0 आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट की शरण में कर्मचारी

बिलासपुर। निलंबन की सजा झेल रहे रायगढ़ जिला जेल के प्रहरी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर संवैधानिक पहलुओं के अलावा सुप्रीम कोर्ट के न्याय दृष्टांत का हवाला दिया है। याचिकाकर्ता ने शासन के नियमों का हवाला देते हुए कहा है कि, आरोप पत्र जारी करने और इसी आधार पर निलंबन आदेश जारी करने का अधिकार प्रभारी अधिकारी को नहीं है।

याचिका अंतिम सुनवाई के लिए लिस्टिंग

याचिकाकर्ता ने बताया है कि उसके मामले में प्रभारी अधिकारी ने शासन के नियमों व मापदंडों के अलावा सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन किया है। प्रभारी अधिकारी द्वारा जारी निलंबन आदेश को रद्द करने की मांग की है। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने याचिका को अंतिम सुनवाई के लिए लिस्टिंग करने का आदेश रजिस्ट्रार जनरल कार्यालय को दिया है।

कैदियों ने किया था जेल से भागने का प्रयास

जेल प्रहरी झम्मर लाल वर्मा ने अधिवक्ता नसीमुद्दीन अंसारी के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। उसने अपनी याचिका में बताया है कि आठ सितंबर 2017 को रात्रि दो बजे से सुबह छह बजे तक जेल के भीतर ड्यूटी कर रहा था। इसी दौरान बैरक नंबर एक से बंदी प्रवीण उर्फ गोल्डी सूर्यवंशी व पुनीराम कोरवा ने बैरक के शौचालय के शिकंजा को काटकर ढाई बजे के करीब जेल से भागने की नियत से बैरक से बाहर आए। इस दौरान जेल परिसर में तैनात अन्य जवानों ने दोनों को भागने से पहले ही दबोच लिया।

इस घटना के बाद ड्यूटी में लापरवाही बरतने के आरोप में अधिकारी ने जेल प्रहरी झम्मर लाल वर्मा को आरोप पत्र थमा दिया। आरोप पत्र का जवाब देने के बाद उसे निलंबित कर दिया। निलंबन के साथही एक इंक्रीमेंट रोकने का आदेश भी जारी कर दिया। मामले की प्रारंभिक सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने जिला जेल अधीक्षक रायगढ़, गृह सचिव व अतिरिक्त महानिदेशक जेल को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने का निर्देश दिया था।

‘फरार हुआ कैदी तो मुख्य प्रहरी होंगे जिम्मेदार’

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अंसारी ने कोर्ट के सामने पैरवी करते हुए जेल मैन्युअल में दिए गए प्रावधान का हवाला देते हुए कहा कि मैन्युअल 218 में साफ लिखा है कि जेल से कैदी के फरार होने की स्थिति में इसकी पूरी जिम्मेदारी मुख्य जेल प्रहरी की होगी। इसके अलावा अधिकारी ही आरोप पत्र जारी कर सकते हैं। और आगे की कार्रवाई के लिए उनको ही अधिकार सम्पन्न बनाया गया है। याचिकाकर्ता के मामले में जेल मैन्युअल, शासन के प्रावधान और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का सीधा-सीधा उल्लंघन किया गया है।

वैध नहीं माने जायेंगे ऐसे आरोप पत्र

प्रभारी अधिकारी को अधिकार ना होने के बाद भी प्रहरी को आरोप पत्र जारी किया और उसके बाद निलंबित भी कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का हवाला देते हुए अधिवक्ता ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ लिखा है कि ऐसे आरोप पत्र वैध नहीं माने जाएंगे जिसे प्रभारी अधिकारी द्वारा जारी किया गया हो।