श्याम वेताल

देश के कई हिस्सों में मोदी की गारंटी चली हो या बेअसर रही हो, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में तो खूब चली। मध्य प्रदेश की 29 की 29 सीटें जहां भाजपा के खातें में गयीं वहीं 24 साल पहले मध्य प्रदेश से अलग होने वाले राज्य छत्तीसगढ़ में पार्टी को 11 में से 10 सीटों पर जीत हासिल हुई। कांग्रेस की दुर्दशा का आलम यह रहा कि राजनंदगांव से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी साढ़े 44 हजार वोटों से हार गए। इतना ही नही , भूपेश बघेल की कैबिनेट में मंत्री रहे तीन अन्य दिग्गज कांग्रेसी लोकसभा चुनाव में पराजित हो गए। राज्य की दो आदिवासी सीटें बस्तर और कांकेर भी भाजपा के खाते में गयी हैं जबकि कांग्रेस ने बस्तर से पूर्व मंत्री और कद्दावर आदिवासी नेता कवासी लखमा को मैदान पर उतारा था। हालांकि लखमा ने कभी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा लेकिन वे कभी कोई विधानसभा चुनाव नहीं हारे।

बताते चलें कि छत्तीसगढ़ में 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 90 में से 68 सीटें मिली थी और पार्टी ने भूपेश बघेल के नेतृत्व में 5 साल तक सरकार चलायी लेकिन नवम्बर 2023 के विधानसभा चुनाव में पार्टी परास्त हो गयी और राज्य में भाजपा का शासन आ गया। इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सिर्फ एक सीट कोरबा पर विजयी रही। यहां से कांग्रेस की टिकट पर ज्योत्सना महंत थी जो पूर्व केंद्रीय मंत्री , पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और वर्तमान में नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत की पत्नी हैं और उन्हें कोरबा की जनता ने लगातार दूसरी बार चुना है। श्रीमती महंत ने भाजपा की दिग्गज नेता और पूर्व सांसद सरोज पांडे को शिकस्त दी।

छत्तीसगढ़ में कोरबा को छोड़ सभी जगह मोदी की गारंटी का जादू चला। यहीं यह सवाल उठना लाज़मी है कि कोरबा के मतदाताओं को मोदी की गारंटी का भरोसा क्यों नहीं रहा ? सरोज पांडे को 43 हजार वोटों से हार क्यों मिली ? मोदी लहर में उन्हें भी जीतना चाहिए था ! उनकी हार का एक ही कारण समझ में आ रहा है। वह यह कि पार्टी ने उन्हें अकेला छोड़ दिया या पार्टी के कुछ लोगों ने भितरघात किया। ऐसी आशंका इसलिए भी है क्योंकि पूर्व में सरोज जब दुर्ग से चुनाव लड़ी थी तब भी पार्टी के ही कुछ नेताओं ने उनके साथ घात किया था और उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। वह तो ,राष्ट्रीय स्तर पर सरोज पाण्डे की छवि अच्छी थी ,इसलिए उन्हें राज्यसभा सदस्य बनाया गया था।

अब , आदिवासी बहुल छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां के आदिवासियों को यह भरोसा है कि उन्हें नक्सलियों के आतंक से कोई बचा सकता है तो वह भाजपा ही है। नक्सल आतंक के ख़िलाफ़ कांग्रेस की नीति भाजपा के मुक़ाबले लचर है। यह बात आदिवासी अच्छी तरह से जानते है और फिर मोदी की गारंटी भी तो है। जहां तक चुनाव प्रचार का प्रश्न है , नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी दोनों ने छत्तीसगढ़ में सभाएं की थी लेकिन मोदी की चार सभाओं का परिणाम यह रहा कि सभी प्रत्याशी जीते और राहुल गांधी ने दो सभाएं की और दोनों प्रत्याशी हार गए।

वास्तव में , छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी में अंतर्कलह उसी समय से चल रही है जब यहां पार्टी की सरकार थी और वह कलह अभी तक बदस्तूर जारी है। इसी कलह ने लोकसभा चुनाव में भी अपना रंग दिखाया। पार्टी का संघटन बहुत कमजोर हो चुका है और कार्यकर्त्ता असंतुष्ट है।