उचित शर्मा

वर्तमान समय में करोना वायरस ने पूरे विश्व को अपने शिकंजे में जकड़ रखा है। इस महामारी ने भारत को भी एक विकराल आपदा में डाल दिया है। आपदा के समय राष्ट्र के नागरिकों को मूलभूत एवं स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं देने के लिए धन की आवश्यकता होती है। प्रधानमंत्री जी ने 28 मार्च को एक कोष की स्थापना की ‘प्राइम मिनिस्टर सिटीजन असिस्टेंस एंड रिलीफ इन इमरजेंसी सिचुएशन’ (पीएम केयर)।

इसका उद्देश्य जन सहयोग के माध्यम से धन एकत्र कर इस आपदा के खिलाफ जंग लड़ना है। कोष में जमा करने की अधिकतम सीमा नहीं है, न्यूनतम ₹10 तक भी जमा किए जा सकते हैं। इस कोष में धन जमा कराने वालों को आयकर की धारा 80 जी के तहत छूट मिली है,इसे कारपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी के तहत भी लिया गया है।

इस कोष की स्थापना के तुरंत बाद विपक्षी दलों ने इस पर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने आय एंव व्यय की पारदर्शिता एवं अलग कोष निर्माण पर सवाल किए हैं ,क्योंकि देश में प्रधानमंत्री राहत कोष के नाम से 1948 में पंडित नेहरू ने एक कोष स्थापित किया था। वर्तमान में इस कोष में लगभग 3800 करोड रुपए जमा हैं। पूर्व में इस कोष का उपयोग 2013 में उत्तरांचल के जल विपदा, 2014 में केरल एवं लक्ष्यदीप के तूफान और 2015 में आसाम और तमिलनाडु को सहयोग करने में किया गया है।

पूर्व में स्थापित यह कोष अपने उद्देश्यों का पूर्ति करने में सफल रहा, फिर ऐसे में किसी नए स्थापना का विरोध राजनेता करेंगे ही, श्रीमती गांधी ने उसके संपूर्ण धन को पुराने कोष में स्थानांतरण करने की मांग की। कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने नए कोष के पारदर्शिता को लेकर सवाल उठाए, वहीं कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं ने पूर्व में स्थापित भारत के वीर कोष को लेकर कुछ सवाल दागे।

राष्ट्रीय आपदा के समय सभी राजनीतिक दलों को ना सिर्फ अपना सहयोग सरकार को देना चाहिए बल्कि सरकार से तभी सवाल करना चाहिए, जब यह अत्यावश्यक हो।
कोष, सत्य और विश्वास राजनीति के मूल तत्व है, अतः सरकार को भी इस विषय पर ध्यान रखना चाहिए।