0 सीपीआई नेता मनीष कुंजाम का पार्टी के राज्य सचिव पद से इस्तीफा

रायपुर। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी यानी सीपीआई के पूर्व विधायक मनीष कुंजाम ने पार्टी के राज्य सचिव के पद से इस्तीफा देते हुए, पार्टी नेतृत्व पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने चुनाव चिन्ह के मामले में लापरवाही को सोची-समझी साजिश कहा है। कुंजाम ने कहा कि 1984 से जिस पार्टी से जुड़ा, उसने मेरे राजनैतिक जीवन में सबसे बड़ा धोखा दिया। सीपीआई के किसी भी पद से जुड़े रहना मेरे जीवन के साथ अन्याय होगा। विधानसभा चुनाव में पार्टी ने अंतिम समय में पार्टी का सिंबाल नहीं दिया, इसलिए उन्होंने पार्टी के सारे पद छोड़ दिए हैं।

विधानसभा चुनाव में मिली हार

पूर्व सीपीआई नेता मनीष कुंजाम कोंटा विस क्षेत्र से दो बार विधायक रहे हैं। मगर हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में कोंटा में ही उन्हें हार का सामना करना पड़ा। माना जा रहा है कि पार्टी का चुनाव चिन्ह नहीं मिलने के कारण उनकी यह हार हुई। अब मनीष कुंजाम ने संगठन के नेताओं पर जानबूझ कर ऐसी स्थिति बनाने का आरोप लगाया है, जिसके कारण उन्हें पार्टी का चुनाव चिन्ह नहीं मिला।

कांग्रेस को फायदा पहुंचाने के लिए ऐसा किया…

कुंजाम ने कहा, अंतिम समय में मुझे चुनाव से रोकने के लिए जानबूझकर पार्टी द्वारा सिंबाल नहीं दिया गया। ये कोई तकनीकी त्रुटि नहीं थी। मुझे सिंबाल नहीं देने के पीछे यही कारण लगता है कि देश में इंडिया गठबंधन बना। हमारे नेताओं की कांग्रेस के नेताओं के साथ बातचीत होती रहती है। गठबंधन बनाने के पीछे भी यही उद्देश्य था कि किसी भी तरह से भाजपा को रोकना था। बस्तर में भी भाजपा को किसी भी तरह से रोकने व कांग्रेस को फायदा पहुंचाने के लिए अंतिम वक्त पर मुझे पार्टी द्वारा सिंबाल नहीं दिया गया। उनके मुताबिक बस्तर में कांग्रेस को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से ऐसा किया गया था। कांग्रेस के कहने पर हमारी पार्टी ने ये फैसला लिया होगा।

‘धन के बल पर चुनाव जीतते हैं कवासी’

पूर्व सीपीआई नेता मनीष कुंजाम कोंटा विस क्षेत्र से दो बार विधायक रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस समय का चुनाव धन और बल का चुनाव है। जिनके पास संसाधन नहीं, समझो वो योग्य नहीं, बिना पैसे के और संसाधन के हम चुनाव लड़ते हैं। आजकल मतों को खरीदने का काम चल रहा है। कवासी लखमा का व्यवहार क्षेत्र में लोगों के हित में नहीं है, कवासी धन के बल पर चुनाव जीतते हैं। भले ही मैं चुनाव हारा, लेकिन वोट बढ़े हैं।

दोनों पार्टियों से पहले भी मिला था ऑफर…

मीडिया से चर्चा में जब मनीष से सवाल किया गया कि अगर लखमा राजनैतिक तौर पर नंबर वन दुश्मन है तो भाजपा से हाथ क्यों नहीं मिलाया, तब उन्होंने कहा कि भाजपा के अंदर भी स्थिति कुछ ठीक नहीं है। इस चुनाव में आठ से दस उम्मीदवार सामने आ रहे थे। प्रस्ताव मिलने पर लखमा मुक्त कोंटा के लिए भाजपा से हाथ मिलाने के सवाल पर कहा, बस्तर के ऊपर केंद्रित कर स्वतंत्र रूप से कार्य करना चाहता हूं। पूर्व में भी डॉ. रमन सिंह ने भाजपा व दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस में आने का न्यौता दिया था, उस वक्त भी नहीं गया।कुंजाम ने कहा, मेरी लालसा कभी मंत्री बनने की नहीं रही है।

CPI के छग प्रभारी को भेजे इस्तीफे का मजमून

छत्तीसगढ़ प्रभारी को भेजे गए अपने इस्तीफ़े में पूर्व विधायक कुंजाम ने लिखा- आपको मालूम है कि चुनाव चिन्ह को लेकर मैं 12 अक्टूबर से लेकर 14 अक्टूबर तक, चार या पांच मर्तबा आपसे बात किया। आपका जवाब था- मैं बात कर रहा हूं, कोई दिक्कत नहीं होगा। यहां मेरे साथियों का मुझ पर लगातार दबाव था कि चुनाव चिन्ह किसी भी हालत में जरुरी है, आप कॉमरेड महासचिव से बात करो।

कुंजाम ने लिखा है कि मैंने 13 या 14 अक्टूबर को कॉमरेड डी राजा से बात किया। उनका जवाब था- नो प्रॉब्लम मनीष, कर्नाटक व उत्तर प्रदेश में चिन्ह पर लड़े थे, फिकर मत करो। फिर मैंने कॉमरेड अतुल से भी बात किया था। इसके बाद भी एक दिन देर से चुनाव आयोग को पत्र लिखने का सीधा अर्थ है कि यह सोचा-समझा मामला है।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सचिव और अपने पत्र में मनीष कुंजाम ने लिखा है कि चुनाव के बाद मैंने कॉमरेड अमरजीत कौर से एक बार फोन पर बात किया, इसके अतिरिक्त किसी का कॉल रिसीव नहीं किया। यह हालात इसलिए बने कि बस्तर में जानबूझकर पार्टी द्वारा चुनाव चिन्ह नहीं दिया गया।

‘हमें बेवकूफ समझता है पार्टी नेतृत्व’

मनीष कुंजाम ने अपने पत्र में लिखा है- इस मामले में आयोग पर भाजपा समर्थित (इस मामले को छोड़ कर है भी) कह कर महासचिव का मेरे नाम पत्र लिखना और उस पत्र को पढ़ने के बाद ऐसा लगा कि हम लोगों को बेवकूफ व सीधा-साधा समझता मानता है पार्टी नेतृत्व।

सफाई देते हुए पार्टी महासचिव द्वारा पत्र लिखा गया। उस पत्र में चुनाव आयोग को मोदी भाजपा समर्थित बताया गया, यह सच है, लेकिन इस मामले में उस बात का उल्लेख कर अपने करतूत को पर्दा डालने की कोशिश किया गया। यही नहीं, बी फॉर्म के लिए भी आपसे कितनी बार बात किया, कितनी मशक्कत करनी पड़ी थी, आपको तो मालूम होना चाहिए। जैसा कि मानो यह केवल हमारा गरज है, पार्टी नेतृत्व का तो कोई ड्यूटी है ही नहीं।

हताश हो कर हम लोगों ने 19-20 अक्टूबर को सीपीएम से संपर्क किया, कम से कम मिलता-जुलता चुनाव चिन्ह तो मिले, यह कोशिश भी सफल नहीं हुआ। इतना ही नहीं, नामांकन की अंतिम तारीख को निर्दलीय फॉर्म भरे, ताकि पसंद का चुनाव चिन्ह तो मिले, परंतु उसमें भी नाकाम हुए।

हताश-उदास, भारी मन से चुनाव लड़े, परिणाम सबके सामने है। बस्तर में चुनाव लड़े कई साथी, चिन्ह न मिलने से नहीं लड़ने की इच्छा जाहिर किए थे।

बस्तर की बैठक के बाद बढ़ गई सक्रियता..!

मनीष कुंजाम ने हाल ही में बस्तर में हुई एक बैठक का हवाला देते हुए बताया है कि अभी 13 जनवरी को हमारी बस्तर संभागीय समिति की बैठक हुई थी। जिसमें हम लोग अलग राह जाने की ओर चर्चा किए। उसके बाद पार्टी के महासचिव व अन्य साथी फिर से सक्रिय हो गए हैं, फोन लगातार आ रहे हैं। पार्टी नेतृत्व के रवैय्या के कारण, जिन हालातों से गुजरे हैं, उसके कारण मन में अब पार्टी नेतृत्व के प्रति सम्मान नहीं रह गया है।

प्रदेश के आदिवासी मुख्यमंत्री से काफी उम्मीदें

मनीष कुंजाम ने कहा कि विष्णुदेव साय छत्तीसगढ़ के पहले सरल व सहज आदिवासी मुख्यमंत्री हैं। उनसे छत्तीसगढ़ के आदिवासी वर्ग को काफी उम्मीदें हैं। हम दोनों 1990 में एक साथ विधायक बने थे। चूंकि छत्तीसगढ़ राज्य आदिवासियों को देखकर ही बनाया गया था और पहली बार कोई आदिवासी मुख्यमंत्री बना है। अजीत जोगी को पहले आदिवासी मुख्यमंत्री मानने से इनकार करते हुए कुंजाम ने कहा, उस पर काफी विवाद की स्थिति निर्मित हो चुकी है। अजीत जोगी को लेकर कोई नई बात अकेले मैंने नहीं की है। जोगी की जाती का विवाद पूर्व से ही सुर्खियों में रहा है।