टीआरपी डेस्क। देश में कोरोना काल के दौरान छात्रों को ऑनलाइन क्लास के लिए कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। वहीं इन दिनों मानसून ने खराब कनेक्टिविटी की परेशानी को और भी बढ़ा दिया है। जिसके कारण छात्र पढ़ाई को लेकर अब और ज्यादा परेशान हैं।

भारी बारिश के बीच, कई छात्र ऑनलाइन कक्षाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं, खासकर मलनाड क्षेत्र में, जहां इस सप्ताह दक्षिण-पश्चिम मानसून बहुत सक्रिय रहा है। खराब नेटवर्क कनेक्टिविटी के कारण, छात्रों को कक्षाओं में भाग लेने के लिए उपयुक्त स्थानों की तलाश करनी पड़ती है। कुछ मामलों में, माता-पिता तब तक छाता रखते हैं जब तक कि उनके बच्चे ऑनलाइन कक्षाओं में भाग ले रहे हों। कुछ छात्रों ने सुविधाजनक स्थानों पर तंबू लगाए हैं जहां उन्हें नेट एक्सेस मिलता है।
हाल ही में सोशल मीडिया पर एक तस्वीर तेजी से वारल हुई जिसमें एक लड़की को भारी बारिश के बीच ऑनलाइन क्लास लेते हुए दिखाया गया, जबकि उसके पिता छाता पकड़े हुए हैं। बता दें कि कोरोना काल में स्कूली विद्यार्थियों (school students) की ऑनलाइन पढ़ाई चल रही है। जिन क्षेत्रों में इंटरनेट और नेटवर्क की अच्छी सुविधा नहीं है, वहां बच्चों को तीन घंटे की चढ़ाई कर पहाड़ी पर सिग्नल ढूंढकर कक्षाएं लगानी पड़ रही हैं। विद्यार्थियों को जान जोखिम में डालकर घर से दूर जाकर नेटवर्क की तलाश करनी पड़ रही है।
दूरसंचार कंपनियों का सिग्नल नहीं होने से विद्यार्थियों और अभिभावकों को रोजाना परेशानियों से दो-चार होना पड़ता है। ऐसे में मोबाइल शोपीस बने हुए हैं। एक सामाजिक कार्यकर्ता और तीर्थहल्ली के पत्रकार नेम्पे देवराज ने कहा कि भारी बरसात के दौरान सैकड़ों छात्र अपने घरों से दूर अस्थायी शेड में पढ़ रहे थे। उन्होंने कहा कि कर्नाटक सरकार और दूरसंचार सेवा प्रदाताओं को इस समस्या का समाधान करना चाहिए। खराब नेटवर्क के कारण वे इंटरव्यू में भी शामिल नहीं हो सके।
उन्होंने आगे बताया कि इस मामले में पीएमओ को भी पत्र लिख जानकारी दे दी गई है। पीएमओ से खत का जवाब तो आया मगर आज तक नेटवर्क की समस्या जस की तस बनी हुई है।
ऑनलाइन शिक्षा पाने के लिए सिर्फ 24 प्रतिशत भारतीय परिवारों के पास इंटरनेट की सुविधा है। यूनिसेफ की एक नई रिपोर्ट के अनुसार यह जानकारी सामने आयी है। उपलब्ध आंकड़ों से संकेत मिलता है कि भारत में लगभग एक चौथाई (24 प्रतिशत) घरों में इंटरनेट की सुविधा है और इंटरनेट तक पहुंच हासिल करने के मामले में एक बड़ा ग्रामीण-शहरी और लैंगिक विभाजन है।