0 सबूतों का सीलबंद लिफाफा हुआ गायब
0 मामले में ईडी ने की गंभीर टिप्पणी
नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ में हुए नागरिक पूर्ति निगम (NAN) घोटाले के आरोपी आईएएस अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ला को अग्रिम जमानत दिए जाने के मामले में हाई कोर्ट के जज की भूमिका को लेकर सरकार और ED ने सवाल उठाया है। इसे देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जज पर लगाए गए आरोपों की जांच का निर्णय लिया है। आरोप है कि टुटेजा और शुक्ला ने अग्रिम जमानत प्राप्त करने के लिए एक हाईकोर्ट जज को प्रभावित किया।
जस्टिस एएस ओका और एजी मसीह की पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू से इन मामलों में कुछ सबूतों की मांग की। उन्हें जानना था कि क्या जमानत पाए इन अफ़सरों ने जमानत का दुरुपयोग करते हुए सबूतों से छेड़छाड़ की है? और क्या उन्होंने जज को प्रभावित किया।
गायब हो गया सबूतों से भरा सीलबंद लिफाफा
राजू ने कहा कि ईडी ने सबूतों को सीलबंद लिफाफे में पेश किया था, लेकिन अभी अदालत को ये मिल नहीं रहे हैं। उन्होंने सबूत दुबारा दाखिल करने की पेशकश की। राजू ने कहा, “ऐसी दीमकों को न्यायिक प्रणाली को कमजोर करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।”
तत्कालीन महाधिवक्ता पर धोखाधड़ी का आरोप
छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने कहा कि राज्य ने हलफनामों में पूर्व नौकरशाहों, तत्कालीन महाधिवक्ता और जज के बीच सांठगांठ के सबूत के तौर पर व्हाट्सएप चैट के विवरण शामिल किए हैं। जेठमलानी ने यह भी कहा कि तत्कालीन महाधिवक्ता धोखाधड़ी में शामिल हैं और जमानत देने में उन्होंने मदद की है।
‘पिछली सरकार ने सबूतों से की थी छेड़छाड़’
हालांकि ईडी के 1 अगस्त के हलफनामे में संबंधित जज का नाम नहीं है, लेकिन वाट्सएप चैट विवरण में उनका नाम शामिल है। ईडी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हलफनामा में दावा किया गया है कि पूर्ववर्ती सरकार ने मामले को कमजोर करने के लिए सबूतों के साथ छेड़छाड़ की थी।
मुकदमे को पटरी से उतारने की कोशिश की गई। मामले की जांच शुरू करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं। वाट्सएप संदेशों के आदान-प्रदान से पता चला है कि जज की बेटी और दामाद का बायोडाटा तत्कालीन एजी द्वारा अनुकूल कार्रवाई के लिए टुटेजा को भेजा गया था।
ईडी की ओर से कहा गया है कि आरोपी व्यक्ति अनुसूचित अपराध में अन्य मुख्य आरोपियों की भूमिका को कमजोर करने के लिए सह अभियुक्त शिव शंकर भट्ट के मसौदा बयान को साझा करने और संशोधित करने में शामिल थे।
आरोपियों के अधिवक्ता ने दिया ये तर्क
आरोपियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने तर्क दिया कि छत्तीसगढ़ सरकार का इस मामले में कोई लेना-देना नहीं है, क्योंकि यह विवाद केवल आरोपियों और ईडी के बीच का है। रोहतगी ने तर्क दिया कि ये हलफनामे अदालत में चल रही प्रक्रिया के संदर्भ में निरर्थक हैं, खासकर जब ईडी मामले की सुनवाई को राज्य से बाहर ले जाने की कोशिश कर रहा है।
पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 8 नवंबर को तय करते हुए कहा कि उसे आरोपी, पूर्व एजी और न्यायाधीश के बीच कथित सांठगांठ पर ईडी और राज्य सरकार द्वारा पेश किए गए सबूतों की जांच करनी चाहिए। पीठ ने स्पष्ट किया, “हम इसकी गहन जांच करेंगे क्योंकि आरोप न्यायिक प्रणाली पर सवाल उठाते हैं।”