तीन वर्षों में 300 करोड़ खर्च करने के बाद भी पहचान को मोहताज प्रदेश का 'खेल जगत', राजधानी की तुलना नक्सल प्रभावित क्षेत्र के युवा दिखा रहे अपना हुनर
तीन वर्षों में 300 करोड़ खर्च करने के बाद भी पहचान को मोहताज प्रदेश का 'खेल जगत', राजधानी की तुलना नक्सल प्रभावित क्षेत्र के युवा दिखा रहे अपना हुनर

दामिनी बंजारे/रायपुर। छत्तीसगढ़ सरकार खेल प्रतिभा को उभारने के कई गंभीर प्रयास कर रही है। सरकार का प्रयास है कि राज्य के खिलाड़ी भी विश्वपटल पर अपनी छाप छोड़े। इसके लिए सरकार ने पिछले तीन वर्षों में लगभग तीन सौ करोड़ रुपए का बजट भी दिया।

इतना ही नहीं खिलाड़ियों की सुविधाओं के लिए स्टेडियम आदि की सुविधा भी उपलब्ध कराई है। बावजूद इसके छत्तीसगढ़ के बहुत ही कम खिलाड़ी हैं जो भारतीय टीम में शामिल होने में सफल हो सके हैं। बात अगर खेल एवं युवा कल्याण विभाग के बजट की करें तो वर्ष 2019-20 में 67 करोड़ 25 लाख 60 हजार रुपए अलॉट किए वहीं 2020-21 में एक अरब 25 करोड़ 13 लाख 95 हजार व 2021-22 में एक अरब 6 करोड़ 12 लाख 65 हजार रुपए का अच्छा खासा बड़ा बजट दिया है।

अगर तीनों वर्षों के कुल बजट देखें तो 298 करोड़ 52 लाख 20 हजार रुपए होता है। मगर इतनी राशि खर्च करने के बाद भी प्रदेश में उच्च स्तरीय खिलाड़ी नहीं निकल पाए हैं। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि इतनी रकम आखिर खर्च कहां हो रही है? अगर राजधानी रायपुर की बात करें तो सभी सुख-सुविधा होने के बाद भी यहां के खिलाड़ी इंडियन टीम का हिस्सा बनने में नाकाम ही साबित हुए हैं।

नक्सल क्षेत्र से निकल रहे खिलाड़ी

प्रदेश के शहरी क्षेत्र जहां खिलाड़ियों के लिए तमाम तरह की सुख-सुविधाएं हैं मगर इन क्षेत्रों के खिलाड़ियों से आगे नक्सलवाद का दंश झेल रहे क्षेत्र नारायणपुर और बस्तर से युवा खिलाड़ी आगे आ रहे हैं। क्रिकेट एसोसिएशन से मुताबिक नारायणपुर के रहने वाले यश कुमार वर्धा ने नक्सल क्षेत्र में ही रहकर खेल की बारीकियों को समझा और आज जिले की अंडर-16 के फाइनल में जगह बनाई है। केवल यश ही नहीं उनकी पूरी टीम फाइनल में पहुंची है।

पिछड़े शहरी क्षेत्र के खिलाड़ी

नक्सल क्षेत्र जहां सुविधाओं और संसाधनों की कमी है ऐसे क्षेत्र में खेल प्रतिभा आगे आ सकती है तो फिर तमाम सुविधा होने के बावजूद राजधानी रायपुर एवं दुर्ग-भिलाई, बिलासपुर, महासमुंद, कबीरधाम जैसे जिले खेल जगत में अपना योगदान क्यों नहीं दे पा रहे हैं। ऐसे क्षेत्रों से केवल गिनती के ही खिलाड़ी हैं जो आगे निकल पाए हैं।

आखिर कहां पीछे रह गए शहरी क्षेत्र के खिलाड़ी

प्रदेश में क्रिकेट, बैडमिंटन, हॉकी, बॉलीबॉल, कुश्ती और अन्य कई खेल के लिए राज्य सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर चुकी है। कई स्टेडियम भी बनाए गए हैं, मगर न तो कोई इससे कोई फायदा हुआ और न ही उच्च स्तर के खिलाड़ियों का निर्माण हो पाया। इस संदर्भ में जब टीआरपी ने जांच की तो कई बातें सामने आई। एसोसिएशन के लोगों ने खेल को लेकर अपने विचार रखे वे सच में हैरत में डाल दिया।

इस तरह होती है चयन प्रक्रिया

एसोसिएशन के जानकारों का कहना है कि इंडियन टीम की पांच टीमें होती हैं। जिसमें प्रदेश के खिलाड़ियों को चयनित करना होता है। खिलाड़ी को अच्छे संसाधन मिले, नौकरी मिले तो वे खेल के बाद भविष्य को लेकर चिंतित नहीं रहते। अन्य राज्यों की तुलना छत्तीसगढ़ में रोजगार के साधन न के बराबर हैं तो खिलाड़ी कहीं न कहीं एक उम्र और समय के बाद खेल से दूर हो जाता है। वहीं बात सिलेक्शन प्रक्रिया की करें तो प्रतिवर्ष खिलाड़ियों के ट्रायल होता है और डिस्ट्रिक्ट बॉडी फॉर्मेट बनाया जाता है जिसके जरिए वह ट्रायल में शामिल हो सकता है। यहीं से प्रतिभावान खिलाड़ियों का चयन होता है।

यदि डिस्ट्रिक्ट की टीम में किसी कारणवश खिलाड़ी कम होते हैं तो प्रदेश सरकार व खेल एवं युवा कल्याण विभाग द्वारा CCAS का प्रावधान है जिसमें दुरुस्त इलाकों के खिलाड़ी कैम्प में शामिल होते हैं और जिनसे 40 टीम बनाईं जाती हैं। जो बच्चे दूरस्थ इलाकों से होते हैं उन्हें प्रशिक्षित किया जाता है। जिसमें कुल 20 खिलाड़ियों का चयन करते हैं। यह प्रक्रिया प्रदेश के हर खेल में करते हैं। चाहे क्रिकेट हो, वॉलीबॉल, फुटबॉल या अन्य एथलीट गेम सभी में इसी माध्यम से चयन प्रक्रिया की जाती है।

यह रहा तीन वर्षों का वित्तीय बजट

वर्ष- बजट

  • 2019-20 (67 करोड़ 25 लाख 60 हजार)
  • 2020-21 (एक अरब 25 करोड़ 13 लाख 95 हजार)
  • 2021-22 (एक अरब 6 करोड़ 12 लाख 65 हजार रुपए)

पहले यह जानें क्या है सरकार का उद्देश्य

राज्य सरकार ने खेल को बढ़ावा देने के मकसद से एक कार्ययोजना तैयार की है। ‘खेल एवं युवा कल्याण’ विभाग द्वारा जो रूपरेखा बनाई गई है, उसके अनुसार विभाग का यह प्रयास है कि उपलब्ध वित्तीय एवं प्रशासनिक संसाधनों का समुचित उपयोग कर राज्य के समस्त प्रतिभावान खिलाड़ियों एवं राज्य के युवाओं को उनसे संबंधित विभिन्न गतिविधियों में अधिकाधिक अवसर एवं सुविधाएं मुहैया कराई जा सके। इस उद्देश्य से हॉकी एवं तीरंदाजी की गैर छात्रावासी खेल अकादमी रायपुर का संचालन सरदार वल्लभ भाई अंतरराष्ट्रीय हॉकी स्टेडियम में किया जा रहा है।

छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर में ही हॉकी एवं तीरंदाजी की छात्रावासी खेल अकादमी का भी शुभारंभ किया जाएगा। साथ ही स्वामी विवेकानन्द स्टेडियम कोटा रायपुर बालिका फुटबॉल अकादमी (गैर आवासीय) तथा बालक-बालिका एथलेटिक अकादमी (गैर आवासीय) सत्र 2021-22 से प्रारम्भ की जा रही है।

बीआर यादव राज्य प्रशिक्षण केंद्र बहतराई जिला बिलासपुर में सत्र 2021-22 से बालक बालिका आवासीय एथलेटिक अकादमी, बालक बालिका आवासीय हॉकी अकादमी, बालक बालिका आवासीय तीरंदाजी अकादमी तथा बालिका आवासीय कबड्डी अकादमी प्रारम्भ की जा रही है। भारत सरकार की खेलो इंडिया योजनान्तर्गत बिलासपुर में हॉकी, एथलेटिक एवं तीरंदाजी की खेलो इंडिया एक्सीलेंस सेंटर प्रारंभ करने की कार्यवाही की जा रही है।

एसोसिएशन ने कहा- हाइट  की वजह से वॉलीबॉल का नहीं हो पा रहा विस्तार

स्पोर्ट एसोसिएशन के अधिकारियों के अनुसार प्रदेश में अन्य खेलों में तो खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं मगर वॉलीबॉल में ज्यादा विकास नहीं हो पा रहा है। जबकि प्रदेश में सबसे अधिक खेले जाना वाला खेल है। वर्तमान में अभी पांच प्लेयर हैं जो इंडियन टीम में खेल रहे हैं। मगर ज्यादा खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय लेवल पर न पहुंचने पर इसकी वजह उन्होंने बताई की छत्तीसगढ़ में आवोहवा या अन्य कारणों से जो नए खिलाड़ी आ रहे हैं उनकी हाईट कम हो रही है जिस वजह से वे बॉलीबॉल में अपना प्रदर्शन ठीक नहीं दे पा रहे हैं।

अन्य राज्यों में जब वे अपना कॉम्पिटिशन करने जाते हैं तो वे सही ऊंचाई न होने की वजह से मात खा जाते हैं। अधिकारियों का कहना है कि जब तक सही हाईट के खिलाड़ी नहीं आएंगे तब तक किसी न किसी कारण से हम वह ग्रो नहीं कर सकते।

बीस साल से नहीं आया कोई मैडल

छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना हुए 21 वर्ष पूरे हो गए हैं। हाल ही में हमने 22वें वर्ष में पदार्पण किया है। मगर करोड़ों के बजट खर्च होने के बाद भी अभी तक वॉलीबॉल में नेशनल लेवल पर एक ही मैडल प्रदेश को नसीब हुआ है। वह भी आज से बीस साल पहले। अधिकारियों के अनुसार वर्ष 2001 में ‘महिला खेल उत्सव’ में मैडल जीता था वह भी महिला टीम ने। उसके बाद न तो कोई भी नेशनल मैडल छत्तीसगढ़ की झोली में आया और न ही इस बात पर ध्यान दिया। अधिकारी हाईट का हवाला देकर इस बात से पलड़ा झाड़ते नजर आ रहे हैं।

रोजगार न मिलना बड़ा कारण

इस खबर को लेकर टीआरपी ने अलग-अलग खेल के कोच से बात की तो उनका कहना है कि हमारे यहां सरकार खिलाड़ियों को रोजगार देने में आतुरता नहीं दिखाती। जिस वजह से खिलाड़ी एक समय के बाद खेल खेलने में रुचि नहीं दिखाता। क्योंकि खेल के साथ आपको पेट भरने के लिए भी कार्य करना होता है। अगर आप नेशनल और इंटनेशनल लेवल पर जाना चाहते हैं तो अधिक से अधिक समय खेल को देना होता है। मगर रोजगार न मिलने की वजह से वे खेल से रुचि हटा लेते हैं जिस कारण अच्छे प्लेयर होने के बाद भी हम स्पोर्ट्स में पीछे रह जाते हैं।

खिलाड़ी अपने भविष्य को लेकर चिंतित

सरकार को ध्यान देने की जरूरत है कि खिलाड़ियों को रोजगार मुहैया कराए। क्योंकि छत्तीसगढ़ प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर हैं यहां कई खदान हैं जहां खिलाडी को रोजगार के अवसर दिए जा सकते हैं। पहले रोजगार या जॉब मिल जाती थी भिलाई स्टील प्लांट जैसे कारखाने अन्य शासकीय कार्यालयों में रिक्रूटमेंट होती थी। फिलहाल यह भी बंद है जिस कारण खिलाड़ी अपने भविष्य को लेकर चिंतित रहते हैं। खेल एक समय खेलने के बाद इससे दूर हो जाता है।

सौ मैडल आने के बावजूद खेल के लिए मैदान नहीं

आर्चेरी संघ के अध्यक्ष कैलाश मुरारका का कहना है की तीरंदाजी में 15 साल से खिलाड़ी प्रतिवर्ष चार मेडल ला रहे हैं। भारत सरकार, NMDC भी पैसे दे रही है मगर सौ मैडल आने के बाद भी तीरंदाजी के लिए न तो मैदान है न ही कोच है। सरकार इन खिलाडियों पर ध्यान नहीं दे रही है। न ही रोजगार उपलब्ध करा रहें है। जिसकी वजह से खिलाड़ी खेल छोड़ रहे है क्योंकि जब तक सरकार रोजगार नहीं देगी तब तक कोई खिलाड़ी कैसे आगे बढ़ेगा।

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