0 कोर्ट में उपस्थित होकर जवाब देने का आदेश

बिलासपुर। किसी भी आरोपी की गिरफ्तारी से पहले भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) के प्रावधानों का पालन किया जाना अनिवार्य है, मगर ऐसा नहीं करना राजधानी के 3 पुलिस अधिकारियों को महंगा पड़ गया है। एक मामले में पीड़ित की याचिका पर हाईकोर्ट ने रायपुर के सिविल लाइन सीएसपी, थाना प्रभारी और एक इंस्पेक्टर को अवमानना का दोषी मानते हुए नोटिस जारी किया है। इनके खिलाफ आरोप तय करने पर 9 फरवरी को विचार किया जाएगा।

मिली जानकारी के मुताबिक पंडरी, रायपुर के अमित जायसवाल ने महादेव घाट के मनोज पांडेय के खिलाफ 2 जून 2023 को अवैध वसूली की रिपोर्ट दर्ज कराई। पुलिस ने उसी रोज रात में पांडेय को गिरफ्तार कर लिया। अगले दिन उसे न्यायालय में पेश किया गया। कोर्ट ने उसे रिमांड पर भेज दिया। इस मामले में पांडेय ने 20 जुलाई 2023 को पुलिस से संपर्क किया और उसने अपनी गिरफ्तारी के लिए सीआरपीसी की धारा 41 एक (बी) 2, के प्रावधानों का पालन किए जाने के संबंध में चेक लिस्ट की मांग की। पुलिस ने बताया कि ऐसी कोई चेक लिस्ट तैयार नहीं की गई है।

बिना वारंट गिरफ्तार करने का लगाया आरोप…

इस मामले में पुलिस का जवाब मिलने के बाद आरोपी ने हाई कोर्ट में पुलिस के खिलाफ अवमानना याचिका लगाई। याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने अर्नेश कुमार विरुद्ध बिहार सरकार के मामले में किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए प्रावधान तय किए हैं, जिसका पालन करना पुलिस के लिए अनिवार्य है। मगर उसकी गिरफ्तारी में जानबूझकर पुलिस ने प्रावधानों का पालन नहीं किया। उसे बिना वारंट और सीआरपीसी की चेक लिस्ट का पालन किए बिना गिरफ्तार किया गया।

गाइडलाइन का करना था पालन…

जस्टिस संजय के अग्रवाल की बेंच ने सुनवाई में पाया कि शिकायत दर्ज करने के तत्काल बाद पुलिस ने गिरफ्तारी कर ली और कोर्ट से रिमांड ले लिया। इसमें सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय की गई गाइडलाइन का पालन किया जाना चाहिए था।

अवमानना के दोषी पाए गए तीनों अधिकारी

कोर्ट ने कहा कि संबंधित पुलिस अधिकारियों सीएसपी मनोज ध्रुव, दीनदयाल नगर थाना प्रभारी गौरव साहू तथा इंस्पेक्टर दीपक पासवान ने जानबूझकर नियमों का उल्लंघन किया है। कोर्ट ने पुलिस के तौर तरीकों को गलत मानते हुए तीनों को अवमानना का दोषी पाया है। उन्हें व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर 9 फरवरी को जवाब देने कहा गया है। इस दिन उनके खिलाफ आरोप तय किए जाएंगे।

मजिस्ट्रेट पर भी की टिप्पणी

हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान मजिस्ट्रेट पर भी टिप्पणी करते हुए कहा है कि रिमांड पर देने से पूर्व पुलिस की नियम विरुद्ध कार्रवाई पर गौर नहीं किया गया।

गौरतलब है कि पुलिस अक्सर कई मामलों में शिकायत के तत्काल बाद आरोपियों की गिरफ़्तारी कर लेती है। हालांकि गिरफ्तारियां भी परिस्थितियों के मुताबिक की जाती है, मगर कई ऐसे प्रकरण होते हैं, जिनमें जांच की जरुरत होती है और इनमे 7 साल से काम की सजा होती है। ऐसे प्रकरण में आरोपी की बाद में भी गिरफ़्तारी की जा सकती है। इस तरह के मामलों में पुलिस का जल्दबाजी करना उसके लिए उल्टा पड़ सकता है। सुप्रीम कोर्ट के प्रावधानों का पालन किये बिना आरोपी को गिरफ्तार करने का जो प्रकरण सामने आया है, ऐसे प्रकरण अक्सर प्रकाश में आते हैं मगर पुलिस की कार्रवाई को चुनौती देने के लिए कोई आगे नहीं आता। इस बार कानून के जानकार ने पुलिस की कार्रवाई को कोर्ट में चुनौती दे दी है। बहरहाल 9 फरवरी को मामले में पुलिस अधिकारियों को जवाब प्रस्तुत करना है, इसके बाद न्यायालय क्या फैसला करती है इस पर सभी की नजर होगी।