टीआरपी डेस्क। सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के सत्यापन को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि मामले को उसी खंडपीठ के समक्ष रखा जाए, जिसने अप्रैल में इस विषय पर फैसला सुनाया था। उस समय अदालत ने बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग को खारिज कर दिया था।

जस्टिस विक्रम नाथ और पीबी वराले की खंडपीठ ने सीजेआई की रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि कांग्रेस नेता करण सिंह दलाल की याचिका, जिसमें हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान ईवीएम के सत्यापन की मांग की गई है, उसे अप्रैल में सुनवाई करने वाली खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए। यह सीजेआई की मंजूरी के तहत तय होगा।

क्या हैं याचिकाकर्ता की मांगें?

करण सिंह दलाल, जो पांच बार विधायक रह चुके हैं, ने याचिका में ईवीएम के चार प्रमुख घटकों की मेमोरी और माइक्रोकंट्रोलर की जांच के लिए दिशानिर्देश जारी करने की मांग की है। ये चार घटक हैं:

  • कंट्रोल यूनिट
  • बैलट यूनिट
  • वीवीपैट (वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल)
  • सिंबल लोडिंग यूनिट

याचिका में यह भी कहा गया है कि यह सत्यापन प्रक्रिया आठ सप्ताह के भीतर पूरी की जानी चाहिए।

लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर असर

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यह मामला देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया और विभिन्न राज्यों में होने वाले चुनावों की पारदर्शिता को सीधे प्रभावित करता है। इसलिए, इसे तत्काल और निर्णायक रूप से सुलझाना जरूरी है।

अदालत का पिछला फैसला

इस वर्ष अप्रैल में तत्कालीन जस्टिस संजीव खन्ना (वर्तमान में सीजेआई) और जस्टिस दिपांकर दत्ता की खंडपीठ ने आदेश दिया था कि किसी चुनाव में दूसरे और तीसरे स्थान पर रहने वाले उम्मीदवारों के लिखित अनुरोध पर 5% ईवीएम की मेमोरी/माइक्रोकंट्रोलर की जांच की जाए। इस प्रक्रिया में ईवीएम निर्माता कंपनियों के इंजीनियर शामिल होंगे, और उम्मीदवारों या उनके प्रतिनिधियों को मौजूद रहने की अनुमति होगी।