नई दिल्ली। गंगा नदी की सफाई को लेकर सरकार और उसके पैरोकार क्लीन गंगा फंड यानि सीजीएफ से वर्ष 2018 में मिली 243.27 करोड़ राशि से 45.26 करोड़ यानि महज 18 फीसदी पैसा ही खर्च कर पाए हैं। जब कि नियंत्रक महालेखा परीक्षक यानि कैग ने इसके लिए पहले ही प्रशासन को चेताया था। कैग ने कहा था कि गंगा सफाई की दिशा में हो रहे कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए सीजीएफ के पैसे खर्च करने जरूरी हैं। इसके बावजूद भी व्यवस्था सोती रही और सियासत होती रही और मां गंगा अपना मैला आंचल देख-देखकर रोती रही।

क्या है इसकी असल वजह:

केंद्रीय वित्त मंत्री की अध्यक्षता में सीजीएफ के संचालन के लिए के लिए एक ट्रस्ट बनाया गया था। वित्त मंत्री के अलवा आर्थिक मामलों के मंत्रालय के सचिव, जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय के सचिव, पर्यावरण मंत्रालय के सचिव, प्रवासी भारतीय मामले विभाग के सचिव और एनएनसीजी के सीईओ इस ट्रस्ट के सदस्य होते हैं।
इस ट्रस्ट का काम गंगा सफाई के कार्यों के लिए सीजीएफ राशि के तहत परियोजनाओं को स्वीकृति देना है। बोर्ड आॅफ ट्रस्टी की बैठक नहीं होने की वजह से परियोजनाओं को मंजूरी देने में देरी हो रही है और पैसे खर्च नहीं हो पा रहे हैं।

किसकी कितनी बैठकें हुर्इं:

सीजीएफ के बोर्ड आॅफ ट्रस्टी की अभी तक सिर्फ दो बैठकें हुई हैं। पहली 29 मई 2015 को और दूसरी बैठक मई 2018 में । गंगा सफाई के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में बनी सर्वोच्च समिति राष्ट्रीय गंगा परिषद की आज तक एक भी बैठक नहीं हुई है। नियम के मुताबिक एक साल में कम से कम इसकी एक बैठक होनी चाहिए।
वहीं, मंत्रालय स्तर की सर्वोच्च समिति इम्पावर्ड टास्क फोर्स आॅन रिवर गंगा की अभी तक सिर्फ दो बैठकें हुई हैं। नियम के मुताबिक एक साल में इसकी कम से कम चार बैठकें होनी चाहिए। इसके अलावा भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी अध्यक्षता वाली प्राक्कलन समिति ने गंगा सफाई की दिशा में हो रहे कार्यों पर घोर निराशा जताई थी।

क्या है फंड का फंडा:

जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय की ओर से मिली जानकारी के मुताबिक सीजीएफ में सबसे ज्यादा 202.31 करोड़ रुपए का योगदान सरकारी कंपनियों (सार्वजनिक उपक्रम या पीएसयू) ने किया है, जो कि कुल योगदान का 83 फीसदी से भी ज्यादा है। वहीं निजी कंपनियों ने 26.12 करोड़ का योगदान दिया है और ये कुल योगदान का 10.73 फीसदी है।

सबसे पीछे रहे एनआरआई:

क्लीन गंगा फंड में सबसे कम योगदान विदेशों में रहने वाले भारतीय (एनआरआई व पीआईओ) ने किया है। इन्होंने कुल मिलाकर 3.89 करोड़ रुपये दिए हैं, जो कि कुल योगदान का मात्र 1.6 फीसदी है। वहीं, व्यक्तिगत रूप से भारतीय लोगों ने 10.93 करोड़ का योगदान गंगा सफाई के लिए क्लीन गंगा फंड में दिया है।

और होता रहा गंगा का पानी गंदा:

पहले की तुलना में किसी भी जगह पर गंगा साफ नहीं हुई है, बल्कि साल 2013 के मुकाबले गंगा नदी कई सारी जगहों पर और ज्यादा दूषित हो गई हैं। 2014 से लेकर जून 2018 तक में गंगा सफाई के लिए 5,523 करोड़ रुपये जारी किए गए, जिसमें से 3,867 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके।
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन संस्था केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने अपने अध्ययन में पाया है कि जिन 39 स्थानों से होकर गंगा नदी गुजरती है, उनमें से सिर्फ एक स्थान पर साल 2018 में मानसून के बाद गंगा का पानी साफ था।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए सीपीसीबी ने गंगा नदी जैविक जल गुणवत्ता आकलन (2017-18) नाम से एक रिपोर्ट जारी किया था। उसमें ये कहा गया था कि गंगा बहाव वाले 41 स्थानों में से करीब 37 पर साल 2018 में मानसून से पहले जल प्रदूषण मध्यम से गंभीर श्रेणी में रहा था।

खर्चा से ज्यादा चर्चा पर जोर:

क्लीन गंगा मिशन के नाम पर जितनी चर्चा हुई अगर उसी के हिसाब से खर्चा हुआ होता तो शायद आज तस्वीर कुछ और होती। न नियंत्रक महालेखा परीक्षक को चिल्लाना होता और न ही किसी अन्य को। ऐसे में सरकार और गंगा सफाई अभियान में जुटी संस्थाओं को चाहिए कि जिस मानसिकता और ईमानदारी के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जाकर घाटों पर श्रमदान करते हैं, उनके जाने के बाद अगर उसी ईमानदारी का आधा हिस्सा भी वहां की सफाई में मौजूद हो तो निश्चित ही गंगा प्रदूषण मुक्त हो जाएगी, और भगीरथ की आत्मा जहां कहीं भी होगी अपने इन बेटों पर गर्व जरूर करेगी, मगर दूर-दूर तक इसके आसार नजर नहीं आ रहे हैं।

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