रायपुर। राजनांदगांव की एक नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता ने गर्भपात के लिए बिलासपुर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज दी। कोर्ट ने कहा कि भ्रूण हत्या न तो नैतिक और न ही कानूनी रूप से स्वीकार होती है।
इसी के साथ ही हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को उस बच्चे को गोद लेने का आदेश भी दे दिया है। हाईकोर्ट ने कहना है कि यदि बच्ची और उसके माता-पिता चाहे तो कानूनी प्रावधान के अनुसार बच्चे को गोद लेने की अनुमति दे सकते हैं। बता दें कि नाबालिग 8 महीने की गर्भवती है। डॉक्टरों ने उसका अबॉर्शन कराने पर उसकी जान को खतरा बताया है। जस्टिस पार्थ प्रीतम साहू की सिंगल बेंच ने प्रसूता के अस्पताल में भर्ती होने से लेकर सभी खर्च राज्य सरकार को उठाने का आदेश दे दिया है।
राजनांदगांव निवासी नाबालिग से दुष्कर्म हुआ था। इसके बाद जब वह गर्भवती हुई तब परिवा वालों को इसकी जानकारी पता चली। इसके बाद परिवार वालों ने अबॉर्शन (गर्भपात) कराने कई अस्पतालों के चक्कर काटे। मगर मेडिकल लीगल केस और गर्भपात कानूनी रूप से अपराध होने के कारण अबॉर्शन नहीं हो पाया।
अपने फैसले में हाईकोर्ट ने कहा है कि जांच रिपोर्ट में सहज प्रसव की तुलना में अधिक गर्भपात कराने से ज्यादा जोखिम हो सकता है। इस बात को देखते हुए गर्भावस्था जारी रखें। इसी के साथ कोर्ट ने कहा कि भ्रूण हत्या न तो नैतिक होगी और न ही कानूनी रूप से स्वीकार्य होगी।
कोर्ट ने यह भी कहा कि दुष्कर्म पीड़िता को बच्चे को जन्म देना होगा। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि उसके प्रसव सहित सभी आवश्यक व्यवस्था करे और पूरा खर्च भी उठाए। अगर नाबालिग और उसके माता-पिता की इच्छा हो तो प्रसव के बाद बच्चे को गोद लिया जाए। राज्य सरकार कानूनी प्रावधानों के अनुसार, इसके लिए आवश्यक कदम उठाएगी।