NALA RAKH

0 राजस्व अमले को हकीकत की नहीं है जानकारी 0 गड्ढा भरने के नाम पर ले ली अनुमति 0 परिवहन नियमों का भी हो रहा है उल्लंघन

धरमजयगढ़। जिले के छाल हायर सेकंडरी स्कूल परिसर में हजारों मीट्रिक टन FLY ASH डंपिंग का मामला सुलझने के बजाय और उलझता जा रहा है। इस मामले में एक के बाद एक सनसनीखेज खुलासे हो रहे हैं। जिला पर्यावरण संरक्षण अधिकारी ने न जाने किस टीम की रिपोर्ट पर यहां FLY ASH डंप करने की अनुमति दे दी, जिसने यह भी नहीं बताया कि यहां से चंद कदम की दूरी पर ही एक प्राकृतिक नाला है, जिसके पानी का इस्तेमाल यहां के किसान अपने खेतों के लिए करते हैं।

TRP न्यूज़ ने दो दिन पहले भी इस खबर का प्रकाशन किया था जिसमें नियम-कायदों को ताक पर रखकर स्कूल परिसर में बिजली करखाने की राख डंप किये जाने की रिपोर्ट थी। यहां के प्राचार्य ने इस बात की जानकारी दी थी कि सरपंच ने कुछ ही ट्रक राख यहां डंप कर जमीन को समतल करने की बात कही थी, मगर यहां तो भारी मात्रा में राख फेंकी जा रही है। प्राचार्य ने मीडिया से चर्चा में आशंका जताई थी कि बाजू में ही नाला है, बारिश में यहां से राख नाले में बही तो किसानों के खेत बर्बाद हो जायेंगे।

10 हजार मीट्रिक टन FLY ASH फेंकने की अनुमति..!

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि स्कूल के पास ही खाली पड़ी जमीन पर गड्ढे (लो लाइंग एरिया) बताकर उसे समतल करने के नाम पर पंचायत और स्कूल प्रबंधन की सहमति लेकर यहां पर 10 हजार मीट्रिक टन राख का डिस्पोजल करने की अनुमति पर्यावरण संरक्षण अधिकारी अंकुर साहू से ले ली गई।

अनुमति में स्कूल और नाले का उल्लेख नहीं

इस मामले में आश्चर्यजनक रूप से यह तथ्य सामने आया है कि स्कूल परिसर में फ्लाई एश डंपिंग की अनुमति के दस्तावेज में छाल के सिर्फ 3 खसरा नम्बरों का उल्लेख है जहां 10 हजार मीट्रिक टन राख डंपिंग के बारे में नियम तय किये गए हैं। इस अनुमति पत्र में कहीं भी स्कूल या उसके परिसर का उल्लेख नहीं है, और न ही बाजू से होकर बहने वाले नाले का भी उल्लेख नहीं है। हायर सेकंडरी स्कूल छाल के प्राचार्य लोचन राठिया से TRP न्यूज़ ने बात की तो उन्होंने बताया कि जहां पर राख फेंकी जा रही है, वहां से बमुश्किल 15 कदम की दूरी पर ही नाला है, जो यहां से बहते हुए खेतों की ओर जाता है। सच कहें तो यहां हवा-हवाई सर्वे हुआ, और लोकल अथॉरिटीज के नाक के नीचे से पूरा काम हो गया और यहां की जनता को कानोंकान खबर तक नहीं हुई। अनुमति वाले पत्र में छाल के तहसीलदार कार्यालय का रिसिप्ट है मगर इस अनुमति की कोई भी जानकारी यहां के तहसीलदार को नहीं है।

आखिर किसकी है जमीन..?

पर्यावरण संरक्षण अधिकारी ने अनुमति पत्र में ग्राम पंचायत के 3 खसरा नम्बरों का उल्लेख किया है, उनमें से एक प्लॉट स्कूल के नाम पर है, जबकि अन्य दो प्लाट सरकारी जमीन के रूप में दर्ज है, यानी दो प्लाट भी हाई स्कूल के हैं या नहीं यह फिलहाल अपुष्ट है। वहीं, जिस जमीन में राख डाली जा रही है, सरकारी रिकॉर्ड के हिसाब से वहां करीब सौ पेड़ मौजूद हैं। जिनमें आम, पीपल, अरकेसिया व अन्य प्रजाति के पेड़ हैं। यहां राख डंप करने की अनुमति कैसे दे दी गई।

नदी-नाले से 5 सौ मीटर दूर हो ASH डंपिंग

भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय की गाइडलाइन में स्पष्ट है कि बिजली कारखाने से निकाले गए फ्लाई ऐश का डंप नदी-नाले से 5 सौ मीटर की दूरी पर किया जाये, मगर सच तो ये है कि प्रदेश में कहीं भी इस नियम का पालन नहीं किया जा रहा है। छाल में तो बिलकुल पालन नहीं किया जा रहा है। यहां तो नाले के बाजू में ही कथित लो लाइंग एरिया को भरा जा रहा है। प्रशासन और पंचायत तथा पॉवर प्लांट की मनमानी का इससे बड़ा नमूना और क्या हो सकता है।

परिवहन नियमों का खुला उल्लंघन

नियम के मुताबिक जिस स्थल पर FLY ASH डंप किया जाना है वहां पहले चारों ओर मिट्टी से तटबंध तैयार किया जाना है, उसके बाद राख डालकर उसके ऊपर डेढ़ मीटर मिट्टी की पर्त बिछाकर जमीन को समतल किया जाना है, मगर यहां मिट्टी का घेरा तो नजर ही नहीं जा रहा है, यह पूरी तरह गलत है।

परवरण संरक्षण अधिकारी अंकुर साहू ने SKS पावर जेनरेशन लिमिटेड को जो अनुमति दी है उसमे स्पष्ट उल्लेख है कि प्लांट से राख का परिवहन ऐसे वाहन में किये जाये जो TANKER या BULKER हो, या फिर मैकेनिकली डिजाइन्ड कवर्ड ट्रक हों। गौर करें तो पूरे प्रदेश में BULKER का इस्तेमाल केवल सीमेंट कंपनियों तक FLY ASH पहुँचाने के लिए किया जाता है। बाकि स्थान पर राख पहुँचाने के लिए खुली ट्रकों का इस्तेमाल हो रहा है, जिसे केवल तिरपाल से ढंक दिया जाता है। अरुण साहू हमें आखिर तक इसी तरह तिरपाल ढंके ट्रक को ही “मैकेनिकली डिजाइन्ड कवर्ड ट्रक” बताते रहे, जबकि पर्यावरण मंत्रालय की गाइडलाइन में इस ट्रक और BULKER तथा TANKER की तस्वीर डालकर समझाया गया है। दरअसल मैकेनिकली डिजाइन्ड कवर्ड ट्रक का मतलब ट्रक के ऊपर के हिस्से को भी लोहे से पूरी तरह कवर्ड किये हुआ होना चाहिए, मगर प्रदेश में कहीं भी इस तरह की ट्रक नजर नहीं आती है। नीचे वही तस्वीर प्रदर्शित है :

नियम के मुताबिक FLY ASH को प्लांट से गीला लेकर ही निकलना चाहिए मगर ऐसा बहुत ही कम किया जाता है। जिसके चलते पूरे मार्ग में ट्रक में लगाई गई तिरपाल उड़ती रहती है और उसमे से सूखी राख भी हवा में घुलकर वातावरण को प्रदूषित करती है।

शिक्षा अधिकारी को नहीं है जानकारी

स्कूल परिसर में राख डंप किये जाने की जानकारी रायगढ़ जिले के DEO बखला को TRP न्यूज़ के माध्यम से ही मिली। उन्हें इस बात का पता ही नहीं था। उन्होंने धरमजयगढ़ के BEO से संपर्क करने को कहा। BEO रवि सारथी ने केवल इतना बताया कि जमीन स्कूल की है और जहां राख फेंकी जा रही है,वहां प्राचार्य के लिए बनाया गया पुराना आवास है जो जर्जर हो गया है। BEO को भी इस बात का पता नहीं है कि यहां कितनी राख फेंकी जानी है।

नियम-कानून के उल्लंघन का नमूना

रायगढ़ जिले के छाल इलाके के सरकारी स्कूल में नियम विरुद्ध तरीके से फेंकी जा रही राख तो एक नमूना भर है, सच तो ये है कि ऐसा पूरे प्रदेश में किया जा रहा है। रायगढ़ जिले में ही कई स्थानों पर खुले में राख फेंक दी गई है, जबकि कोरबा जिले में तो शहरी आबादी के आसपास ही राख का पहाड़ खड़ा कर दिया गया है।

सच तो यह है कि जो भी करखाने कोयला आधारित बिजली तैयार करते हैं उसके ऊपर वहाँ से उत्सर्जित राख का शत -प्रतिशत इस्तेमाल करने की भी जिम्मेदारी है, मगर ऐसा नहीं किया जा रहा है। शासन-प्रशासन को इस ओर ध्यान देने की जरुरत है।

उच्च न्यायालय में चल रहा है मामला

बता दें कि कोरबा सहित अन्य जिलों में नियम विरुद्ध तरीके से राख डंप किये जाने के खिलाफ उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की गई है। और वास्तविकता जानने के लिए हाई कोर्ट के निर्देश पर ही न्याय मित्रों की एक टीम कोरबा दौरे पर गई थी। इस टीम ने न्यायालय में अपनी रिपोर्ट दे दी है, जिस पर अगली सुनवाई में चर्चा होगी। सोचने वाली बात यह है कि इस तरह का प्रकरण न्यायालय में चल रहा है, इसके बावजूद पर्यावरण संरक्षण के लिए जिम्मेदार अमला कायदों को ताक पर रखकर इसके लिए अनुमति दे रहा है। यह गंभीर मसला है। इस पर विचार करते हुए पूरे प्रदेश में FLY ऐश डंप करने के नियम-कायदो का कठोरता से पालन करना चाहिए।

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