टीआरपी डेस्क। पूरे देश में शारदीय नवरात्रि का पावन पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है, जिसमें मां दुर्गा के नौ रूपों की विधि-विधान से पूजा की जाती है। 6 अक्टूबर को नवरात्रि का चौथा दिन है, जो मां कूष्मांडा की उपासना को समर्पित होता है।

मां कूष्मांडा को सृष्टि की रचयिता माना जाता है, और उनकी आराधना से सभी प्रकार के रोग-दोष और कष्ट नष्ट हो जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मां ब्रह्मांड के मध्य में निवास करती हैं और पूरे संसार की रक्षा करती हैं। उनकी पूजा करने से यश, बल, और धन की प्राप्ति होती है। मां कूष्मांडा का तेज सूर्य के समान है और उनकी आठ भुजाओं के कारण उन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है। मां सिंह पर सवार होती हैं और उनके हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र, गदा और जपमाला धारण रहती है।
मां कूष्मांडा की पूजा विधि:
- सबसे पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- मां का ध्यान कर उन्हें धूप, गंध, अक्षत, लाल पुष्प, सफेद कुम्हड़ा, फल, सूखे मेवे, और सौभाग्य का सामान अर्पित करें।
- मां को मालपुआ, दही और हलवे का भोग अर्पित करें। प्रसाद के रूप में इसे ग्रहण करें।
- पूजा के अंत में मां की आरती करें और अधिक से अधिक ध्यान लगाएं।
चौथे दिन का भोग:
मां कूष्मांडा को मालपुआ का भोग विशेष रूप से प्रिय है। मान्यता है कि इस भोग से मां प्रसन्न होती हैं और भक्तों पर कृपा बरसाती हैं। इसके साथ दही और हलवे का भोग भी लगाया जाता है।
चौथे दिन का शुभ रंग:
नवरात्रि के चौथे दिन हरा रंग पहनना विशेष शुभ माना जाता है, क्योंकि शास्त्रों के अनुसार मां कूष्मांडा को हरा रंग अत्यधिक प्रिय है।
मां कूष्मांडा की आराधना से जीवन में यश, वैभव और बल की वृद्धि होती है, और भक्तों के कष्टों का नाश होता है।