बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने रिश्वत और भ्रष्ट्राचार से जुड़े मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि,रिश्वत की रकम की बरामदगी किसी को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है, जब तक यह साबित न हो जाए कि आरोपी ने पैसे स्वेच्छा से घूस के तौर पर स्वीकार किए थे। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा की एकलपीठ में हुई। विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निवारण), रायपुर की अदालत ने 2017 में लवन सिंह को दो साल की सजा सुनाई थी, जिसे अब हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है।
मामला वर्ष 2013 का है, जब शासकीय प्राथमिक विद्यालय के शिक्षाकर्मी और आदिवासी छात्रावास के तत्कालीन अधीक्षक बैजनाथ नेताम ने आरोप लगाया था कि छात्रवृत्ति स्वीकृति के बदले मंडल संयोजक लवन सिंह चुरेन्द्र ने उनसे 10 हजार की रिश्वत मांगी थी। उन्होंने 2 हजार एडवांस देकर बाकी रकम बाद में देने की बात कही थी। इसके बाद उन्होंने एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) में शिकायत की और ट्रैप के दौरान आरोपी को गिरफ्तार भी किया गया।
जांच में सामने आया कि शिकायतकर्ता स्वयं छात्रवृत्ति घोटाले के आरोप में जांच के घेरे में था। मंडल संयोजक लवन सिंह चुरेन्द्र ही उस जांच के अधिकारी थे और उन्होंने शिकायतकर्ता के खिलाफ 50,700 रुपए की गबन की पुष्टि कर वसूली आदेश जारी किया था। कोर्ट ने माना कि यह शिकायत बदले की भावना से प्रेरित थी।
हाईकोर्ट ने यह भी पाया कि जिस छात्रवृत्ति की स्वीकृति को लेकर रिश्वत मांगने का आरोप हैं, वह पहले ही मंजूर हो चुकी थी और राशि भी निकाल ली गई थी। इसके अलावा ट्रैप पार्टी में शामिल गवाहों की गवाही आपस में मेल नहीं खा रही थी। शिकायतकर्ता द्वारा पेश की गई ऑडियो रिकॉर्डिंग की कोई फॉरेंसिक जांच नहीं करवाई गई और उसमें मौजूद आवाज की पुष्टि भी नहीं हुई।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के बी. जयाराज बनाम आंध्र प्रदेश सरकार और नीरज दत्ता बनाम दिल्ली सरकार जैसे अहम मामलों का हवाला देते हुए कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दोषसिद्धि के लिए रिश्वत की स्पष्ट मांग और उसकी स्वैच्छिक स्वीकारोक्ति साबित होना जरूरी है।