रायपुर। राष्टÑीय स्वास्थ्य बीमा योजना के सीईओ विजेन्द्र कटरे की संविदा नियुक्ति गलत ढंग से की गई। तो वहीं उनकी कार्य अवधि को एक साल और वेतन 12 फीसदी बढ़ा दिया गया। बताया जा रहा है कि यह कार्य स्वास्थ्य विभाग के संचालक आर. प्रसन्ना ने किया। उन्होंने इसकी अनुमति न तो प्रिंसिपल सेक्रेटरी और न ही स्वास्थ्य मंत्री ली। इसकी शिकायत नर्सिंग होम एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. राकेश गुप्ता ने मुख्य सचिव से की है। अपने शिकायती पत्र में उन्होंने कहा है कि सीईओ विजेन्द्र कटरे की नियुक्ति 2012 में छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (संविदा नियुक्ति) नियम 2004 के तहत की गई थी। संविदा नियुक्ति नियम 2004 को छत्तीसगढ़ शासन ने विलोपित करते हुए संशोधन अधिसूचना 3 जनवरी 2013 को राजपत्र में प्रकाशित किया। इस अधिसूचना की कंडिका 12 में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया कि संविदा नियुक्ति के अधीन वार्षिक वेतन वृध्दि की पात्रता नहीं होगी। 31 मार्च 2015 को उन्होंने प्रशासन को पत्र लिखकर अपनी सेवा और वार्षिक वेतनवृध्दि की मांग की। जब कि ये अनियमितता की श्रेणी में आता है।

संचालक ने भी किया नियमों को दरकिनार:

तत्कालीन स्वास्थ्य संचालक आर प्रसन्ना ने भी आव देखा न ताव, तमाम नियम कायदे को धत्ता बताते हुए उनकी सेवा न सिर्फ एक साल बढ़ा दी, बल्कि 12 प्रतिशत वेतन भी बढ़ा दिया गया। और राजपत्र में प्रकाशित वो कानून विभाग की आलमारियों में पड़ा का पड़ा रह गया।

कटरे की नियुक्ति में भी हुई गड़बड़ी:

आरएसबीवाई के सीईओ विजेन्द्र कटरे की नियुक्ति में भी नियम कायदे को ताक पर रख दिया गया। बताया जा रहा है कि आरएसबीवाई के सीईओ के पद पर संविदा नियुक्ति के लिए एमबीबीएस, एमडी की डिग्री और कम से कम 20 साल के तजुर्बे का होना जरूरी था। शासन-प्रशासन के जिम्मेदारों ने डेयरी टेक्नॉलॉजी में बीटेक इंजीनियर को ये जिम्मेदारी थमा दी। इससे साफ जाहिर होता है कि इस मामले में भी नियम-कायदे का कोई भी ध्यान नहीं रखा गया।

इंजीनियर के भरोसे डॉक्टर्स के कामकाज की निगरानी:

यानि राज्य में एक इंजीनियर डॉक्टर्स के कामकाज की निगरानी कर रहा है? दोनों की तकनीक और भाषाएं दोनों ही अलग, वहीं दोनों का काम भी अलग, ऐसे में काम की गुणवत्ता का अंदाजा भी सहज ही लगाया जा सकता है।

55 लाख स्मॉर्ट कार्ड धारकों का जीवन खतरे में:

इस एजेंसी के ऊपर राज्य के 55 लाख स्मॉर्ट कार्ड धारकों के इलाज का जिम्मा है। उसके सीईओ की काबिलियत ऐसी हो, तो इतने सारे लोगों का जीवन कितना सुरक्षित होगा ये बता पाना बेहद ही आसान बात होगी। तो वहीं सवाल तो यही उठता है कि फर्जी डॉक्टर्स पर कार्रवाई करने वाली सरकार ने अपनी ही एजेंसी के गिरेबान में क्यों नहीं झांककर देखा ?
ऐसे में अब देखना ये होगा कि मुख्य सचिव इस मामले को लेकर क्या कार्रवाई करते हैं।

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