टीआरपी डेस्क। इस साल चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 9 अप्रैल से हो रही है। नवरात्रि के पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा होती है। मां के 5वें स्वरूप का यह नाम उन्हें भगवान कार्तिकेय से मिला है। ऐसा माना जाता है कि माता के इस ममतामयी रूप की पूजा अर्चना से बुद्धि और विवेक में वृद्धि होती है।
मां स्कंदमाता का रूप
मां स्कंदमाता स्वरूप में माता चार भुजाधारी हैं और दाई ओर की ऊपरी भुजा में कार्तिकेय को गोद में लिया है. निचली भुजा में कमल का पुष्प धारण करती हैं. बाई ओर की ऊपरी भुजा अभय मुद्रा में और निचली भुजा में सफेद रंग का कमल धारण किए हैं. माता की सवारी सिंह है और कमल पर विराजने के कारण पद्मासना कहीं जाती हैं.
पूजा विधि
मां स्कंदमाता के इस स्वरूप की बात करें तो, इनकी चार भुजाएं हैं. मां ने अपनी दाएं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद अर्थात् कार्तिकेय को गोद में लिया हुआ है. इसी तरफ वाली निचली भुजा के हाथ में कमल का फूल है.
बाईं ओर की ऊपर वाली भुजा में वरद मुद्रा है. नीचे दूसरा श्वेत कमल का फूल लिया हुआ है. स्कंदमाता सिंह की सवारी करती हैं. हमेशा कमल के आसन पर विराजे रहने के कारण इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है.
चैत्र नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा के लिए सुबह उठकर स्नान कर लें. फिर पीले रंग के वस्त्र धारण करके पूजा के लिए बैठे.
हाथ में लाल फूल लेकर देवी स्कंदमाता का ध्यान करें. देवी को अक्षत, धूप, इत्र, फूल, बताशा, पान, सुपारी, लौंग अर्पित करें.
मां के सामने धूप-दीप जलाएं. इसके बाद मां का पसंदीदा भोग केला उनको अर्पित करें.
मां की आरती कर, शंख बजाएं और मंत्रों का जाप करें. नवरात्रि के पांचवें दिन महिलाएं लाल वस्त्र में सुहाग की सभी सामग्री, अक्षत समेत लाल फूल मां को अर्पित करें.
स्कंदमाता की पूजा में धनुष बाण अर्पित कर सकते हैं. इसका विशेष महत्व माना गया है. इसके बाद माता की आरती करके फल, मिठाई इत्यादि का भोग लगाकर प्रसाद वितरण करें.