टीआरपी डेस्क । नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की आराधना की जाती है, जो सृष्टि की रचयिता मानी जाती हैं। इस वर्ष चैत्र नवरात्रि 30 मार्च से आरंभ हुई है और 2 अप्रैल को इसका चौथा दिन है। धार्मिक मान्यता है कि मां कूष्मांडा की कृपा से जीवन की परेशानियां दूर होती हैं और घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।

मां कूष्मांडा का स्वरूप और महत्व

मां कूष्मांडा को अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है क्योंकि उनके आठ हाथ होते हैं। यह पूरी सृष्टि में ऊर्जा का संचार करती हैं और ब्रह्मांड की संरचना का आधार मानी जाती हैं। भक्तजन श्रद्धा और आस्था के साथ उनकी पूजा-अर्चना कर अपनी मनोकामनाएं पूरी होने की प्रार्थना करते हैं।

मां कूष्मांडा का भोग

नवरात्रि के इस विशेष दिन पर मां कूष्मांडा को केसर मिश्रित पीला पेठा अर्पित करने का विशेष महत्व है। इसके अलावा, मालपुआ और बताशे भी भोग के रूप में चढ़ाए जाते हैं। कुछ श्रद्धालु सफेद पेठे के फल की भी बलि देते हैं। मान्यता है कि मां को प्रसन्न करने के लिए यह प्रसाद बहुत प्रभावी होता है।

पूजा विधि

  • प्रातः स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा की तैयारी करें।
  • लकड़ी की चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर मां कूष्मांडा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
  • गंगाजल से पूजा स्थल को शुद्ध करें और मां का ध्यान करें।
  • मां को पीले वस्त्र, पीले फूल, फल, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
  • विधिपूर्वक मां की आरती करें और भोग लगाकर प्रसाद वितरण करें।
  • अंत में दुर्गा सप्तशती और दुर्गा चालीसा का पाठ कर मां से आशीर्वाद प्राप्त करें।