रायपुर। छत्तीसगढ़ में बीजेपी सरकार का कैबिनेट विस्तार एक बार फिर टल जाना अब केवल प्रक्रिया की देरी नहीं, बल्कि अंदरूनी राजनीतिक खींचतान की ओर इशारा कर रहा है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की ओर से मंत्रियों के नाम तय होने और जल्द शपथग्रहण के दावे के बावजूद, आखिरी मौके पर नामों पर सहमति न बन पाना कहीं न कहीं यह सवाल खड़ा करता है कि क्या पार्टी के भीतर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा?

पार्टी के भीतर वरिष्ठ नेताओं की सिफारिशों ने नए चेहरों की दावेदारी पर ब्रेक लगा दिया है। अमर अग्रवाल, गजेंद्र यादव और पुरंदर मिश्रा जैसे नाम चर्चा में रहे, लेकिन ऐलान होते-होते मामला अटक गया। सूत्रों के मुताबिक पुराने नेताओं और नए नेतृत्व के बीच बैलेंस बनाने को लेकर गहरी रस्साकशी चल रही है।

दिल्ली से संगठन मंत्री शिवप्रकाश और प्रदेश प्रभारी नितिन नबीन की मौजूदगी और फिर भी सहमति न बन पाना, साफ करता है कि मामला केवल नाम तय करने का नहीं, बल्कि पावर बैलेंस, क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व और गुटबाजी से भी जुड़ा है।

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की सरकार को 15 महीने हो चुके हैं और जनता को अब पूर्ण मंत्रिमंडल की उम्मीद है। लेकिन बार-बार टलते फैसलों से संदेश जा रहा है कि शीर्ष नेतृत्व खुद असमंजस में है या फिर अंदरुनी समीकरण अभी संतुलन नहीं बना पाए हैं।

बैठक से पहले मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने मीडिया से बातचीत में कहा था कि नाम तय कर लिए गए हैं और अब मंत्रियों के शपथग्रहण में कोई देरी नहीं होगी। उन्होंने कहा था कि बहुत जल्द नए मंत्री शपथ लेंगे और कैबिनेट का हिस्सा बनेंगे। लेकिन बैठक के बाद ऐसा कोई फैसला नहीं हो सका।