रायपुर। खनिज संपदा से समृद्ध छत्तीसगढ़ पर इन दिनों खनन का खतरा मंडरा रहा है। अडानी समूह के प्रभाव में राज्य की प्राकृतिक संपदा का तेजी से विनाश हो रहा है। लाखों पेड़ों की कटाई से लेकर ग्राम सभा की फर्जी मंजूरी तक, सांठगांठ कर हसदेव के जंगलों में पेड़ों की कटाई चल रही है। वहीं, पिछले तीन दिनों में 140 हेक्टेयर में फैले छह हजार से अधिक पेड़ काटे जा चुके हैं।

अनुसूचित जनजाति आयोग की जांच में यह सामने आया कि इस खनन परियोजना के लिए ग्राम सभा की असली मंजूरी नहीं थी, बल्कि अधिकारियों ने अडानी के पक्ष में फर्जी मंजूरी का इंतजाम किया। आयोग की रिपोर्ट में साफ बताया गया कि ग्राम सभा ने खनन की मंजूरी कभी नहीं दी थी, लेकिन अधिकारियों ने अपने स्तर पर मंजूरी तैयार करवाई।

हालांकि, इसके बावजूद हसदेव जंगल में दूसरी कोल परियोजना के तहत पेड़ों की कटाई शुरू हो गई। जब स्थानीय आदिवासियों ने इसका विरोध किया, तो पुलिस ने उन्हें बलपूर्वक हटाया। हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के सदस्य रामलाल और अन्य कई आदिवासियों पर पुलिस ने प्रताड़ित किया, जिनमें महिलाएं भी शामिल थीं। रामलाल का कहना है कि यह जंगल उनके देवी-देवताओं का स्थान है और उनकी आजीविका का साधन है, जिसे वे किसी भी हालत में कटने नहीं देंगे।

कैसे मिली फर्जी मंजूरी
राजस्थान सरकार को बिजली आपूर्ति के लिए छत्तीसगढ़ में अडानी को तीन कोल ब्लॉक आवंटित किए गए हैं। इनमें से दूसरे परसा कोल ब्लॉक के लिए पेड़ों की कटाई शुरू की गई है। इन कोल ब्लॉक्स को पर्यावरणीय स्वीकृति मिली है, जिसे ग्राम सभा की मंजूरी पर आधारित बताया गया है। लेकिन जनजाति आयोग की जांच में यह स्पष्ट हुआ कि ग्राम सभा की मंजूरी फर्जी थी। रिपोर्ट तो फिलहाल नहीं सौंपी गई है क्योंकि आयोग के सचिव ने अब तक इसमें हस्ताक्षर नहीं किया है। लेकिन द रूरल प्रेस के पास इस रिपोर्ट से संबंधित कुछ अहम दस्तावेज मौजूद है।

बता दें कि 27 जनवरी 2018 की ग्राम सभा की बैठक ग्राम साल्ही में हुई थी, इसके रिकॉर्ड के अनुसार, वन अधिकार कानूनों पर चर्चा के बाद सभा समाप्त कर दी गई थी। लेकिन अधिकारियों ने बैठक के बाद प्रस्ताव क्रमांक 22 जोड़कर परसा कोल ब्लॉक के लिए फर्जी अनापत्ति तैयार कर ली। इस तरह बिना ग्राम सभा की वास्तविक मंजूरी के ही अडानी को कोल ब्लॉक आवंटित कर दिया गया।