वर्तमान सरकार में भी जारी है चहेतों को टेंडर देने का खेल, नियम ऐसे कि छत्तीसगढ़ की अधिकतर कंपनियां अपने आप हो जा रहीं बाहर
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रायपुर। छत्तीसगढ़ सरकार के कई शासकीय विभागों द्वारा टेंडर निकाले जाते हैं। उनमें नियम व शर्तों की ऐसी बाढ़ होती है जिसमें छत्तीसगढ़ की कंपनियां कहीं भी फिट नहीं बैठती। इतना ही नहीं विभाग द्वारा कंपिनयों की लिस्ट भी सार्वजनिक नहीं की जाती है। न ही टेंडर में रिजेक्शन का कोई कारण बताया जाता है। आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ में टेंडर की शर्तें इएनवाय व पीडब्लूसी कंपनियां बनाती है। जिनसे बाहर की कंपनियां साठ-गांठ कर टेंडर पाने में कामयाब हो जाती है। वहीं छत्तीसगढ़ के युवा उद्यमी हाथ पर हाथ धरे बैठे रह जाते हैं।

छला जा रहा है छत्तीसगढ़िया

छत्तीसगढ़ में करीब 15 साल बाद कांग्रेस की सरकार आई है। सत्ता वापसी से पहले कांग्रेस ने नवा छत्तीसगढ़ का सपना दिखाया था। छत्तीसगढ़ व छत्तीसगढ़ियों के विकास के लिए कांग्रेस ने चुनाव से पहले प्रण लिया था। मगर वर्तमान सरकार भी पूर्व सरकार के ढर्रे पर चलती दिखाई दे रही है। भले ही एक ओर भूपेश बघेल सरकार छत्तीसगढ़िया स्वाभिमान की लड़ाई लड़ रहे हैं। मगर शासन की ही शासकीय संस्थाएं छत्तीसगढ़ की कंपनियों से छल करते हुए अपनी चहेती कंपनियों को छत्तीसगढ़ आमंत्रित कर रही हैं।

केस 1-

छत्तीसगढ़ पर्यटन विभाग आरएफपी वेब एप्लिकेशन डेवलेपमेंट, मेंटेनेंस एंड सोशल मीडिया हैंडलिंग ( RFP No. 3192(B)/MKT)

  • 5 साल के दौरान किए गए हर असाइनमेंट की कॉट्रैक्ट वैल्यू 20 लाख रुपए होनी चाहिए।
  • संबंधित संस्था ने दो साल पूरे कर लिए हों साथ ही वह किसी शासकीय या अर्ध शासकीय संस्था के लिए काम कर चुकी है।
  • संस्था का टर्नओवर औसतन अंतिम तीन वर्ष के दौरान 30 करोड़।
केस 2-

डारेक्टोरेट ऑफ ट्रेजरी, अकाउंट्स व पेंशन विभाग ( Tender No. 4937 Date 22/02/2021 )

विभाग ने टेंडर क्रमांक 4937 22 फरवरी 2021 को निकाला था। जिसकी शर्तों के अनुसार भाग लेने वाली कंपनी कम से कम 3 साल शासकीय या अर्ध शासकीय विभागों के लिए काम कर चुकी हो। साथ ही बिडर का टर्नओवर अंतिम तीन वर्ष के दौरान 10 करोड़ हो। यदि यह आंकड़ा 3 वर्ष के लिए देखें तो 30 करोड़ रुपए तक पहुंचता है।

केस 3-

छत्तीसगढ़ इंफॉर्मेशन प्रमोशन सोसायटी (चिप्स) ( RFP for Empanelment of IT Services Firms for Government of Chhattisgarh For Periods of 3 Years )

चिप्स छत्तीसगढ़ ने कुछ समय पहले विभाग में इंपैनल होने के लिए 3 साल के लिए आरएफपी निकाली थी। कंपनियों की क्षमता के हिसाब से यह आरएफपी 4 कैटेगरी A, B, C, D में मंगवाई गई थी।

  • कैटेगरी A की शर्तों के अनुसार कंपनी की वार्षिक आय 2 करोड़ या इससे अधिक होनी चाहिए।
  • कंपनी ने 4 साल किसी संस्था के लिए काम किया हो साथ ही हर प्रोजेक्ट की लागत 25 लाख रु होनी चाहिए।
  • आईटी फर्म में कम से कम 15 पर्मानेंट कर्मचारी जो 1 साल से लगातार काम कर रहे हैं।
  • 15 कर्मचारियों में से 7 के पास टेक्निकल डिग्री होनी चाहिए।
  • कंपनी की औसतन आय पांच वर्षों के दौरान कम से कम 3 वर्षों के लिए 2 करोड़ होना चाहिए। बी, सी व डी कैटेगरी के लिए नियम व शर्तें समान है बस वार्षिक आय व कर्मचारियों की संख्या में थोड़ा अंतर है।

टेक्स्टबुक कॉर्पोरेशन भी नहीं है पीछे

छत्तीसगढ़ पाठ्यपुस्तक निगम में भी पेपर की ब्राइटनेस को आधार बनाकर सरकार 27 करोड़ का नुकसान पहुंचाया है। वर्तमान में जिस फर्म से छत्तीसगढ़ कागज ले रही है उसी से मध्यप्रदेश और ओडिशा भी कागज ले रहे हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ की दरों में भारी अंतर दिखाई दे रहा है। इसके लिए कारण बताया जा रहा है बढ़ी हुई ओपेसिटी और ब्राइटनेस को जबकि इसकी कोई ख़ास मांग नहीं की गयी थी। लेकिन इसी अंतर के कारण छत्तीसगढ़ में भूपेश सरकार को 27 करोड़ का अतिरिक्त बोझ झेलना पड़ रहा है। यह सब चहेतों को पेपर सप्लाई का टेंडर देने के लिए ओपेसिटी और ब्राइटनेस को आधार बनाया गया। ऐसा नहीं है कि छत्तीसगढ़ में पेपर सप्लायर्स नहीं है।

टर्नओवर के खेल में टेंडर हो जाता है फिक्स

छत्तीसगढ़ के युवा उद्यमियों का कहना है कि शासकीय विभाग द्वारा जितने भी टेंडर निकाले जा रहे हैं उन्हें बाहरी संस्थाओं को ही दिया जा रहा है। टेंडर में ऐसी शर्तें हैं जो छत्तीसगढ़ की अधिकांश कंपनिया स्वतः ही बाहर हो जाती हैं। या चालाकी से बाहर कर दी जाती हैं। सबसे बड़ा पेंच टर्नओवर के खेल में अटकता है।

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