श्याम वेताल

छत्तीसगढ़ चुनावी – ताप से तप रहा है । हर चौक – चौराहे के अपने अनुमान हैं , अपने – अपने दावे हैं । कोई कहता है बीजेपी आ रही है तो कोई ताल ठोक कर कह रहा है कि कांग्रेस की वापसी तय है । दोनों दलों के नेता एक दूसरे पर कीचड़ की फेका – फेकी में व्यस्त हैं। जनता से जुड़े मुद्दे और राज्य के विकास की बातें कम हो रहीं हैं । आम मतदाता चुप है । वह सुन सबकी रहा है , करेगा अपने मन की ।

यह चुनाव प्रलोभनो का होकर रह गया है । मतदाताओं के लिए लालच के पिटारे खोल दिये गए हैं । कांग्रेस ने पिछला चुनाव इसी के बूते पर जीता था । किसानों के लिए क़र्ज़ माफ़ी और धान के समर्थन मूल्य में वृद्धि , बिजली बिल हाफ जैसी घोषणाओं ने कांग्रेस को ताज़ पहनाया था । इस बार भी पार्टी ने जंग जीतने के लिए इसी हथियार को अपनाया है । भाजपा भी पीछे नही है । कांग्रेस की फ्रीबीज घोषणाओं से मुक़ाबले के लिए भाजपा ने भी ऐसे कुछ वादे किए हैं ।

… लेकिन सवाल उठता है कि चुनाव जीतने के लिए क्या ऐसी घोषणाएं काफ़ी हैं ? मतदाता वोट देते समय सिर्फ घोषणाओं या वादों को नही याद रखता , वह यह भी देखता है कि भविष्य में मेरा कोई काम सरकारी दफ्तर में फंसता है या सत्ता में बैठे लोगों से मिलना पड़ता है तो उसे तवज्जो मिल सकेगी या उसे निराश होना पड़ेगा ? वर्ष 2018 के चुनाव में भाजपा की पराजय के पीछे एक बड़ा कारण यह भी था कि आम आदमी हर सरकारी कार्यालय में तिरस्कृत होकर लौटता था । नेता सीधे मुंह बात नही करते थे और वह निराश होकर उसी तरह वापस होता था जैसे थाने से लौटता है । यह ठीक है कि हर किसी का हर काम हो जाय यह सम्भव नही है लेकिन सम्मानपूर्वक बात कर काम न हो सकने की वज़ह तो बताई जा सकती है । लगातार 15 साल तक सत्ता में बने रहने के कारण सरकारी अमले बदमिजाज हो गए थे और वही गुस्सा आम मतदाता ने चुनाव के समय निकाला । इसके अलावा भ्रष्टाचार की करतूतें भी मतदाता को जागरूक कर गईं । आम आदमी के काम आसानी से न हो और उसे तिरस्कृत होना पड़े तो वह ज्यादा निराश हो जाता है ।

लिहाज़ा , पार्टियां कितनी भी फ्रीबीज का वादा करें , मतदाता के मन से उस तिरस्कार और उससे उपजी निराशा को खत्म नही कर सकतीं जो उसने झेली हैं । विडंबना यह है कि कोई पार्टी यह घोषणा नही करती कि सत्ता में आने पर हम सरकारी कार्यालयों में आम आदमी का काम आसानी से कराने के लिए वचनबद्ध हैं और वहां आम आदमी का तिरस्कार नही होगा । सत्तारुढ़ हर नेता पूरे पांच साल हर व्यक्ति से उसी प्रेम और विनम्रता से बात करेगा जैसे वोट लेने से पहले करता है ।

इस तरह की घोषणा करने का साहस किसी दल के पास नही है । यदि किसी ने साहस जुटा कर मतदाताओं के हित में ऐसी घोषणा की तो निश्चित जानिए इतनी सारी फ्रीबीज की जरूरत ही नही पड़ेगी ।