बिलासपुर। स्मार्ट सिटी लिमिटेड को हाईकोर्ट से नये प्रोजेक्ट क्रियान्वयन की अनुमति नहीं मिली। इन कार्यों में आपातकालीन स्थिति वाले कोई भी कम अगली सुनवाई तक नहीं होंगे ।


हाईकोर्ट ने संविधान के 74 वें संशोधन और नगर पालिक निगम अधिनियम के उल्लंघन में निर्वाचित नगर निगम के अधिकारों को हडपने को जनहित याचिका में चुनौतीदी गई थी। कोर्ट ने केन्द्र सरकार को जवाब के लिये दो सप्ताह का अन्तिम समय दिया है 26 नवम्बर अगली सुनवाई होगी ।


बिलासपुर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस अरूप गोस्वामी और जस्टिस गौतम भादुड़ी की खण्डपीठ ने बिलासपुर स्मार्ट सिटी लिमिटेड के उस आवेदन पर आदेश देने से इंकार कर दिया जिसके तहत स्मार्ट सिटी के 11 नये टेंडर / प्रोजेक्ट को शुरू करने की अनुमति मांगी थी । गौरतलब है कि 14 सितंबर को हुई सुनवाई में हाईकोर्ट ने आगे से अपने सभी नये कार्यों की सूची प्रस्तुत करने का निर्देश बिलासपुर और रायपुर स्मार्ट सिटी कम्पनियों को दिया था।

बिलासपुर के अधिवक्ता विनय दुबे की ओर से अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव और गुंजन तिवारी द्वारा दाखिल जनहित याचिका में बिलासपुर और रायपुर नगर में कार्यरत स्मार्ट सिटी लिमिटेड कम्पनियों को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि इन्होंने निर्वाचित नगर निगमों के सभी अधिकारों और क्रियाकलाप का असवैधानिक रूप से अधिग्रहण कर लिया है । जबकि ये सभी कम्पनियाँ विकास के वही कार्य कर रही है जो संविधान के तहत संचालित प्रजातांत्रिक व्यवस्था में निर्वाचित नगर निगमों के अधीन है।

विगत 5 वर्षों में करोड़ो अरबों रूपये के कार्य रायपुर और बिलासपुर नगर निगम क्षेत्र कराये है परन्तु इनमें से किसी भी कार्य की प्रशासनिक या वित्तीय अनुमति नगर निगम मेयर, मेयर इन कॉन्सिल या सामान्य सभा से नहीं ली गयी है । इन कम्पनियों के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर ने कोई भी निर्वाचित जनप्रतिनिधि शामिल नहीं है और राज्य सरकार के अधिकारी इन कम्पनियों को चला रहे है।

अब तक हुई सुनवाई में स्मार्ट सिटी कम्पनियों और राज्य सरकार की ओर से जवाब दाखिल हो चुका है परन्तु केन्द्र सरकार की ओर से जिसके स्मार्ट सिटी मिशन पर ये कम्पनियों बनाई गई है , उसने अभी भी जवाब दाखिल नहीं किया है। आज हुई सुनवाई में केन्द्र सरकार को 2 सप्ताह का समय अन्तिम रूप से दिया गया है और 26 नवम्बर सुनवाई की अगली तिथि तय की गई है।

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