टीआरपी डेस्क। दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा को इलाहाबाद हाई कोर्ट में ट्रांसफर किए जाने के फैसले पर इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने कड़ी नाराजगी जताई है। जस्टिस वर्मा का नाम उस समय चर्चा में आया जब उनके निवास पर आग लगने के बाद 15 करोड़ रुपये नकद बरामद हुए। बार एसोसिएशन ने एक प्रस्ताव पारित करते हुए कहा कि “हम कूड़ेदान नहीं हैं” और भ्रष्टाचार किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

बार एसोसिएशन ने उठाए सवाल

  • इलाहाबाद हाई कोर्ट पहले से ही जजों की भारी कमी से जूझ रहा है, लेकिन नए जजों की नियुक्ति पर बार एसोसिएशन से कोई सलाह नहीं ली जाती।
  • प्रस्ताव में आरोप लगाया गया कि जस्टिस वर्मा के आदेश पक्षपातपूर्ण रहे हैं और विशेष रूप से अधिवक्ताओं एवं बार सदस्यों को निशाना बनाया गया है।
  • एफआईआर और दमनात्मक कार्रवाई से जुड़े आदेश प्रभावित पक्ष को सुने बिना ही पारित किए गए, जो न्याय के बुनियादी सिद्धांतों का उल्लंघन है।

वरिष्ठ जजों ने दिया स्वेच्छा से इस्तीफे का सुझाव

जस्टिस यशवंत वर्मा के निवास से भारी मात्रा में नकदी बरामद होने के बाद न्यायिक हलकों में हड़कंप मच गया है। कुछ वरिष्ठ जजों ने उन्हें स्वेच्छा से इस्तीफा देने की सलाह दी है ताकि न्यायपालिका की साख और जनता का विश्वास बना रहे।

हो सकती है ‘इन-हाउस’ जांच

अगर जस्टिस वर्मा इस्तीफा नहीं देते हैं, तो उनके खिलाफ ‘इन-हाउस जांच’ शुरू हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट की 1999 में तय की गई इन-हाउस प्रक्रिया के तहत:

  1. सबसे पहले मुख्य न्यायाधीश आरोपी जज से स्पष्टीकरण मांगते हैं।
  2. यदि जवाब संतोषजनक नहीं होता, तो एक जांच पैनल गठित किया जाता है, जिसमें एक सुप्रीम कोर्ट जज और दो हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शामिल होते हैं।
  3. यदि जांच में गंभीर अनियमितता पाई जाती है, तो महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हो सकती है।