रायपुर। स्वास्थ्य विभाग ने बीते दो माह के भीतर किश्तों में डॉक्टरों की तबादला सूची जारी की है। पहली नजर में तो ऐसा दिखाई देता है कि जिला अस्पतालों में रिक्तियों के आधार पर डॉक्टरों के तबादले किये गए हैं, मगर जानकर बताते हैं कि इन तबादलों में पूरा उलट-फेर किया गया है और स्थानांतरण नीति का पूरी तरह उल्लंघन किया गया है। यही वजह है कि इस तरह किये गए एक तबादले को लेकर हाई कोर्ट की शरण लेने वाले CMHO को स्टे मिल गया है। इसे देखते हुए कई अन्य डॉक्टर भी कोर्ट जा रहे हैं।

वरिष्ठता का नहीं रखा ख्याल

छत्तीसगढ़ शासन के सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से यह स्पष्ट आदेश है कि अधिकारियों-कर्मियों की पदस्थापना में ‘वरिष्ठता सह योग्यता’ के मापदंडों का पालन किया जाये। मगर बीते दो महीने में स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी स्थानांतरण आदेश पर नजर डालें तो पता चलता है कि इसमें वर्तमान में जिला अस्पतालों में CMHO (मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी) का प्रभार देख रहे वरिष्ठ चिकित्सकों को हटाकर वापस विशेषज्ञ चिकित्सक बना दिया गया है, वहीं उनके स्थान पर चिकित्सा अधिकारियों को CMHO की कुर्सी पर बिठा दिया गया है, जबकि चिकित्सा अधिकारी काफी जूनियर होते हैं।

बता दें कि अमूमन स्वास्थ्य विभाग में किसी MBBS डॉक्टर की पहली नियुक्ति चिकित्सा अधिकारी के पद पर ही होती है। वहीं CMHO या सिविल सर्जन के पद पर काफी वरिष्ठ चिकित्सकों की पदस्थापना होती है। तबादला आदेश पर नजर डालें तो इनमें से अधिकांश चिकित्सा अधिकारियों को CMHO बनाकर तबादले पर भेजा गया है।

मौलिक अधिकारों का हनन

शासकीय सेवा में वरिष्ठ अधिकारी या कर्मचारी को उनके सेवा में वरिष्ठता के मुताबिक पद पाने का अधिकार होता है। ‘वरिष्ठता सह योग्यता’ के कई आदेश समय-समय पर स्वास्थ्य सहित अन्य विभागों में भेजे गए हैं, जिसके मुताबिक वरिष्ठतम योग्य व्यक्तियों को ‘चालू प्रभार’ सौंपने को कहा गया है। मगर स्वास्थ्य विभाग में फिलहाल जो तस्वीर सामने आ रही है, उसके मुताबिक कई वरिष्ठ चिकित्सक अपने कनिष्ठ (जूनियर) डॉक्टरों के अधीन काम करेंगे।

CMHO को तबादला आदेश के खिलाफ मिला स्थगन

स्वास्थ्य द्वारा 29 जुलाई को जारी तबादला आदेश में जिला मोहला-मानपुर-अम्बागढ़ चौकी के जिला अस्पताल के प्रभारी CMHO डॉ एस आर मंडावी को इस पद से हटाते हुए इसी अस्पताल में चिकित्सा अधिकारी बना दिया गया। वहीं उनके स्थान पर राजनांदगांव के घुमका स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) के पदस्थ BMO डॉ विजय खोब्रागढ़े को प्रभारी CMHO के पद पर पदस्थ कर दिया गया है। सेवाकाल की बात करें तो डॉ खोब्रागढ़े CMHO डॉ एस आर मंडावी से काफी जूनियर हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय का यह आदेश डॉ मंडावी को काफी नागवार गुजरा। उन्होंने तत्काल हाई कोर्ट बिलासपुर में याचिका दायर की और अपना पक्ष रखते हुए बताया कि वरिष्ठ की जगह कनिष्ठ को प्रमुख पद पर पदस्थ करना राज्य सरकार के 1 अगस्त 2011 को जारी आदेश का उल्लंघन है।

इस मामले में दोनों पक्षों को सुनने के बाद हाई कोर्ट ने डॉ मंडावी के पक्ष में स्टे आदेश जारी कर दिया है।

सुपर क्लास वन ऑफिसर को भी कर दिया दरकिनार

स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी तबादला आदेशों के बारे में जानकर बताते हैं कि इसमें काफी विसंगतियां हैं। आलम यह है कि CMHO के पद पर बैठे जिन डॉक्टरों के रिटायरमेंट के चंद माह ही रह गए हैं, उन्हें भी कुर्सी से उतारकर सीधे चिकित्सा विशेषज्ञ बना दिया गया है, और उनसे काफी जूनियर को कुर्सी पर बैठने का आदेश दे दिया गया है। मनेन्द्रगढ़ के जिला अस्पताल के CMHO डॉ एस के तिवारी की सेवानिवृत्ति को 7 माह रह गए हैं, उनके कार्यकाल के मुताबिक वे सुपर क्लास वन ऑफिसर हैं, अब उनके स्थान पर कांकेर जिले में पदस्थ BMO डॉ अविनाश खरे को CMHO बनाने का आदेश दिया गया है। डॉ तिवारी से भी सीनियर सरगुजा जिला अस्पताल के CMHO और जॉइंट डायरेक्टर डॉ आर एन गुप्ता हैं, जिनकी सेवानिवृत्ति के केवल 4 माह बचे हैं, उन्हें नेत्र रोग विशेषज्ञ बनाते हुए लखनपुर के BMO डॉ प्रेम सिंह मार्को को CMHO बना दिया गया है। इसी तरह महासमुंद जिला अस्पताल के CMHO डॉ पीके कुदेशिया अगले साल रिटायर हो रहे हैं, उन्हें वापस सर्जन बनाते हुए उनसे लगभग 20 साल जूनियर तुमगांव में पदस्थ MD डॉ कुलवंत सिंह अजमानी को CMHO बना दिया गया है।

जानकारी के मुताबिक सेवानिवृत्ति के कगार पर बैठे अधिकारियों का तबादला करना ही नियम विरुद्ध होता है, इन वरिष्ठ चिकित्सकों को या तो उसी अस्पताल में जूनियर बनाकर पदस्थ कर दिया गया है या फिर जिले में ही कहीं और तबादला कर दिया गया है।

ऐसे कई वरिष्ठ हो गए हैं कनिष्ठ

स्वास्थ्य विभाग द्वारा बीते दो महीने में जारी तबादला आदेशों पर नजर डालें तो ऐसे काफी सीनियर डॉक्टर हैं जो वर्तमान में CMHO के पद पर हैं और उन्हें हटाते हुए उनसे 10-15 या फिर 20-25 साल पुराने डॉक्टरों को CMHO की कुर्सी पर बैठा दिया गया है। उदहारण के तौर पर जिला अस्पताल मुंगेली के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ देवेंद्र पैकरा वर्तमान में प्रभारी CMHO हैं। उन्हें वापस शिशु रोग विशेषज्ञ बना दिया गया है, वहीं इसी अस्पताल में उनसे काफी जूनियर डॉ प्रभात चंद्र प्रभाकर को CMHO के पद पर पदस्थ होने का आदेश दिया गया है। इसी तरह जिला अस्पताल जांजगीर की CMHO डॉ स्वाति सिसोदिया को इसी अस्पताल में स्त्री रोग विशेषज्ञ बना दिया गया है, वहीं उनके स्थान पर जिला अस्पताल राजनांदगांव में पदस्थ चिकित्सा अधिकारी डॉ मनोज बर्मन को पदस्थ किया गया है, जबकि डॉ स्वाति सिसोदिया वरिष्ठता सूची में पूरे प्रदेश में चौथे क्रम पर हैं।

ऐसे वरिष्ठ डॉक्टरों की फेहरिस्त काफी लम्बी है जिन्हें CMHO के पद से हटाते हुए उनसे जूनियर डॉक्टरों के नीचे बिठा दिया गया है। ऐसे में सीनियर डॉक्टर की मनोदशा पर क्या असर पड़ेगा, यह अच्छी तरह समझा जा सकता है। यही वजह है कि ऐसे अधिकांश वरिष्ठ चिकित्सकों ने तबादला आदेश के विरुद्ध हाई कोर्ट की शरण में जाने का मन बना लिया है।

15 सालों से नहीं हुई DPC

इस मामले को लेकर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के विशेष सचिव IAS चन्दन कुमार से संपर्क करने का प्रयास किया गया, मगर फोन रिसीव नहीं होने के चलते विभाग का पक्ष नहीं मिल सका। वैसे अनऑफिसिअल यह तर्क दिया जा रहा है कि प्रदेश के जिला अस्पतालों में कहीं भी कोई चिकित्सक CMHO के तौर पर पूर्ण प्रभार पर पदस्थ नहीं है और उनकी बजाय प्रभारी CMHO काम कर रहे हैं, ऐसे में किसी और चिकित्सक को भी प्रभारी CMHO बनाया जा सकता है।

सच तो यह है कि प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग में डॉक्टरों की वरिष्ठता सूची तो जारी की गई है मगर पिछले 15 सालों से DPC नहीं हुई है। अगर DPC हुई होती तो बड़ी संख्या में सीनियर डॉक्टर फुल फ्लैश CMHO होते, मगर हालात ये हैं कि ये डॉक्टर रिटायर होते जा रहे हैं और उन्हें सीनियारिटी का लाभ नहीं मिल पा रहा है। कुल मिलकर स्वास्थ्य सेवा में लगे डॉक्टर भी राजनीति का शिकार हो रहे हैं।

सवाल यह है कि स्वास्थ्य मंत्रालय ने आखिर इस तरह के तबादले क्यों किये। इतने जूनियर डॉक्टर्स को बड़े पद पर बैठाकर आखिर उपकृत क्यों किया जा रहा है। स्वास्थ्य महकमे में इस बात की जमकर चर्चा हो रही है कि ऐसा करने के एवज में बड़ी रकम का लेनदेन किया गया और मनमाने तरीके से लोगों को मनचाही कुर्सी सौंप दी गई। अगर ऐसा हुआ है तो यह काफी गंभीर मसला है और इन तबादलों की जांच होनी चाहिए। अन्यथा BJP की सरकार में जीरो टॉलरेंस वाली बात बेमानी साबित होगी।