डॉक्टर संकेत ठाकुर

आज कल क्रिकेट का 20-20 फार्मेट काफी लोकप्रिय है। केंद्र की सरकार को भी यह

फार्मेट काफी रास आ रहा है। मोदी सरकार ने अपनी दूसरी पारी हालांकि पिछले साल

शुरू है, लेकिन तर्ज पूरा 20-20 का है।

 

सरकार बनने के बाद से ताबड़तोड़ जिस प्रकार से यह सरकार निर्णय ले रही है, ऐसा

लगता है कि सरकार जल्दबाजी में है। एजेंडा चाहे जो हो ,लेकिन भारतीय राजनीति के

इतिहास पुरुष बनने की मोदी और शाह की चेष्टा भी साफ झलकती है।

 

कदम गलत है या सही यह बहस का मुद्दा हो सकता है, लेकिन यह कहना कहीं से भी

गलत नहीं होगा कि सरकार का रवैय्या सहिष्णु और उदार नहीं दिखता। खतरे में केवल

एक धर्म या उसकी निष्ठा नहीं है।

 

सवाल इस बात का है कि अभी तक सरकार ने जितने भी निर्णय लिए हैं, उससे एक धर्म

विशेष में असुरक्षा की भावना उपजी है। सरकार जिस एजेंडे को लागू करने में लगी हुई है,

उसे लागू करना हो सकता है उसकी मजबूरी हो, लेकिन भारत और उसकी संस्कृति को

अक्षुण्ण रखने का दायित्व उससे भी बड़ा है। यह कहना गलत नहीं होगा कि सरकार की

विश्वसनीयता आज खतरे में है।

 

पिछला साल काफी उथल पुथल रहा। कश्मीर से धारा-370 हटा, लद्दाख और कश्मीर दो

केंद्र शासित प्रदेश के रूप में अस्तित्व में आए। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अयोध्या में

राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ हुआ। इससे देश के अंदर दो तरह की विचारधारा पनपी।

 

एक वर्ग ने इसे भारत को हिंदु गणराज्य के रूप में स्थापित करने की कोशिश के रूप में प्रचारित

किया तो दूसरे ने इसे राष्ट्रवाद की संज्ञा दी। सत्ता के शिखर तक पहुंचने के लिए बहुसंख्यकों को

दिखलाए गए सब्जबाग की परिणति इसी रूप में होनी थी।

 

सही या गलत की व्याख्या आज बेमानी है। सवाल यह है कि आगे क्या ? इस पर विचार करना होगा।

आर्थिक मोर्चे पर सरकार पूरी तरह विफल साबित हुई है। जीडीपी में नकारात्मक ग्रोथ है। सरकारी

क्षेत्र के कंपनियों के निजीकरण के प्रयास हो रहे हैं। इन चुनौतियों से भी सरकार को निपटना होगा।

 

सीएए और एनआरसी को लेकर सभी सशंकित है। सरकार की मंशा गलत नहीं है तो नए साल में उसे

भ्रम को दूर करने का संकल्प लेना चाहिए। साथ ही लोगों को यह विश्वास दिलाना चाहिए कि सभी

नागरिकों के हित सुरक्षित हैं चाहे वो हिन्दु हो या फिर मुसलमान। यह राज्य का कर्तव्य भी है। ऐसा नहीं

होता है तो यह सरकार चाहे कितनी भी डींगे हांक ले, इसे सफल सरकार तो नहीं कहा जा सकता।

 

पिछले एक साल में गंगा में काफी पानी बह चुका है। गंगा की तासीर रही है कि उसमें मिलने वाली सभी

नदियों के पानी को निर्मल कर वह गंगाजल बना देती है। सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति और परंपरा

भी यही रही है। वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा… अनादि काल से सभी को अपनाने की भारतीय

संस्कृति का प्रबल उद्घोष है। भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म का अस्तित्व भी इसी पर निर्भर करेगा।

 

आखिर में गौर करें तो….

उम्मीद की किरण के सिवा कुछ नहीं यहां, इस घर में रौशनी का बस यही इंतजाम है।। टीआरपी के लिए

डॉक्टर संकेत ठाकुर का विशेष आलेख

 

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