बिलासपुर। कोर्ट में दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद जांजगीर चांपा जिले में दिए गए एक टेंडर की प्रक्रिया में हस्तक्षेप से न्यायालय ने इंकार कर दिया। न्यायालय ने कहा कि टेंडर प्रक्रिया में मामूली कमी पर ध्यान देने से अधिक जरूरी है कि सार्वजनिक परियोजनाओं को पूरा करने में आवश्यक विलंब न हो।

जांजगीर-चांपा जिले में एक NGO संगम सेवा समिति को जिला खनिज फाउंडेशन ट्रस्ट (DMF) ने एक टेंडर जारी किया है, जिसके तरह उसे खनन प्रभावित क्षेत्रों के लिए एक मास्टर प्लान तैयार करना है। इस समिति को टेंडर देने के खिलाफ जनमित्रम समिति की ओर से एक जनहित याचिका दायर कर हाईकोर्ट में बताया गया कि NGO ने चार्टर्ड एकाउंटेंट से प्रमाणित टर्नओवर का दस्तावेज अपने आवेदन के साथ जमा नहीं किया था, जो टेंडर देने की एक अनिवार्य शर्त थी। इसके बावजूद डीएमएफ के अधिकारियों ने समिति के पक्ष में टेंडर जारी कर अनुबंध किया और काम दे दिया है।
इस मामले में सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की डिवीजन बेंच ने कहा कि इस प्रकरण में महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि दिए गए टेंडर की प्रक्रिया पर कोर्ट का हस्तक्षेप आवश्यक है या नहीं। इस तरह के सार्वजनिक कार्यों के लिए किए जाने वाले अनुबंधों पर न्यायिक सीमा क्या होनी चाहिए। कोर्ट का मानना है कि मामूली प्रक्रियात्मक कमी के कारण टेंडर को निरस्त करने का आदेश देना अनुचित है। नई टेंडर प्रक्रिया शुरू करने से कार्य में अनावश्यक विलंब होगा। इसका वित्तीय प्रभाव भी पड़ेगा। इसलिये याचिका में की गई मांग को खारिज कर दिया गया।