रायपुर। हिन्दी पत्रकारिता की अग्रणी और बस्तर की माटी से गहराई से जुड़ी इरा झा ने एम्स, दिल्ली में अंतिम सांस ली। इरा झा ने 1980 और 90 के दशक में पत्रकारिता में उस दौर में खास मुकाम बनाया, जब महिलाओं की उपस्थिति न्यूज़रूम में दुर्लभ थी। बस्तर से दिल्ली तक का उनका सफर सिर्फ पेशेवर उपलब्धियों का नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ और बस्तर के मुद्दों को राष्ट्रीय मंच पर लाने का भी रहा।
तेजतर्रार रिपोर्टर और जमीनी हकीकत से जुड़ी इरा झा को उनकी सुलझी हुई दृष्टि और गहरी समझ के लिए जाना जाता था। दशकों तक राजधानी दिल्ली में रहते हुए भी, उन्होंने अपने भीतर बस्तर को जिंदा रखा और हर अवसर पर उसके मुद्दों को आवाज दी। हालांकि, उन्हें पत्रकारिता में वह स्थान नहीं मिल पाया जिसका वह हकदार थीं, बावजूद इसके उनका योगदान अविस्मरणीय है।
इरा झा ने महिलाओं की पहचान बनाने में अहम भूमिका निभाई। उस दौर में, जब महिलाओं की उपस्थिति पत्रकारिता में बेहद सीमित थी, इरा झा ने अपनी तेजतर्रार रिपोर्टिंग से दिल्ली में खास पहचान बनाई।
इसके बावजूद बस्तर की मिट्टी से जुड़ी इरा झा कभी अपनी जड़ों को नहीं भूलीं। दिल्ली की राष्ट्रीय पत्रकारिता में दशकों तक काम करने के बावजूद, उन्होंने छत्तीसगढ़ और बस्तर के मुद्दों को प्रमुखता से उठाया। उनका मानवीय दृष्टिकोण और जमीनी हकीकत से जुड़े होने का जज्बा उन्हें पत्रकारिता में औरों से अलग करता था।
टाइम्स की फेलोशिप के साथ उन्होंने पत्रकारिता की शुरूआत की। नवभारत टाइम्स के बाद उन्होंने दैनिक हिंदुस्तान के लिए भी लंबे समय तक अपनी सेवाएं दी। उस दौर में जब महिलाएं न्यूज़रूम में बेहद कम नजर आती थीं। हिन्दी पत्रकारिता में जिन महिला पत्रकारों ने खुद को स्थापित किया, इरा झा उन शुरुआती अग्रणियों में शामिल थीं।
दैनिक हिंदुस्तान के लिए भी उन्होंने बस्तर के मुद्दों को बड़ी ही बेबाकी के साथ समय समय पर उठाया। इरा झा के निधन से बस्तर और पत्रकारिता जगत ने एक संवेदनशील और निष्ठावान पत्रकार को खो दिया है।