रायपुर : विद्यालय में फीस बढ़ाने और कॉपी किताबें और गणवेश खरीदने के लिए दुकानें तय करने के मामले में जिला शिक्षा अधिकारी ने 6 निजी स्कूलों को नोटिस थमाया है। जिला शिक्षा अधिकारी ने शुक्रवार को 9 टीमें बनाकर विभिन्न स्कूलों की जांच कराई इस दौरान छह ऐसे विद्यालयों को चिन्हित किया गया जहाँ इन नियमों का उल्लंघन किया जा रहा था। और उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया है।

लेकिन महत्वपूर्ण बात यहां पर यह है कि यह सभी विद्यालय जिन पर कार्यवाही की गई है, यह शिक्षा के व्यापार के समंदर की छोटी मछलियां हैं इस समंदर की बड़ी मछलियां तो आज भी खुले में अपना व्यापार फलीभूत कर रही हैं। उन पर कोई कार्यवाही अब तक शिक्षा विभाग के किसी अधिकारी के द्वारा नहीं की गई है। जिन विद्यालयों पर कार्यवाही की गई उनमें ग्रेसियस पब्लिक स्कूल अभनपुर, सरस्वती शिशु मंदिर, सूर्या पब्लिक स्कूल अभनपुर, ग्रीन इंडिया पब्लिक स्कूल अभनपुर और रतन देवी डागा स्कूल, सिविल लाइन, रायपुर शामिल हैं।
बड़ी विद्यालयों को मिली आजादी ?
बहुत प्रतिष्ठित विद्यालयों के छात्रों को भी गणवेश और कॉपी किताब आदि खरीदने के लिए नियत दुकान तय करके विद्यालय के द्वारा ही बता दी जाती है। इस बात की शिकायत TRP से कई प्रतिष्ठित विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्रों के अभिभावकों ने की थी। अभिभावकों का कहना है कि बड़े विद्यालयों ने अतिरिक्त कमाई के रास्ते किताबों और यूनिफार्म के जरिए निकाल लिए हैं। एक तरफ यह बड़े विद्यालय मोटी फीस अभिभावकों से वसूलते हैं। इसके अलावा इन सभी पैंतरों को अपनाकर अतिरिक्त आय अर्जित करने का प्रयास इन विद्यालयों के द्वारा हमेशा से किया जा रहा है। अगर कोई अभिभावक इस के विरुद्ध आवाज उठाने का प्रयास करता है तो उसका उसका खामियाजा छात्र को उठाना पड़ता है। कहीं ना कहीं शहर के बड़े अधिकारी, कर्मचारी और वकील, चिकित्सक जैसे अभिभावक भी इस समस्या से बहुत परेशान हैं।
नयी किताबें खरीदना बाध्यता
इस व्यापार में नामी विद्यालय भी शामिल हैं कहीं ना कहीं इन विद्यालयों की इस मनमानी की भनक सभी अधिकारियों को भी है। लेकिन इस पर कार्यवाही करने से सभी हाथ खींचते नजर आते हैं। किताबें कॉपी और गणवेश के अलावा बस्ते में विद्यालय का LOGO लगाकर बेचना भी आजकल काफी चलन में हैं। विद्यालय प्रशासन के द्वारा निश्चित दुकान की जानकारी अभिभावकों को दे दी जाती है जहां से जाकर वे लोगों लगे हुए बस्ते, विद्यालय की लोगों के साथ कॉपियां और कक्षा के पाठ्यक्रम के अनुसार निर्धारित सभी किताबें खरीदने के लिए बाध्य होते हैं। अधिकांश विद्यालयों में पुरानी किताबें ले जाना ही मना होता है। जबकि पाठ्यक्रम में कोई बदलाव पिछले वर्ष की तुलना में नहीं होता, इसके बाद भी विद्यालय प्रशासन इस बात को स्वीकार नहीं कर सकता कि कोई छात्र अपने किसी पूर्व छात्र की किताबें लेकर आगे की पढ़ाई कर सकें।़
एक लाख से डेढ़ करोड़ तक का होता है मुनाफा
अभिभावकों की शिकायतों के बाद जब टीआरपी ने इस बात की तफ्तीश की तब यह बात निकलकर सामने आई कि इस व्यापार में छोटे विद्यालयों को ₹1 लाख तक और वहीं बड़े विद्यालयों को ₹1 करोड़ तक का अतिरिक्त मुनाफा किताबों, यूनिफार्म और बस्तों के माध्यम से हो जाता है। जहां एक और कोरोना के समय में सभी आजीविका चलाने के लिए भी जूझ रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ इन विद्यालयों के द्वारा इस तरह से अनुचित साधनों का प्रयोग करते हुए अतिरिक्त आय अर्जित करना कहीं ना कहीं समाज के अहित का विषय बना हुआ है। इस अव्यवस्था के कारण प्रतिष्ठित अधिकारियों से लेकर ऑटो चालक तक परेशान हैं और इसका पूरा भार उनकी जेबों पर पड़ता नजर आ रहा है।
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