टीआरपी नेशनल डेस्क। मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण आदेश में केंद्र सरकार को तमिल पत्रिका आनंद विकतान की वेबसाइट को अनब्लॉक करने का निर्देश दिया है। यह आदेश विशेष रूप से अहम है क्योंकि यह इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सरकार द्वारा किए गए इंटरनेट प्रतिबंधों के बीच के संवेदनशील संतुलन को लेकर सवाल उठाता है।

व्यंग्यात्मक कार्टून का विवाद
यह मामला उस समय विवादास्पद हो गया था जब पत्रिका विकतान के 10 फरवरी के अंक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का एक व्यंग्यात्मक कार्टून प्रकाशित किया गया था। इस कार्टून में प्रधानमंत्री मोदी को अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के साथ बेड़ियों में जकड़े हुए दिखाया गया था। यह कार्टून, जो भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय रिश्तों को लेकर एक कटाक्ष था, विवाद का कारण बना और केंद्र सरकार ने इसे एक गंभीर मामला मानते हुए वेबसाइट को 15 फरवरी को ब्लॉक कर दिया।
सरकार का तर्क था कि यह कार्टून भारत की संप्रभुता और विदेशी संबंधों के लिए खतरे का कारण बन सकता है। इसी आधार पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने विकतान की वेबसाइट को ब्लॉक कर दिया। हालांकि, विकतान की ओर से इस प्रतिबंध के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया गया, और अब मद्रास हाईकोर्ट ने सरकार को एक अंतरिम आदेश पारित किया है, जिसमें कहा गया है कि वेबसाइट को बहाल किया जाए, बशर्ते कि वह कार्टून को हटा दे।
हाईकोर्ट का निर्णय और उसकी महत्ता
मद्रास हाईकोर्ट ने 6 मार्च को यह आदेश दिया कि केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को विकतान की वेबसाइट तक पहुंच बहाल करनी चाहिए। यह आदेश विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर एक बड़ा सवाल उठाता है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि कार्टून को हटाए जाने की शर्त पर वेबसाइट की पूरी सामग्री तक पहुँच बहाल की जाएगी।
इसके अलावा, हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से यह भी सुनिश्चित करने के लिए कहा कि वह केंद्र सरकार को ईमेल भेजकर वेबसाइट पर आपत्तिजनक सामग्री को हटाने की पुष्टि करें। यह स्पष्ट करता है कि अदालत के आदेश की पालना में विकतान को सरकार को इस कार्रवाई की पुष्टि करनी होगी।
पत्रिका का तर्क और अदालत की प्रतिक्रिया
विकतान पत्रिका ने इस विवादित कार्टून को एक राजनीतिक व्यंग्य के रूप में प्रस्तुत किया था। पत्रिका का कहना था कि यह कार्टून अमेरिका से निर्वासित भारतीयों के साथ किए जा रहे दुर्व्यवहार को लेकर था और इसका उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं था। पत्रिका का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता विजय नारायण ने तर्क दिया कि कार्टून से न तो भारत की संप्रभुता और अखंडता को कोई नुकसान पहुंचा है और न ही भारत-अमेरिका के बीच रिश्तों पर इसका कोई नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
नारायण ने यह भी कहा कि इस मामले का संबंध पत्रकारिता की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार से है, जिसे संविधान ने हर नागरिक को सुनिश्चित किया है। उनके तर्क में यह बात निहित थी कि एक लोकतांत्रिक समाज में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाना खतरनाक हो सकता है, खासकर जब वह एक आलोचनात्मक या व्यंग्यात्मक स्वरूप में हो।
मूल अधिकारों की रक्षा और इंटरनेट प्रतिबंध
यह मामला सिर्फ एक वेबसाइट के ब्लॉक होने से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। यह पूरी तरह से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उस अधिकार पर सवाल उठाता है, जो भारतीय संविधान में हर नागरिक को दिया गया है। इंटरनेट और डिजिटल प्लेटफॉर्मों का बढ़ता हुआ प्रभाव आज के समय में एक बड़ी चुनौती बन गया है, क्योंकि सरकारें और संस्थाएँ अक्सर अपने प्रभाव का उपयोग कर इन प्लेटफार्मों को नियंत्रित करने का प्रयास करती हैं। इस संदर्भ में, मद्रास हाईकोर्ट का यह निर्णय महत्वपूर्ण है क्योंकि अदालत ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करने का प्रयास किया है, जबकि साथ ही यह सुनिश्चित किया है कि विवादास्पद सामग्री को हटाने के बाद वेबसाइट को बहाल किया जाए।