आदिवासियों के विरोध को दरकिनार कर केंद्र ने दी परसा के 841 हेक्टेयर वन भूमि में खनन की अनुमति

रायपुर। केंद्र सरकार ने आदिवासियों के विरोध को दरकिनार करते हुए परसा के 841 हेक्टेयर वन क्षेत्र में खनन की अनुमति दे दी है। बता दें कि 2009 में यूपीए सरकार ने इस क्षेत्र को प्रतिबंधित क्षेत्र घोषित किया था।

राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम (Rajasthan Electricity Generation Corporation) को छत्तीसगढ़ के सरगुजा स्थित परसा कोल ब्लॉक (Parsa coal block) में खनन कार्य शुरू (Mining work start) करने के लिए केन्द्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से क्लियरेंस मिल गई है।

कोयला खनन परियोजनाओं (Coal Projects In Chhattisgarh) के विरोध में छत्तीसगढ़ के सरगुजा और कोरबा जिले के 30 गांवों के 350 ग्रामीण पैदल मार्च कर राजधानी भी पहुंचे थे। आदिवासियों ने इसका नाम हसदेव बचाओ पदयात्रा दिया था। ग्रामीणों ने राज्यपाल अनुसुइया उइके सी भी मुलाकात की थी।

ग्रामीण हसदेव अरण्य क्षेत्र में चल रही और प्रस्तावित कोयला खनन परियोजनाओं का विरोध कर रहे हैं, जिसके बारे में उनका कहना है कि इससे राज्य के वन पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा है। यह क्षेत्र जैव विविधता में समृद्ध है और हसदेव और मांड नदियों के लिए जलग्रहण क्षेत्र है, जो राज्य के उत्तरी और मध्य मैदानी इलाकों की सिंचाई करते हैं।

हसदेव अरण्य बचाओं संघर्ष समिति के अनुसार, दो जिलों के प्रदर्शनकारियों का एक संयुक्त मंच है, इनके विरोध के बावजूद इस क्षेत्र में छह कोल ब्लॉक आवंटित किए गए हैं। इनमें से दो में खनन चालू हो गया है। परसा पूर्व और केटे बसन ब्लॉक और चोटिया के ब्लॉक 1-2 है। इसके साथ ही परसा के दूसरे कोल ब्लॉक को पर्यावरण मंत्रालय से क्लियरेंस मिल गया है। ग्रामीणों का आरोप है कि जमीन अधिग्रहण का काम बिना ग्राम सभा की अनुमति की गई है। साथ ही भूमि अधिग्रहण का काम भी जारी है। संघर्ष समिति के प्रमुख सदस्य उमेश्वर सिंह आर्मो ने आरोप लगाया है कि परसा में पर्यावरण मंजूरी के लिए जाली दस्तावेज का प्रयोग किया गया है। साथ ही मंत्रालय को गलत जानकारी दी गई है।

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