बिलासपुर। छत्तीसगढ़ में साइबर अपराधों की जांच के लिए इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य का परीक्षण करने वाला कोई विशेषज्ञ नियुक्त नहीं है। इस मामले को लेकर दायर याचिका को लेकलर उच्च न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकार दोनों को स्पष्ट निर्देश दिए कि अगली सुनवाई से पूर्व हर स्थिति में नियुक्ति प्रक्रिया पूरी की जाए। अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई 13 जुलाई को निर्धारित की है।

इस मामले में याचिका दायर करने वाली शिरीन मालेवर ने अधिवक्ताओं रुद्र प्रताप दुबे और गौतम खेतरपाल के माध्यम से अदालत को बताया है कि प्रदेश में साइबर अपराधों की जांच के लिए इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य का परीक्षण करने वाला कोई विशेषज्ञ नियुक्त नहीं है।

‘बढ़ रहे साइबर अपराधों के चलते जरुरी हैं विशेषज्ञ’

पहले हुई सुनवाई में अधिवक्ताओं ने बताया था कि देश के 16 अन्य स्थानों पर ऐसे विशेषज्ञों की नियुक्ति की जा चुकी है, जो केंद्र सरकार द्वारा की जाती है, किंतु छत्तीसगढ़ अभी भी इससे वंचित है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा ने सुनवाई के दौरान कहा कि आईटी अधिनियम की धारा 79 के अंतर्गत इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य का परीक्षण करने वाला अधिकारी न होना अत्यंत गंभीर समस्या है। साइबर अपराधों की बढ़ती संख्या को देखते हुए ऐसे विशेषज्ञ की नियुक्ति नितांत आवश्यक है। उन्होंने केंद्र और राज्य दोनों सरकारों से कहा कि मामले की गंभीरता को समझते हुए तुरंत निर्णय लिया जाए।

कोर्ट ने दिया अंतिम अवसर

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से अधिवक्ता रमाकांत मिश्रा ने जानकारी दी कि राज्य के अनुरोध पर भारत सरकार की एक टीम ने छत्तीसगढ़ की साइबर फॉरेंसिक प्रयोगशाला का निरीक्षण किया था, जिसमें कुछ कमियां पाई गई थीं। इन कमियों को अब दूर कर लिया गया है और केंद्र सरकार से नियुक्ति के लिए अनुरोध किया गया है। मिश्रा ने कहा कि विशेषज्ञ की नियुक्ति तीन चरणों की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही संभव है। इस पर अदालत ने दोनों पक्षों को अंतिम अवसर देते हुए कहा कि अगली सुनवाई से पूर्व आवश्यक नियुक्ति अवश्य सुनिश्चित की जाए।