन का उत्पादन होता है ।

उन्होंने सरकारी नीतियों के बारे में बताते हुए कहा कि सरकार जीरो कार्बन उत्सर्जन को कम करने के कई पालिसी बनाई है जिसमें पब्लिक प्राइवेट और सरकारी संस्थाओं को एकजुट होकर काम करने की जरूरत है।श्री प्रेम कुमार ने ऑस्ट्रेलिया, मेडागास्कर और अन्य क्षेत्रों में मानव द्वारा विलुप्त होने के बारे में भी बात की। उन्होंने छात्रों से जलवायु पुलिस बनने का भी आग्रह किया। डॉ. पी. के. घोष, आईसीएआर-। राष्ट्रीय जैविक तनाव प्रबंधन संस्थान, रायपुर ने जलवायु में परिवर्तन के कारण कृषि संस्कृति के सामने आने वाले मुद्दों और चुनौतियों के बारे में बात की। उन्होंने धान के खेतों और पशु फार्मों से मीथेन उत्सर्जन के बारे में भी बात की।

उन्होंने पारंपरिक रूप से माने जाने वाले धान के खेतों के मीथेन के सबसे बड़े उत्सर्जक होने के मिथक को भी खारिज कर दिया।इस कार्यक्रम में प्रोफेसर कृष्ण कुमार, जेएनयू भी मौजूद थे। उन्होंने आईपीसीसी रिपोर्ट और इसके महत्व और वास्तविक परिवर्तन डेटा को समझने के बारे में बात की। डॉ. गायत्री वीके, वैज्ञानिक, इंडियन मैटेरोलाजिकल विभाग भारत सरकार ने इस बात पर प्रकाश डाला । कि मौसम का पूर्वानुमान डेटा जलवायु में परिवर्तन के अनुकूल होने में कैसे मदद करता है।

ICSSA 2023 में विश्व के अनेक वैज्ञानिकों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई जिनमें अंतर्राष्ट्रीय वक्ता के तौर पर, मैक्सिको से डॉ. एडगर गोंजालेज, एक्रोन विश्वविद्यालय, ओहियो, संयुक्त राज्य अमेरिका के डॉ. रुम्मन हुसैन, और डॉ. आलोक पांडे, लैंकेस्टर विश्वविद्यालय, यूके शामिल हुए। पांडिचेरी विश्वविद्यालय की डॉ. एस. गजलक्ष्मी ने संयंत्र माइक्रोबियल ईंधन कोशिकाओं के साथ एकीकृत धान के खेत में ग्रीनहाउस गैसों के शमन, पोषक तत्वों और ऊर्जा वसूली के बारे में बात की। इस कार्यक्रम में दुनिया भर के छात्रों के अनुसंधान विद्वानों और संकायों द्वारा ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों मोड में 230 पंजीकरण दर्ज किए गए जिनमें से देश के विभिन्न हिस्सों से 65 सम्मिलित विद्वानों ने अपने अपने शोध जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित विचार साझा किए ।

उपस्थित लोग भारत के विभिन्न राज्यों जैसे मणिपुर, केरल, पंडिचेरी, आंध्र प्रदेश, दिल्ली, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, मिजोरम, हरियाणा, छत्तीसगढ़, गुजरात, बिहार, उड़ीसा आदि से थे। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. मनोज सिंह, संयोजक, ICSSA 2023 द्वारा किया गया। आयोजकों को प्रतिभागियों से उत्साहजनक और सकारात्मक प्रतिक्रिया भी मिली, जिन्होंने जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और शमन के साथ-साथ सतत कृषि दृष्टीकोण के बारे में बहुत कुछ सीखा।