रायपुर। समृद्ध भारत से ही दुनिया में वसुधैव कुटुंबकम की भावना साकार हो सकेगी। विकसित भारत में हर परिवार खुशहाल और समझदार बने तभी असली विकास साबित होगा। वर्तमान चुनावी प्रक्रिया में व्यक्ति को प्रभावित करने चुनावी घोषणाएं की जाती हैं, जिससे परिवार में बिखराव आते जा रहा है, जबकि यह संविधान की मूल भावना के विपरीत है। यह बातें वृंदावन हॉल सिविल लाइन में आयोजित विकसित भारत- सपना, योजना और वास्तविकता पर संवाद में वक्ताओं ने कही।

इसका आयोजन साधना फाउंडेशन एवं आचार्य सरयूकांत झा स्मृति संस्थान ने विकसित भारत संवाद श्रृंखला के अंतर्गत किया। इसमें मध्यस्थ दर्शन दिल्ली के अध्येता सोमदेव त्यागी ने कहा कि स्वतंत्रता के पश्चात् जिस आजादी का सपना हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने देखा था, वह पूरी नहीं हो रही है। तब हमारे देश में परिवार सयुंक्त होते थे, साथ मिलकर सहयोग और मूल्यों के साथ लोगों का जीवन होता था। आधुनिक भारत में चुनावी प्रक्रिया खर्चीली हो गई है, राजनीतिक दल धन और प्रचार तंत्र से चुनावी जीतने को प्राथमिकता देते हैं, हर घोषणा मतदाताओं को प्रभावित करने के लिये होती है। हर मतदाता के लिये अलग घोषणा होने से परिवार का महत्व समाप्त होने लगा है, जबकि परिवार भारत में सबसे सशक्त ईकाई होती थी।

इसमें राष्ट्रीय स्तर के वक्ता इंडियन सोसाइटी ऑफ एग्रीकल्चरल इकोनामिक्स (आईएसएई) के अध्यक्ष प्रोफेसर दिनेश मारोठिया, नईदिल्ली से दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार सुदीप ठाकुर, पूर्व निर्वाचन अधिकारी व आईएएस डॉ सुशील त्रिवेदी, भाषाविद डॉ. चितरंजन कर, डॉ. पूर्णेंदू सक्सेना, प्रोफेसर डॉ. कल्पना मिश्रा, अभिभावक विद्यालय रायपुर की संचालिका अनिता शाह, डॉ. राकेश गुप्ता, अधिवक्ता केके शुक्ला, अभ्युदय संस्थान अछोटी से डॉ. संकेत ठाकुर, डॉ. शुभा बनर्जी, पत्रकार पूजा जैन, निखिल तिवारी विशेष वक्ता थे।

त्रिवेदी ने कहा कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना में सबको राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक स्वतंत्रता का अवसर दिलाने की बात लिखी है, इसमें इकानामी या जीडीपी के जरिये विकसित भारत की कल्पना नहीं की गई है।

अनिता शाह ने कहा कि हर किसी को शिक्षा के माध्यम से समझदार बनाया जा सकता है, चेतना विकास मूल्य शिक्षा के जरिये अमानवीय गुणों से मानवीय गुणों में परिमार्जन किया जा सकता है।