सामाजिक बहिष्कार और जुर्माने की प्रथा आज भी है कायम, दो मामलों में पीड़ित पहुंचे महिला आयोग की शरण में
सामाजिक बहिष्कार और जुर्माने की प्रथा आज भी है कायम, दो मामलों में पीड़ित पहुंचे महिला आयोग की शरण में

रायपुर। छत्तीसगढ़ में टोनही प्रताड़ना के अलावा समाज से बहिष्कृत करने और जुर्माना लगाने की प्रथा तमाम प्रयासों के बावजूद अब भी कायम है। आये दिन ऐसे मामले प्रकाश में आते हैं और पुलिस द्वारा कार्रवाई भी की जाती है। बावजूद इसके विभिन्न समाजों में इस तरह की प्रथा पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। ऐसे ही दो मामले आज महिला आयोग में पेश हुए जिसमे सुनवाई के दौरान समाज प्रमुखों ने पीड़ितों से माफ़ी मांगी और जुर्माना वापस करने पर सहमत हुए।

शराबी दूल्हे की बारात लौटा दी मगर सम्मान की बजाय…

महिला आयोग में एक ऐसा मामला सामने आया जिसमे आदिवासी समाज की एक युवती ने बारात लेकर आये दूल्हे के साथ ससुराल जाने से इसलिए इंकार कर दिया क्योंकि वह शराब के नशे में पागलों की तरह हरकतें कर रहा था। वधु पक्ष ने बारात लौटा दी। इस मामले में समाज के प्रमुखों द्वारा युवती को सम्मानित करने की बजाय उलटे उसके परिवार के ऊपर जुर्माना लगा दिया।

शिक्षक है समाज का सचिव और डराकर वसूलता है अर्थ दंड

इस प्रकरण में पीड़िता ने आयोग के समक्ष बताया कि अनावेदक एक शिक्षक होने के साथ समाज का सचिव है और समाज के लोगो को डराकर अर्थदंड वसूलता है।

इस मुद्दे को लेकर समाज प्रमुखों के अलावा वर-वधु दोनों पक्ष के लोग बैठक में शामिल हुए। समाज प्रमुखों ने वधु पक्ष को इस मामले में दोषी ठहराते हुए कहा कि अगर दूल्हा शराबी था तो इसके बारे में विवाह से पहले पता कर लेना था। ऐसा कहकर वधु पक्ष से 30 हजार रूपये का जुर्माना वसूल कर लिया गया। समाज प्रमुखों को संवेदनशीलता का परिचय देना था मगर उन्होंने उस शराबी को उलटे पैसा दिलवाया।

समाज से भी कर दिया बहिष्कृत

समाज के ठेकेदारों ने वधु पक्ष के परिवार को जुर्माना करने के साथ ही समाज से भी बहिष्कृत कर दिया। वे यहां भी नहीं रुके। समाज से बहिष्कृत करने के बाद जिन लोगों ने भी इस परिवार के सदस्यों से बातचीत की, उनके ऊपर भी पन्द्रह-पन्द्रह सौ रुपये का अर्थदंड लगाया। अर्थदंड भी एक-दो नहीं बल्कि लगभग 30 लोगों के ऊपर लगाया गया, और इनसे कुल 45 हजार रूपये की वसूली की गई।

आयोग के समक्ष मांगी माफ़ी

राज्य महिला आयोग ने इस मामले में समाज प्रमुखों को भी तलब किया। सुनवाई के दौरान आयोग ने समाज प्रमुखों को उनकी गलती का अहसास कराया तब उन्होंने पीड़ितों से आयोग के समक्ष माफी मांगी, और अर्थदंड की वापसी के लिए समय की मांग भी की। इस पर आयोग ने आगामी सुनवाई में अर्थदंड के साथ समाज प्रमुख को उपस्थित होने का निर्देश दिया है। पीड़ित युवती और उसके परिजनों ने आयोग में इस तरह न्याय मिलने पर संतोष व्यक्त किया।

अन्तर्जातीय विवाह करना पड़ा महंगा

इसी तरह एक अन्य समाज की युवती ने अन्तर्जातीय विवाह कर लिया, जिसे इस कृतु के चलते समाज से बहिष्कृत कर दिया गया। इसके उपरांत दोबारा समाज में शामिल करने के लिए युवती के परिजनों से समाज प्रमुखों ने भोज और अन्य खर्चों के लिए 63000 रूपये का जुर्माना वसूल लिया। महिला आयोग के समक्ष दोनों पक्ष उपस्थित हुए। यहां समाज प्रमुखों ने पीड़ितों से माफ़ी मांगी और 63000 रूपये वापस करने पर सहमत हुए। यह मामला रायपुर जिले का और प्रबुद्ध समाज से जुड़ा होना बताया जा रहा है।

इस तरह आयोग के समक्ष समाज में प्रताड़ित करने के दो मामले पेश हुए। इनमे से एक प्रकरण ऐसे समाज से जुड़ा था जहां आज भी समाज का अपना कानून है और ऐसी रूढ़ियाँ भी हैं जिसे कानूनन गलत माना जाता है, वही दूसरा समाज जागरूक होने के बाद भी समाज से बहिष्कृत करने और जुर्माने जैसी कार्रवाई आज भी कर रहा है।

सामाजिक दंड के खिलाफ कानून लाने का हुआ था प्रयास

बता दें कि भाजपा के शासनकाल में छत्तीसगढ़ की सरकार ने सामाजिक कुरीतियों और दंड के खिलाफ कानून विधेयक तैयार कर लिया था और इस पर दावा आपत्ति मंगाने की प्रक्रिया भी शुरू की गयी थी मगर अनेक समाज के लोगो ने इस कानून की खिलाफत की और प्रदर्शन शुरू कर दिया। मामला बिगड़ता देख सरकार ने यह विधेयक ही पेश नहीं किया। इस तरह छत्तीसगढ़ में टोनही प्रताड़ना के खिलाफ कानून लाने के बाद समाज की प्रताड़ना के खिलाफ एक और कानून बनाने का प्रयास विफल हो गया। अगर यह कानून आज लागू होता तो निश्चित तौर पर इस तरह की घटनाओं पर अंकुश लगता।

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