ISRO ने चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) की पहली ऑर्बिट मैन्यूवरिंग सफलतापूर्वक पूरी कर ली है। यानी उसकी पहली कक्षा बदल दी गई है। अब वह 42 हजार से ज्यादा की कक्षा में पृथ्वी के चारों तरफ अंडाकार चक्कर लगा रहा है।

31 जुलाई 2023 को चंद्रयान-3 धरती से दस गुना दूर जा चुका होगा। इसरो वैज्ञानिक एपोजी में बदलाव करके उसकी ज्यादा दूरी को बढ़ाते रहेंगे। तब तक बढ़ाएंगे जब तक वह धरती से करीब 1 लाख किलोमीटर दूर नहीं पहुंच जाता। 17 अगस्त को प्रोपल्शन सिस्टम चंद्रयान-3 के लैंडर-रोवर से अलग हो जाएगा। प्रोपल्शन मॉड्यूल के अलग होने के बाद लैंडर को चंद्रमा की 100X30 किलोमीटर की कक्षा में लाया जाएगा। इसके लिए डीबूस्टिंग करनी होगी। यानी उसकी गति कम करनी पड़ेगी। ये काम 23 अगस्त को होगा।

23 अगस्त को चंद्रमा पर लैंड करेगा यान
चंद्रयान-3 मिशन का मुख्य उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंडिंग और घूमने में एंड-टू-एंड क्षमता का प्रदर्शन करना है। 23 अगस्त को चंद्रयान-3 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करेगा। यह क्षेत्र बेहद ठंडा है। इस ध्रुव पर अभी कोई देश पहुंच नहीं पाया है।

चंद्रमा पर निशान छोड़ेगा भारत
अंतरिक्ष यान में छह पहियों वाला लैंडर और रोवर मॉड्यूल है, जो चंद्रमा की सतह से संबंधित डेटा प्रदान करने के लिए पेलोड के साथ कॉन्फिगर किया गया है। रोवर के पिछले पहिये, जिसका नाम प्रज्ञान है। वे जब चंद्रमा की सतह पर चलेंगे तो इसरो और राष्ट्रीय प्रतीक के निशान छोड़ेंगे। इसरो ने अपनी वेबसाइट पर कर्टेन रेजर वीडियो साझा किया है।

श्रीहरिकोटा ने चंद्रयान-3 ने भरी उड़ान
शुक्रवार दोपहर 2:30 बजे सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से LVM3 रॉकेट ने उड़ान भरी, जो चंद्रयान को 179 किलोमीटर ऊपर तक ले गया। उसके बाद रॉकेट ने चंद्रयान-3 को आगे की यात्रा के लिए धकेल दिया। चंद्रयान की चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग होते ही भारत यह सफलता पाने वाले देशों की सूची में शामिल हो जाएगा।

अब तक अमेरिका, रूस और चीन को चंद्रमा पर पहुंचने में सफलता मिली है। अमेरिका और रूस को कई बार के प्रयास के बाद सफलता मिली। चीन अपने पहले मिशन में ही सफल होने वाला इकलौता देश है। भारत ने 2019 में चंद्रयान-2 मिशन लॉन्च किया था। 22 जुलाई को चंद्रयान-2 चंद्रमा पर भेजा गया, लेकिन सात सितंबर को मिशन के लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान की चंद्रमा पर हार्ड लैंडिंग हुई। इसके बाद संपर्क टूट गया।