बस्तर विश्वविद्यालय में आयोजित दीक्षांत समारोह में शामिल हुईं राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके

विश्व विद्यालय में रोजगारपरा शिक्षा की उपलब्धिता पर दिया बल 200 छात्र-छात्राओं को पदक व उपाधियों का किया वितरण

जगदलपुर। आज शुक्रवार को राज्यपाल  अनुसुईया उइके जगदलपुर के बस्तर विश्वविद्यालय में आयोजित दीक्षांत समारोह में शामिल हुई। राज्यपाल उइके ने कहा, कि हम शिक्षा को रोजगार से जोड़कर देखते हैं और मूल्यांकन का आधार रोजगार को बनाते हैं। मगर शिक्षा वस्तुतः एक संस्कार है, जिससे मनुष्य-जीवन को एक दृढ़ आधारभूमि मिलती है।  कहा जीवन-यापन के लिए जीविका तो चाहिए ही, परंतु संस्कार के बिना मनुष्य की अर्थवता नहीं साबित होती।

आयोजित समारोह के अवसर पर 200 मेधावी छात्र-छात्राओं को पदक और उपाधि दी गई। राज्यपाल उइके ने उपाधि प्राप्त छात्र-छात्राओं तथा प्रावीण्य-सूची में स्थान पाने वाले मेघविओं को बधाइयां एवं शुभकामनाएं दी साथ ही कहा कि वे अपने व्यावहारिक जीवन में भी ऐसी ही प्रवीणता का परिचय दें और अपने परिवार, समाज और देश का नाम रौशन करें।

राज्यपाल उइके ने कहा कि हमारे आदिवासी भाईयों एवं बहनों के पास जो संस्कार हैं, वह किसी भी दृष्टि से पढ़े-लिखे व्यक्ति के संस्कार से कम नहीं हैं। प्रकृति के साथ तादात्म्य स्थापित करने में जो ज्ञान मिलता है, वह किताबों में अब तक पूरा नहीं आ पाया है। शिक्षा संस्कार के साथ-साथ कौशल-विकास का माध्यम है और जिस युवा में शिक्षा प्राप्त करने के बाद कौशल है, तो वह बेरोजगार भला कैसे हो सकता है।

बस्तर वनोपज, कला और खनिज संसाधन से सम्पन्न है। इस दिशा में विश्वविद्यालय की भूमिका रोजगारपरक शिक्षा की उपलब्धता पर होनी चाहिए। इसे ध्यान रखते हुए बस्तर विश्वविद्यालय में अधिक से अधिक रोजगारपरक पाठयक्रम संचालित किये जाएं, ताकि बस्तर अंचल के युवाओं के लिए शिक्षा के साथ ही रोजगार की उपलब्धता सुनिश्चित किया जा सके।

राज्यपाल उइके ने कहा कि हमारी आश्रम-व्यवस्था में श्रम का महत्व आदि से अंत तक सदैव रहा है। श्रम शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में संतुलन लाता है तथा हमारा बौद्धिक विकास भी श्रम से संभव है। हमारे युवा यह प्रयास करें कि वे साघनों के अधीन न होवें बल्कि साधन उनके अधीन हों।

राज्यपाल ने संत कबीर के उपदेश का उद्धरण देते हुए कहा कि ज्ञान असीम अनंत है। शिक्षा ज्ञान की कुंजी है। शिक्षा पढ़कर कार्यानुभव से प्राप्त हो सकती है, जबकि ज्ञान अनुभूतिजन्य होकर व्यक्ति के साथ अभिन्न हो जाता है। हमारे शिक्षार्थी दीक्षांत के बाद अपने-अपने कार्यक्षेत्र में ज्ञान का विस्तार करने हेतु कटिबद्ध होंगे, तभी उनकी उपाधि की सार्थकता है।

उन्होंने विश्वास जताते हुए कहा कि विश्वविद्यालय से दीक्षित युवा अपने लक्ष्य की प्राप्ति में सफल होंगे और समाज में अपनी वास्तविक भूमिका का निर्वाह कौशल के साथ करेंगे। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय से भी यही अपेक्षा है कि इस अंचल में उपलब्ध प्राकृतिक वन संसाधन के स्त्रोतों पर शोध करें।

इसके साथ ही युवाओं से उस वैज्ञानिक चेतना के विकास का मार्ग प्रशस्त करें, जिससे वे व्यक्तिगत, जातिगत, भाषागत, धर्मगत, क्षेत्रगत संकीर्णता से ऊपर उठकर “वसुधैव कुटुम्बकम” की भावना को आत्मसात कर सकें। इस अवसर पर राज्यपाल उइके के साथ ही और भी मंत्री शामिल हुए

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