टीआरपी डेस्क। शायद ही ऐसा कोई शख्स रहा होगा, जिसने बचपन में लूडो की गोटी डिब्बे में रखकर न चौका-छक्का मारा हो। 90 के दशक में बच्चों से लेकर बड़ों तक का सबसे चहेता माना जाने वाला यह गेम इस समय सबका चेहता बन गया है।लॉकडाउन की वजह से जब लोग घरों में कैद हुए, तो इस मुश्किल घड़ी में यही Ludo गेम ही लोगों के वक्त काटने का सहारा बना।
लॉकडाउन के समय लूडो हर घर में सबका साथ निभा रहा है और लोग जमकर इसके ऑनलाइन संस्कण के सहारे अपना समय पास कर रहे हैं। गांवों से लेकर शहर तक में हर व्यक्ति अपने स्मार्टफोन में इस गेम को डाउनलोड करके खेल रहा है।


समय के साथ लूडो का बदल गया पैटर्न


समय के साथ ही लूडो का भी पैटर्न बदल गया है। इस समय गांवों से लेकर शहर तक में यह गेम्स खूब खेला जा रहा है। निराशा और बोरियत से भरे वक्त में यह खेल ऊर्जा का संचार कर रहा है। कभी कागज और प्लास्टिक के बोर्ड पर खेला जाने वाला यह खेल अब मोबाइल और लैपटॉप में आ गया है। स्मार्टफोन के जमाने में हर कोई लाल, पीले, नीले और हरे रंग की वर्चुअल गोटियों के सभी दिवाने हो गए हैं।


शहर और गांव की सरहद से पार निकल आया लूडो


शहरों में घर की चारदीवारी में परिवार के संग लूडो खेलाजा रहा है, तो गांवों में नीम और आम के पेड़ों नीचे खूब खेला जा रहा है। इस समय हर किसी के बीच में लूडो किंग, लूडो स्टार, लूडो क्लब जैसे ऐप बच्चों के बीच में काफी लोकप्रिय बने हुए हैं। बड़े-बूढ़े भी इसे खेल को खेलकर अपने बचपन में पहुंच जा रहे। ये आया छक्का, ये आया चौका, ये कटी गोटी… मेरी गोटी लाल हुई, मेरी गोटी खुल गई और मैं जीता जैसी बातें सब तरफ देखने सुनने को मिल रही हैं।