0 प्रशासन ने संज्ञान लेकर समझौते का किया प्रयास

बिलासपुर। जागरूकता के तमाम प्रयासों के बावजूद समाज में आज भी परिवारों के बहिष्कार का चलन बरकरार है। बिलासपुर जिले के ग्राम टेकर निवासी देवी प्रसाद धीवर का परिवार बीते एक वर्ष से सामाजिक बहिष्कार की पीड़ा झेल रहा है। इसकी वजह यह है कि शादी के महज आठ दिन बाद ही उनके बेटे की नवविवाहिता अपने मायके के एक युवक के साथ भाग गई। इस घटना के बाद समाज ने न केवल देवी प्रसाद पर 50 हजार रुपये का जुर्माना ठोका, बल्कि जुर्माना न चुकाने पर उन्हें समाज से बाहर कर दिया। हालांकि अब जिला प्रशासन की पहल पर मामले में सुलह होने की बात कही जा रही है।
भाई के निधन पर सभी ने मुंह मोड़ा
देवी प्रसाद ने बताया कि 19 जुलाई 2024 को उनके भाई का निधन हो गया, लेकिन समाज के लोगों ने अंतिम संस्कार में रिश्तेदारों तक को शामिल नहीं होने दिया। इन्हें यह चेतावनी दी गई थी कि जो भी इसमें शामिल होगा, उस पर एक लाख रुपये का दंड लगाया जाएगा। इस दबाव के चलते देवी प्रसाद के परिवार के लोग भी शोक में शामिल नहीं हो सके। वे बताते हैं कि बीते एक साल से उनका पूरा परिवार सामाजिक तिरस्कार झेल रहा था और अब रिश्तेदारों ने भी घर आना छोड़ दिया है।
पीड़ित परिवार की शिकायत पर प्रशासन ने लिया संज्ञान
मामला बेलतरा विधानसभा क्षेत्र के ग्राम पंचायत टेकर और सीपत थाना क्षेत्र का है। पीड़ित परिवार ने कलेक्टर से शिकायत की और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की। मामला सामाजिक रूप से संवेदनशील होने के चलते प्रशासन ने तुरंत संज्ञान लिया और मौके पर अधिकारियों को भेजा। नायब तहसीलदार राहुल साहू अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंचे और धीवर समाज व पीड़ित परिवार के बीच सुलह की प्रक्रिया शुरू की।
समझौते के लिए करनी पड़ी मशक्कत
काफी समझाइश के बाद दोनों पक्षों में आपसी सहमति से समझौता हो गया। समाज ने देवी प्रसाद के परिवार को पुनः समाज में स्थान देने और समान अधिकार देने पर सहमति जताई।
समाज ने आरोपों को बताया गलत
वहीं, धीवर समाज के सचिव पवन धीवर ने देवी प्रसाद के आरोपों को गलत बताया। उन्होंने कहा कि देवी प्रसाद को समाज से बहिष्कृत नहीं किया गया था, न ही किसी पदाधिकारी ने उनके भाई के अंतिम संस्कार में लोगों को जाने से रोका। समाज के कई लोग उनके यहां अंतिम संस्कार में शामिल हुए थे।
सामाजिक बहिष्कार के खिलाफ कानून की जरुरत
बता दें कि पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के कार्यकाल के दौरान छत्तीसगढ़ में सामाजिक बहिष्कार की परंपरा के खिलाफ कानून का खाका तैयार करके इसे विधानसभा में पारित करने की तैयारी चल रही थी। मगर आम लोगों के बीच चर्चा के लिए इसका ड्राफ्ट बाहर आते ही समाज के कथित ठेकेदारों ने इस कानून का यह कहते हुए विरोध करना शुरू कर दिया कि अगर यह कानून अस्तित्व में आया तो समाज में काफी दिक्क्तें पेश होंगी। चूंकि आगे चुनाव था, इसलिए इस प्रस्तावित ड्राफ्ट को अस्तित्व में आने से पहले ही दबा दिया गया। इसका दुष्परिणाम सामने है। छत्तीसगढ़ में आज भी विभिन्न इलाकों में विभिन्न जाति-धर्म या फिर ग्रामीण समाज में लोगों के बहिष्कार की प्रथा आज भी कायम है और लोग इस वजह से काफी प्रताड़ित होते हैं।
छत्तीसगढ़ में जिस तरह टोनही प्रताड़ना अधिनियम अस्तित्व में लाया गया, उसी तरह सामाजिक बहिष्कार के खिलाफ भी कानून लाने की जरुरत है।