रायपुर। छत्तीसगढ़ के नागरिकों 5 माह पहले ईडी और आईटी के बारे में कुछ भी पता नहीं था। लेकिन बीते पांच महीने से जिस तरह से भ्रष्टाचारी नेताओं और अधिकारियों के खिलाफ ईडी और आईटी की ताबरतोड़ छापेमारी के बाद छत्तीसगढ़ के लोगों को भी आईटी और ईडी की ताकतों का पता चल गया है और दोनों ही डिपार्टमेंट अब बोलचाल की भाषा में लोगों की जुबान पर आने लगा है।

सर्वे मैनेजेबल तो नहीं टिकट की दौड़ में शामिल दावेदारों, विधायकों,मंत्रियों के अलावा पूर्व मंत्रियों को जितना डर अपनी पार्टी के कामकाज और दिशा निर्देश व मापदंड से नहीं हो रहा है उससे कहीं ज्यादा डर मौजूदा दौर में हो रहे सर्वे रिपोर्ट से हो रहा है। इनके बीच चर्चा भी आम है कि पता नहीं सर्वे का मापदंड क्या है और किस आधार पर इसे सार्वजनिक किया जा रहा है। इनके बीच इस बात की अटकलें भी लगाई जा रही है कि कहीं मैनेजेबल तो नहीं। इनके लिए यह भी शोध का विषय है कि कथित सर्वे के पीछे विरोधी दल का हाथ तो नहीं। या फिर अपने बीच से ही कोई विभीषण की भूमिका तो नहीं निभा रहा। पता नहीं कौन कब किस रूप में आ जाए। बहुरुपिया तो दूर से समझ में आ जाता है पर आस्तिन में रहने वालों की जानकारी ही नहीं हो पाता। डसने के बाद पता चलता है कि आस्तिन में भी कुछ इसी तरह के लोग छिपे थे। बहरहाल दिन प्रतिदिन इंटरनेट मीडिया में प्रसारित हो रहे सर्वे ने इनकी तो हालत ही खराब कर दी है। एक चर्चा यह भी हो रही है कि मजे लेने के लिए इसे एडिट भी कर दे रहे हैं।

जाहिर है इन दिनों चौक-चौराहों से लेकर पान दुकान और सरकारी कार्यालयों सभी जगह चुनावी चर्चा हो रही है। शहर में सुबह शाम चर्चा चल रही है कि अब देखो केंद्र सरकार के अलावा भाजपा भी आइटी बना लिया है। भाजपा की आइटी टीम पता नहीं कहां-कहां जाएगी। कुछ तो मासूमियत से नाम भी गिनाने लगे। पक्का है बास पहले इनके यहां,फिर यहां-यहां। एक ने कान में धीरे से कहा। ये वो आइटी नहीं है भाई। ये आइटी सेल है। जो भीतर होगा उसे बाहर आपके मोबाइल पर पढ़ाने के लिए है ये आइटी।