नई दिल्ली। पृथ्वी पर कई घटनाएं ऐसी होती हैं जो कभी-कभी ही होती हैं। इनमें कुछ पृथ्वी के अपनी धुरी और सूर्य के चारों ओर की जा रही परिक्रिमा के कारण होती हैं। इनमें सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण जैसी कई खगोलीय घटनाएं शामिल होती हैं। इन्हीं में एक घटना ‘जीरो शैडो डे’ होती है। धरती के कई हिस्‍सों में यह विशेष खगोलीय घटना साल में दो बार आती है, जब इसे देखा जाता है। अब सवाल ये उठता है कि ये जीरो शैडो डे क्या है और क्यों मनाया जाता है? ये घटना किन कारणों से होती है?
सबसे पहले जानते हैं कि जीरो शैडो घटना क्‍या है? बेंगलुरू में 25 अप्रैल 2023 को दोपहर 12 से 12.30 बजे के बीच लोगों ने जीरो शैडो का अनुनभव किया। इस मौके पर बच्चों ने सूर्य और उसके रोशनी की वजह से बन रही छाया की तस्वीरें लीं। लोगों ने इस खास मौके को कैमरों में कैद किया. यह वह दिन होता है, जब दिन के खास समय पर सूर्य हमारे सिर के ठीक ऊपर आ जाता है। इस कारण हमारी छाया ही नहीं बन पाती है। इस स्थिति को जीरो शैडो और इस खास दिन को जीरो शैडो डे कहा जाता है।

कैसे बनती है जीरो शैडो की स्थिति
जीरो शैडो डे की पिछली घटना इसी साल अप्रैल में हो चुकी है और अब कल यानी 18 अगस्‍त 2023 को ये घटना फिर होने वाली है। कल दोपहर आपकी परछाई आपका साथ छोड़ने वाली है। इस खास स्थिति की वजह पृथ्वी के घूर्णन की धुरी का झुकाव होती है, जो पृथ्वी के सूर्य की परिक्रमा के तल के लंबवत होने की जगह उससे 23.5 डिग्री तक झुकी होती है। इसी वजह से सालभर सूर्य की स्थिति उत्तर और दक्षिण के बीच बदलती रहती है. बता दें कि हर दिन दोपहर 12 बजे सूर्य हमारे सिर के ठीक ऊपर नहीं आ पाता है। इसी झुकाव की वजह से साल भर के मौसमों में भी बदलाव होते हैं।

कब दिन और रात होते हैं बराबर
सालभर में सूर्य के उत्तर और दक्षिण दिशा में आते-जाते दिखने की स्थिति को भारतीय संस्कृति में उत्तरायण व दक्षिणायन के नाम से भी पहचाना जाता है. दक्षिण से उत्तर की ओर जाते दिखने की क्रिया 22 दिसंबर से शुरू होती है और सामान्‍य तौर पर 21 मार्च को सूर्य भूमध्य रेखा के ठीक ऊपर आ जाता है । यही वह दिन होता है, जब दोपहर को इस रेखा पर कोई छाया नहीं बनती है । इसी दिन धरती पर दिन और रात बराबर होते हैं. इसे संपात, विषुव या इक्यूनॉक्स कहा जाता है. इस साल ये स्थिति 25 अप्रैल को बनी थी. जीरो शैडो की स्थिति कर्क और मकर रेखा के पास के क्षेत्रों में ही बनती है. इस दिन सूर्य की किरणें पृथ्वी की सतह के करीब-करीब लंबवत होती हैं ।

साल में दो ही बार होता है ऐसा
सामान्‍य तौर पर 21 मार्च की घटना के बाद 21 जून से सूर्य दक्षिण की ओर जाता दिखने लगता है और 21 सितंबर को फिर संपात का दिन आता है. इस तरह पृथ्वी की 23.5 डिग्री अक्षांश उत्तर और दक्षिण के बीच यानि कर्क रेखा व मकर रेखा के बीच ही जीरो शैडो की स्थिति बन पाती है. ऐसा इन दोनों रेखाओं के बीच हर जगह साल में दो ही बार हो पाता है. इस बार साल में दूसरी बार ये घटना कल यानी 18 अगस्‍त 2023 को होगी.

मौसम पर क्‍या पड़ता है असर
जीरो शैडो घटना का मौसम पर खास असर नहीं होता है. अगर स्थानीय मौसमी प्रभावों को नजरअंदाज कर दिया जाए तो सामान्‍य तौर पर यह दिन इलाके का ज्‍यादा गर्मी वाला दिन होता है. बता दें कि कर्क रेखा पर यह स्थिति 21 जून को आती है और भारत में इस दिन ज्‍यादातर जगह मानसूनी बादल आ जाते हैं. ऐसे में मध्य भारत में कई जगह जीरो शैडो स्थिति को नहीं देखा जा सकता है । फिलहाल मौसम साफ है और देश के ज्‍यादातर हिस्‍सों में ठीकठाक गर्मी पड़ रही है । लिहाजा, उम्‍मीद है कि कल देश के ज्‍यादातर हिस्‍सों में इस घटना को देखा जाएगा. बता दें कि जीरो शैडो डे अलग-अलग शहरों में अलग तारीखों को पड़ सकता है ।

पृथ्वी की परिधि मापने का दिन
जीरो शैडो डे को खगोलीय गणना के लिहाज से भी अहम माना जाता है । वैज्ञानिक इस घटना को पृथ्वी की परिधि मापने के लिए भी इस्‍तेमाल करते हैं । ऐसी गणना हमारे खगोलशास्त्री 2000 साल पहले भी करते थे । इसके जरिये आज पृथ्वी का व्यास और पृथ्वी की घूर्णन की गति भी मापी जाती है । ऐसा दो जगहों पर जीरो शैडो के समय के अंतर के जरिये पता किया जाता है । इतना ही नहीं इस खास दिन सूर्य से आने वाली किरणें जब उत्तल यानी कॉन्वेक्स लेंस से गुजरती हैं तो वे एक ही बिंदु पर पड़ती हैं. वहीं, आम दिनों में ऐसा नहीं होता है । जीरो शैडो डे पर लेंस का उपयोग करना भी ज्यादा आसान और कारगर होता है ।