टीआरपी डेस्क। हर साल जन्माष्टमी का पर्व भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भक्तगण व्रत रखते हैं और भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप ‘लड्डू गोपाल’ की पूजा-अर्चना करते हैं। इसे कृष्णाष्टमी, गोकुलाष्टमी, श्रीकृष्ण जयंती आदि नामों से भी जाना जाता है।

जन्माष्टमी का पर्व विशेष रूप से वृंदावन और मथुरा में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस साल भगवान श्रीकृष्ण का 5251वां जन्मोत्सव मनाया जाएगा। हालांकि, इस बार जन्माष्टमी की तिथि को लेकर कुछ भ्रम की स्थिति बनी हुई है। तो दूर कर लें तिथि का कंफ्यूजन। ज्योतिषियों के अनुसार, जन्माष्टमी का पर्व 26 अगस्त को मनाया जाएगा, जबकि वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में इसे 27 अगस्त को मनाया जाएगा।

जन्माष्टमी का शुभ मुहूर्त

अष्टमी तिथि का प्रारंभ 26 अगस्त यानी कल सुबह 3 बजकर 39 मिनट पर शुरू होगा और अष्टमी तिथि का समापन 27 अगस्त की मध्यरात्रि में 2 बजकर 19 मिनट पर होगा। भगवान कृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था और इसलिए, कृष्ण जन्माष्टमी हमेशा रोहिणी नक्षत्र में ही मनाई जाती है। रोहिणी नक्षत्र की शुरुआत 26 अगस्त को दोपहर 3 बजकर 55 मिनट पर होगा और समापन 17 अगस्त को दोपहर 3 बजकर 38 मिनट पर होगा।

पूजन विधि

जन्माष्टमी के दिन सुबह उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें. उसके बाद बाल गोपाल का श्रृंगार करके विधि विधान से उनकी पूजा करें. बाल गोपाल का पालना सजा दें और उसमें उन्हें झूला झुलाएं। उनका दूध और गंगाजल से अभिषेक करें। इसके बाद उन्हें नए वस्त्र पहनाएं. उन्हें मुकुट लगाएं और बांसुरी दें। चंदन और वैजयंती माला से लड्डू गोपाल का श्रृंगार करें। भोग में उन्हें तुलसीदल, फल, मखाने, मक्खन, मिश्री का भोग लगाएं. साथ में मिठाई, मेवे, और पंजीरी आदि अर्पित करें. अंत में धूप दीप करें और भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप की आरती उतारें और पूजा में शामिल सभी लोगों को प्रसाद बांटे।

पूजन सामग्री

बाल गोपाल के लिए झूला, भगवान कृष्ण की मूर्ति, छोटी बांसुरी, एक नया आभूषण, मुकुट, तुलसी के पत्ते, चंदन, अक्षत, मक्खन, केसर, छोटी इलायची, कलश, हल्दी, पान, सुपारी, गंगाजल, सिंहासन, इत्र, सिक्के, सफेद कपड़ा, लाल कपड़ा, कुमकुम, नारियल, मौली, लॉन्ग, इत्र, दिया, सरसों का तेल या फिर घी, रूई की बाती, अगरबत्ती, धूप बत्ती, फल और कपूर, मोरपंख आदि।