रायपुर। भारत आज 15 अगस्त को आजादी की 78वीं वर्षगांठ मना रहा है। इसी दिन वर्ष 1947 को भारत को ब्रिटिश हुकूमत से आजादी मिली थी। 15 अगस्त का दिन उन सभी क्रांतिकारियों को याद करने का दिन है, जिन्होंने भारत माता को अंग्रेजी दास्ता से मुक्ति दिलाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी।

इसी कड़ी में जब भी फ्रीडम फाइटर्स का जिक्र हो तो अविभाजित मध्यप्रदेश में बिलासपुर जिले के देवरी गांव का जिक्र अवश्य होता है। जो कि, वर्तमान में मुंगेली जिले में आता है। मध्यप्रदेश शासन काल के फ्रीडम फ़ाइटर को लेकर आज भी देवरी गांव का नाम सुनहरे अक्षरों में रिकॉर्ड में दर्ज है। क्योंकि इस गांव में एक दो नहीं बल्कि 22 स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। जिन्होंने आजादी की लड़ाई लड़ी और देश को आजादी दिलाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जिसमें भारत छोडो आंदोलन, सविनय अवज्ञा, विदेशी वस्तु बहिष्कार, असहयोग आंदोलन, जंगल सत्याग्रह जैसे आंदोलनों में इन्होंने भाग लिया और वर्ष 1930 और 1932 में जेल भी गये।
हालांकि, इनमें से एक भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भले ही भौतिक रूप से मौजूद नही है। लेकिन ना सिर्फ देवरी गांव बल्कि पूरे मुंगेली वासियों के दिलो में आज भी जिंदा है। वहीं उनके परिजन आज भी उन स्वंतत्रता संग्राम सेनानियों के जज्बे को याद करते नही थकते।
छत्तीसगढ़ का तेज-तर्रार नेता थे गजाधर साव, जिन्होंने पं. जवाहरलाल नेहरू को चलवाया था पैदल
भारत के मानचित्र में मुंगेली क्षेत्र की स्थिति सुई के एक नोक के बराबर ही होगी। बावजूद इसके भारत की स्वतंत्रता के संग्राम मेंं जान की परवाह न करके बढ़-चढकर हिस्सा लेने वाले मुंगेलीवासियों का योगदान गर्व करने योग्य है। उस समय मुंगेली के देवरी निवासी गजाधर साव को छत्तीसगढ़ का तेज-तर्रार नेता कहा जाता था। मुंगेली क्षेत्र के महान सपूतों में एक थे, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गजाधर साव। मुंगेली के पास के छोटे से ग्राम देवरी के मालगुजार, साव 1905 में बनारस के कांग्रेस अधिवेशन से आजादी के आंदोलन से जुड़ गए। वर्ष 1917 में होमरूल आंदोलन के समय वे बिलासपुर शाखा के प्रमुख प्रतिनिधि थे। वहीं 1921 में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार तथा स्वदेशी के प्रसार में अग्रणी भूमिका निभाई। 25 मार्च 1931 में कांग्रेस के कराची अधिवेशन में गांव के करीब 2 दर्जन साथियों के साथ पहुंचे।अधिवेशन के दौरान तत्कालीन अध्यक्ष सरदार वल्लभ भाई पटेल, साव की कार्यशैली से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने मंच से इन्हें ‘छत्तीसगढ़ का तेज-तर्रार नेता कहकर संबोधित किया।
जनवरी 1932 में मुंगेली में विदेशी सामान बेचने वाले एक दुकान में ‘पिकेटिंग करने पर अंंग्रेज सरकार ने इन्हें 3 माह का कारावास तथा 125 रुपए का अर्थदण्ड भी लगाया था। सामाजिक सुधार के प्रति भी साव बेहद जागरूक थे। एक बार महात्मा गांधी ने आजादी दीवानगी पर कहा कि, ‘साव जी, एक तो मैं पागल और आप मुझसे भी बड़े पागल हैं। ऐसे में देश आजाद होकर रहेगा। बड़े नेताओं के तामझाम के कारण आम जनता से उनकी दूरी को साव नापसंद करते थे। 16 दिसबर 1936 को कांग्रेस के प्रमुख पं. जवाहरलाल नेहरू मुंगेली आए तो साव का आग्रह था कि, वे आगर नदी पुल से पैदल ही नगर में प्रवेश करें। मगर उनकी बात नहीं मानी गई। जिससे वे नाराज हो गए और पुल पर धरना देकर लेट गए। मनाने की कोशिश की गई लेकिन वे नहीं माने। इससे झल्लाकर पं. नेहरू ने कहा कि अगर साव नहीं उठते हैं तो इसके ऊपर से ही कार को चला दो। पं.नेहरू के इस उग्र रूप से भी साव ने अपनी जिद नहीं छोड़ी और अंतत: कुछ दूर तक पं. नेहरू को कार से उतरकर जाना ही पड़ा।
मुंगेली के गांधी थे पं. कालीचरण शुक्ल
अपनी सादगी, सरलता के लिए पूरे क्षेत्र में मुंगेली के गांधी के रूप में माने जाने वाले पं. कालीचरण शुक्ल ने अपने साप्ताहिक अखबार के माध्यम से अंग्रेजों के विरूद्ध हमेशा आवाज उठाते रहते थे। इस कारण सदैव उन्हें जुर्माना भरना पड़ता था और कई बार तो उनका प्रेस ही जब्त हो जाता था? मगर अपने धुन के दीवाने पं.शुक्ला पैसे का इंतजाम कर जुर्माना भरते और फिर अंग्रेज शासन के विरूद्ध आवाज बुलंद करना शुरू कर देते थे। विदेशी कपड़ों की खिलाफत में आगे रहे बाबूलाल केशरवानी भी ऐसे ही धुन के पक्के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। 1932 में 20 वर्ष की आयु में ही साथियों के साथ गोल बाजार मुंगेली में घेवरचंद सूरजमल की कपड़ा दुकान के सामने विदेशी कपड़ों के बहिष्कार के लिए आंदोलन करते हुए पकड़े गए। वर्ष 1942 में पिकेटिंग के समय पं. शुक्ल, सिद्धगोपाल त्रिवेदी, हीरालाल दुबे, कन्हैयालाल सोनी तथा अनेक लोगों के साथ उन्हें गिरफ्तार कर पहले बिलासपुर फिर अमरावती जेल भेज दिया गया था।