0 हाईकोर्ट ने इसे दुर्लभतम मामला नहीं माना
0 किशोरी से गैंगरेप और परिवार की हत्या से दहल गया था इलाका

बिलासपुर। चार साल पहले कोरबा जिले में हुए बहुचर्चित गैंगरेप और ट्रिपल मर्डर केस में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने निचली अदालत से चार आरोपियों को दी गई फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया है। हाईकोर्ट ने इस केस में एक अन्य आरोपी उमाशंकर यादव की उम्रकैद की सजा को भी बरकरार रखा है और उसकी बरी करने की अपील खारिज कर दी है।

‘मामला समाज को झकझोरने वाला, मगर…’

कोर्ट ने कहा कि यह मामला भले ही समाज को झकझोरने वाला है, लेकिन यह ‘दुर्लभतम से दुर्लभ’ की श्रेणी में नहीं आता, जिसमें फांसी की सजा दी जाए। मुख्य न्यायाधीश रमेश कुमार सिन्हा और न्यायमूर्ति बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने कहा कि सजा देने में कानून के सभी पहलुओं, घटनाक्रम और आरोपियों की उम्र को ध्यान में रखना जरूरी है। ऐसे में आजीवन कारावास ही न्याय का उद्देश्य पूरा करने के लिए काफी है।

बेरहमी से की गई थी हत्या

घटना जनवरी 2021 में कोरबा जिले के पोड़ी-उपरोड़ा इलाके में हुई थी। आदिवासी समुदाय की 16 साल की एक लड़की के साथ गैंगरेप किया गया और फिर उसकी, उसके पिता और 4 साल की नातिन की हत्या कर दी गई थी।

पुलिस ने इस मामले में छह लोगों को गिरफ्तार किया था – संतराम मंझवार (45), अनिल सारथी (20), आनंद दास (26), परदेशी दास (35), जब्बार उर्फ विक्की (21) और उमाशंकर यादव (22)।

आरोपी संतराम, किशन (बदला हुआ नाम) से मवेशी चरवाता था। दोनों के बीच सालाना मजदूरी और अनाज देने का समझौता हुआ था, लेकिन जब पीड़ित ने बकाया मांगा तो टालमटोल किया गया। इसके बाद किशन अपनी पत्नी, बेटी और नातिन के साथ हिसाब लेने गया था।

कुछ पैसे और चावल देने के बाद संतराम और उसके साथियों ने तीनों को बाइक से छोड़ने की बात कहकर रोक लिया, और फिर रास्ते में सुनियोजित तरीके से वारदात को अंजाम दिया।

पिता के सामने ही बेटी से गैंगरेप

घटना के अगले दिन 30 जनवरी 2021 को कोराई जंगल में तीनों के शव बरामद हुए। पुलिस जांच में सामने आया कि आरोपियों ने पहले किशन को शराब पिलाई, फिर उसके सामने ही उसकी बेटी से गैंगरेप किया। जब उसने विरोध किया तो उसे लाठी-डंडों से पीट-पीटकर मार डाला। इसके बाद लड़की और उसकी 4 साल की नातिन को भी बेरहमी से मार दिया गया।

कोरबा जिले में पॉक्सो कोर्ट की विशेष न्यायाधीश डॉ. ममता भोजवानी ने चार आरोपियों को फांसी और उमाशंकर यादव को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। कोर्ट ने इसे अमानवीय, वीभत्स और समाज को झकझोरने वाली घटना बताया था। आरोपियों ने इस मामले में हाई कोर्ट की शरण ली, जहां सुनवाई के बाद कोर्ट ने फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया।